चीन ने किया K-वीजा का ऐलान, कहा- दुनियाभर की उत्कृष्ट प्रतिभाओं का स्वागत है
बीजिंग, 22 सितंबर। वैश्विक प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जहां अमेरिका ने विदेशी पेशेवरों के लिए वीजा नियमों को और कड़ा कर दिया है, वहीं चीन ने उलट रुख अपनाते हुए दुनियाभर की उत्कृष्ट प्रतिभाओं को अपने यहां आने का आमंत्रण दिया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने सोमवार को साफ कहा कि चीन सभी उद्योगों और क्षेत्रों की प्रतिभाओं का चीन में स्वागत करता है। उन्होंने कहा कि यह कदम वैश्वीकरण के युग में न केवल चीन बल्कि पूरी मानवता की प्रगति में योगदान देगा।
अमेरिका ने बढ़ाया H-1B वीजा शुल्क
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने हाल ही में एच-1बी वीजा शुल्क को 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) तक बढ़ा दिया है। पहले यह शुल्क करीब 6 लाख रुपये था। एच-1बी वीजा आमतौर पर टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे क्षेत्रों के पेशेवरों के लिए सबसे लोकप्रिय विकल्प माना जाता है। लेकिन अब इतनी भारी-भरकम फीस से लाखों विदेशी पेशेवरों, विशेषकर भारतीय आईटी और तकनीकी कर्मचारियों पर बड़ा असर पड़ सकता है।
चीन का जवाब : नया K-वीजा
अमेरिका के इस कदम के तुरंत बाद चीन ने विदेशी प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए नया K-वीजा शुरू करने का ऐलान किया है। यह वीजा विशेष रूप से साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स (STEM) से जुड़े युवाओं और पेशेवरों के लिए होगा। खास बात यह है कि इसके लिए किसी चीनी कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव या स्पॉन्सरशिप अनिवार्य नहीं होगी। यानी उम्मीदवार अपने शैक्षणिक योग्यता और अनुभव के आधार पर सीधे आवेदन कर सकेंगे।
यह वीजा 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगा। चीन का मानना है कि इससे विदेशी रिसर्चर्स, प्रोफेशनल्स और स्किल्ड युवाओं को चीन में आकर लंबे समय तक काम करने और करियर बनाने का मौका मिलेगा।

चीन की मौजूदा वीजा व्यवस्था
वर्तमान में चीन 12 तरह के वीजा जारी करता है। इनमें R-वीजा और Z-वीजा कामकाजी वीजा के रूप में सबसे आम हैं। R-वीजा केवल 180 दिन की वैधता देता है जबकि Z-वीजा एक साल के लिए जारी होता है और इसमें नौकरी बदलने की स्थिति में नए वीजा की जरूरत पड़ती है। इन प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण यह ज्यादा सफल नहीं रहे।
इसके विपरीत, K-वीजा में लंबी अवधि तक ठहरने की सुविधा और नौकरी बदलने की आजादी मिलेगी। इससे विदेशी विशेषज्ञों को चीन में स्थायी करियर बनाने का अवसर मिलेगा।
फीस और नियम
हालांकि K-वीजा की फीस अभी तय नहीं हुई है, लेकिन संभावना है कि इसे प्रतिस्पर्धात्मक स्तर पर रखा जाएगा। फिलहाल चीन के मौजूदा Z-वीजा की फीस अलग-अलग देशों के लिए अलग है। भारतीय नागरिकों को इसके लिए लगभग 2,900 रुपये और अमेरिकी नागरिकों को करीब 2,300 रुपये देने पड़ते हैं। साथ ही अतिरिक्त सर्विस चार्ज भी लगता है।
चीन के दो नए प्रोग्राम
चीन ने हाल ही में दो बड़े प्रोग्राम शुरू किए हैं, जिनका मकसद विदेशी टैलेंट को चीन में आकर्षित करना है।
- टैलेंटेड यंग साइंटिस्ट प्रोग्राम – इसमें एशिया और अफ्रीका के 45 वर्ष तक के शोधकर्ताओं को चीन में रिसर्च करने और काम करने का अवसर मिलेगा।
- आउटस्टैंडिंग यंग साइंटिस्ट फंड प्रोजेक्ट – इसमें 40 वर्ष तक के शीर्ष स्तर के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को चीन आने और रिसर्च करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
चीन के विश्वविद्यालय और शोध संस्थान भी विदेशी छात्रों और रिसर्चर्स को आकर्षित करने के लिए आकर्षक सैलरी और बोनस देने का वादा कर रहे हैं।
ब्रिटेन भी कर सकता है वीजा फीस माफ
इसी बीच ब्रिटेन भी उच्च कौशल वाले लोगों को आकर्षित करने के लिए वीजा फीस खत्म करने पर विचार कर रहा है। फिलहाल ब्रिटेन का ग्लोबल टैलेंट वीजा 766 पाउंड (करीब 90 हजार रुपये) का है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिन उम्मीदवारों ने दुनिया की शीर्ष पांच यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है या अंतरराष्ट्रीय स्तर का बड़ा अवॉर्ड जीता है, उनकी फीस पूरी तरह माफ हो सकती है। ब्रिटेन नवंबर में अपना बजट पेश करेगा और तभी इस पर अंतिम फैसला होने की संभावना है।
चीन की महत्वाकांक्षा : 2035 तक तकनीकी महाशक्ति
चीन ने लक्ष्य रखा है कि वर्ष 2035 तक वह दुनिया की सबसे बड़ी तकनीकी ताकत बनेगा। इसके लिए उसे बड़ी संख्या में विदेशी विशेषज्ञों और प्रतिभाओं की आवश्यकता होगी। गुओ जियाकुन ने कहा कि चीन चाहता है कि विदेशी विशेषज्ञ चीन में जड़ें जमाएं, अपना करियर बनाएं और साथ ही मानव समाज की प्रगति में योगदान दें।
अमेरिका के सख्त नियमों का असर
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की नई वीजा नीति विदेशी पेशेवरों, खासकर भारतीय आईटी कंपनियों और इंजीनियरों के लिए बड़ी बाधा बनेगी। अब तक हर साल हजारों भारतीय पेशेवर एच-1बी वीजा के जरिए अमेरिका में काम करने जाते थे। लेकिन इतनी महंगी फीस के बाद चीन और ब्रिटेन जैसे देशों का रुख करना उनके लिए नया विकल्प बन सकता है।
वैश्विक प्रतिभा की होड़
यह साफ हो चुका है कि आने वाले वर्षों में तकनीकी विकास और आर्थिक प्रगति की दौड़ में प्रतिभाओं की वैश्विक मांग और भी बढ़ेगी। चीन, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे बड़े देश अपने-अपने तरीकों से इन प्रतिभाओं को आकर्षित करने में जुटे हैं।
जहां अमेरिका का रुख अब सख्त होता जा रहा है, वहीं चीन और ब्रिटेन जैसी अर्थव्यवस्थाएं विदेशी प्रतिभाओं को लुभाने के लिए अवसरों और रियायतों का पिटारा खोल रही हैं। इससे वैश्विक स्तर पर टैलेंट की होड़ और तेज होने वाली है।
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