दोनों महाशक्तियों में ट्रेड वॉर फिर तेज़, वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल के आसार
बीजिंग/वॉशिंगटन। वैश्विक व्यापार जगत में एक बार फिर तनाव चरम पर है। अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर लगाए गए 104% टैरिफ के जवाब में चीन ने अमेरिका से आने वाले उत्पादों पर 84% टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह नया आयात शुल्क कल से प्रभावी होगा। इस फैसले के साथ ही अमेरिका और चीन के बीच छिड़ा व्यापार युद्ध एक बार फिर दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला देने की स्थिति में पहुँच गया है।
अमेरिका ने क्यों बढ़ाया टैरिफ?
बीते हफ्ते अमेरिका ने चीन से आयातित इलेक्ट्रिक वाहन (EVs), स्टील, सोलर पैनल और अर्धचालक उपकरणों (semiconductors) पर 104% तक टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। अमेरिकी प्रशासन का तर्क था कि चीनी कंपनियां भारी सब्सिडी के दम पर अपने प्रोडक्ट्स को अमेरिकी बाजार में बेहद सस्ते दामों पर बेचती हैं, जिससे अमेरिकी उद्योगों को भारी नुकसान हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस कदम को “फेयर ट्रेड की बहाली” बताया और कहा कि यह फैसला स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग और नौकरियों की रक्षा के लिए जरूरी है।
चीन का तीखा जवाब
चीन ने इस कदम को “अत्यधिक संरक्षणवादी और एकतरफा” बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज किया और तुरंत प्रतिक्रिया देने की चेतावनी दी थी। आज सुबह बीजिंग से आए बयान में चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने घोषणा की कि अमेरिका से आयातित ऑटोमोबाइल, सोया उत्पाद, शराब, और चिप्स व अन्य तकनीकी उपकरणों पर 84% तक आयात शुल्क लगाया जाएगा। यह टैरिफ 10 अप्रैल 2025 से लागू होगा।
चीन की तरफ से यह भी कहा गया है कि अमेरिका का टैरिफ वॉर “विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के खिलाफ है” और इससे वैश्विक सप्लाई चेन को खतरा हो सकता है।
वैश्विक बाजार में मची खलबली
दोनों देशों के इन टैरिफ निर्णयों का असर आज ही वैश्विक शेयर बाजारों और कमोडिटी मार्केट्स में देखने को मिला।
- शंघाई और हांगकांग के बाजार लाल निशान पर खुले।
- NASDAQ और Dow Jones में प्री-ओपनिंग ट्रेडिंग के दौरान गिरावट देखी गई।
- कच्चे तेल और सोने की कीमतों में तेजी आई है, क्योंकि निवेशक सुरक्षित विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं।
- रुपया और युआन जैसी मुद्राएं कमजोर हुईं, जबकि डॉलर थोड़ी मजबूती में रहा।
व्यापार विशेषज्ञों की चिंता
वाणिज्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस टैरिफ युद्ध से वैश्विक व्यापार की रफ्तार धीमी हो सकती है, खासकर उन देशों के लिए जो अमेरिका और चीन दोनों से कच्चा माल और टेक्नोलॉजी आयात करते हैं। भारत जैसे देशों के लिए यह चुनौती और अवसर दोनों लेकर आ सकता है। भारत के लिए अब वैकल्पिक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की संभावना और अधिक बढ़ गई है।
आगे क्या?
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका चीन की इस प्रतिक्रिया पर क्या कदम उठाएगा, लेकिन माना जा रहा है कि अमेरिकी प्रशासन कुछ और कठोर नीतिगत निर्णय ले सकता है। दोनों देश WTO में एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकते हैं, लेकिन समाधान में समय लग सकता है।
यह ट्रेड वॉर ना केवल इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं, बल्कि पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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