चीन ने तिब्बत में बनाया नया मिसाइल बेस, डीएफ-26 तैनाती की तैयारी; भारत समेत एशिया में बढ़ा तनाव
गोलमुड क्षेत्र में नई मिसाइल ब्रिगेड की तैनाती, 4,000 किमी तक मारक क्षमता वाली डीएफ-26 मिसाइलें होंगी तैनात
धर्मशाला। तिब्बत के गोलमुड क्षेत्र में चीन द्वारा किए जा रहे सैन्य निर्माण और मिसाइल तैनाती की गतिविधियों ने एशिया की सुरक्षा स्थिति को एक बार फिर अस्थिर कर दिया है। हाल ही में जारी सैटेलाइट तस्वीरों से यह खुलासा हुआ है कि चीन ने यहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स (PLARF) के तहत एक नई मिसाइल ब्रिगेड का निर्माण किया है। यह ठिकाना न केवल भारत, बल्कि ताइवान और अमेरिकी हितों के लिए भी सीधा खतरा बनता जा रहा है।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, गोलमुड में बन रही यह मिसाइल बेस चीन की परमाणु और पारंपरिक मिसाइल क्षमताओं के आधुनिकीकरण की बड़ी योजना का हिस्सा है। इस ठिकाने की भौगोलिक स्थिति — तिब्बत के पठारी इलाके में ऊंचाई पर स्थित — इसे दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के देशों की दिशा में लंबी दूरी की मिसाइल दागने के लिए अत्यंत उपयुक्त बनाती है।

सैटेलाइट इमेज से खुला सैन्य विस्तार का राज
सैटेलाइट इमेज विश्लेषण में साफ दिख रहा है कि गोलमुड क्षेत्र में चीन ने विशाल लॉन्च पैड, सुरक्षित शेल्टर और ट्रांसपोर्टर इरेक्टर लॉन्चर (TEL) के लिए ढांचागत सुविधाएं तैयार की हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यह बेस “यूनिट 64” के अधीन काम करेगा। इन सभी निर्माणों से संकेत मिलता है कि चीन ने इस क्षेत्र को एक रणनीतिक मिसाइल लॉन्च सेंटर के रूप में विकसित कर लिया है।
किंगहाई-तिब्बत पठार की ऊँचाई के कारण यहाँ से मिसाइल लॉन्च करना आसान है, क्योंकि उच्च स्थान से छोड़ी गई मिसाइलों की गति और दूरी दोनों अधिक प्रभावी होती हैं। यही कारण है कि विशेषज्ञ इस नए बेस को चीन की सामरिक रणनीति में “भविष्य का लॉन्च हब” बता रहे हैं।
डीएफ-26 मिसाइल तैनात करने की तैयारी
सैटेलाइट रिपोर्ट में यह भी संकेत मिला है कि चीन इस नए गोलमुड बेस में अपनी डीएफ-26 (DF-26) मिसाइलों को तैनात करने की तैयारी में है। यह मिसाइल चीन की सबसे शक्तिशाली मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल मानी जाती है, जिसे “गुआम किलर” (Guam Killer) के नाम से भी जाना जाता है।
डीएफ-26 की मारक क्षमता लगभग 4,000 किलोमीटर तक है, और यह परमाणु तथा पारंपरिक दोनों प्रकार के वारहेड ले जा सकती है। इसकी रेंज में भारत के कई सामरिक ठिकाने, अमेरिकी नौसैनिक अड्डे और ताइवान का पूरा क्षेत्र आता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, चीन की यह पहली ऐसी मिसाइल है जो सीधे अमेरिका के गुआम द्वीप पर स्थित सैन्य अड्डे को निशाना बना सकती है। यह मिसाइल मोबाइल लॉन्चर से दागी जा सकती है, जिससे इसे कहीं भी तैनात करना आसान होता है।
अमेरिका की रिपोर्ट ने जताई चिंता
अमेरिकी रक्षा विभाग की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, चीन 2030 तक 1,000 परमाणु वारहेड तक का भंडार तैयार कर सकता है। गोलमुड बेस उसी दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम माना जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अब अपने रॉकेट फोर्स को “फुल ऑपरेशनल इंटिग्रेशन” के स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहा है, ताकि वह एक साथ कई लक्ष्यों पर मिसाइल दाग सके।
भारत के लिए बढ़ी सामरिक चुनौती
गोलमुड क्षेत्र की दूरी भारत की सीमा से अधिक नहीं है, और यहां से दागी गई मिसाइलें कुछ ही मिनटों में भारत के उत्तर और पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँच सकती हैं। यही कारण है कि इस विस्तार ने भारत के रक्षा तंत्र को भी सतर्क कर दिया है। भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम चीन की “स्ट्रेटेजिक डिटरेंस पॉलिसी” का हिस्सा है, जो भारत को दबाव में लाने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है।
हाल के वर्षों में चीन ने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के पास भी सैन्य बुनियादी ढांचे का व्यापक विस्तार किया है। सीमा पर सड़कें, हवाई पट्टियाँ और मिसाइल लॉन्चर तैनाती की खबरें लगातार सामने आती रही हैं। ऐसे में गोलमुड बेस का विस्तार उस रणनीतिक श्रृंखला की अगली कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।
एशिया में अस्थिरता का खतरा
रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि चीन की यह गतिविधि केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा है। यह क्षेत्र पहले ही दक्षिण चीन सागर और ताइवान मुद्दे को लेकर तनावग्रस्त है, और अब तिब्बत का यह मिसाइल बेस एशिया में हथियारों की दौड़ को और तेज़ कर सकता है।
एक वरिष्ठ रणनीतिक विशेषज्ञ के अनुसार, “चीन धीरे-धीरे तिब्बत को एक सैन्य लॉन्चपैड में बदल रहा है। यहाँ की ऊँचाई और भौगोलिक स्थिति उसे मिसाइल परीक्षण और तैनाती के लिए अद्वितीय लाभ देती है। यह न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक संतुलन के लिए भी गंभीर चुनौती है।”
क्षेत्र में बढ़ी निगरानी और अभ्यास
स्थानीय सूत्रों ने बताया है कि 2024-25 में चीन ने इस क्षेत्र में कई बार सैन्य अभ्यास किए हैं, जिनमें मिसाइल परीक्षण और मोबाइल लॉन्चर ड्रिल शामिल थीं। चीन की ओर से इन अभ्यासों को “रूटीन सैन्य गतिविधि” बताया गया, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पूरी तरह रणनीतिक तैयारी का हिस्सा है।
भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के क्वाड समूह की सुरक्षा एजेंसियाँ अब इस क्षेत्र पर विशेष निगरानी रख रही हैं। माना जा रहा है कि आने वाले महीनों में भारत अपनी रक्षा निगरानी प्रणाली (ISR) को और सुदृढ़ करेगा ताकि किसी भी अप्रत्याशित गतिविधि का समय रहते जवाब दिया जा सके।
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