रायपुर। छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ जिले में हसदेव नदी के किनारे 28 करोड़ साल पुराना समुद्री जीवाश्म मिलने की खबर ने इतिहास, पुरातत्व, और विज्ञान प्रेमियों को रोमांचित कर दिया है। यह अद्भुत खोज न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे एशिया के लिए एक गौरवपूर्ण घटना है। राज्य सरकार ने इसे संरक्षित करने और इसे एक "मैरीन फॉसिल्स पार्क" के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है।
मुख्यमंत्री साय ने इसे प्रदेश के लिए गर्व का क्षण बताते हुए कहा कि यह परियोजना न केवल वैज्ञानिक शोध और अध्ययन के लिए एक प्रमुख केंद्र बनेगी, बल्कि पर्यटन और रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न करेगी। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार अपनी प्राकृतिक धरोहरों को सहेजने और उनका विकास करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
वैज्ञानिक और पर्यटन महत्व
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस परियोजना को विशेष महत्व देते हुए इसे एक बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट में बदलने की तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री कार्यालय ने जानकारी दी है कि इस फॉसिल्स पार्क में आने वाले पर्यटक करोड़ों साल पुराने जीवों की उत्पत्ति और उनके विकास की कहानी को करीब से देख और समझ सकेंगे।
इस खोज के बाद राज्य सरकार ने इसे प्रमुख पर्यटन और वैज्ञानिक केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग करना शुरू कर दिया है।
वैज्ञानिक अध्ययन और प्रमाण
इस क्षेत्र का अध्ययन भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई), कोलकाता और बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियो साइंसेज, लखनऊ की टीमों ने किया। कार्बन डेटिंग तकनीक से पता चला कि यह जीवाश्म लगभग 28 करोड़ साल पुराना है। इस खोज की पहली जानकारी वर्ष 1954 में डॉ. एस.के. घोष ने दी थी। बाद में, 2015 में लखनऊ के वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि की।
पुरातत्व विभाग के नोडल अधिकारी डॉ. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि यह एशिया का सबसे बड़ा जीवाश्म क्षेत्र है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से वैज्ञानिक और शोधकर्ता यहां आएंगे।
पृथ्वी के इतिहास और भूगर्भीय परिवर्तन
वैज्ञानिकों का मानना है कि 28 करोड़ साल पहले इस क्षेत्र में एक विशाल ग्लेशियर मौजूद था, जो बाद में पिघलकर समुद्र में समा गया। इसके बाद समुद्री जीव-जंतु इस क्षेत्र में पहुंचे और धीरे-धीरे विलुप्त हो गए। उनके अवशेष जीवाश्म के रूप में हसदेव नदी के किनारे आज भी संरक्षित हैं।
यह जीवाश्म क्षेत्र पृथ्वी के प्राचीन इतिहास, जलवायु परिवर्तन और जीवों के विकास क्रम को समझने में मदद करता है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने 1982 में इस क्षेत्र को नेशनल जियोलॉजिकल मोनुमेंट के रूप में संरक्षित किया था।
पर्यटन और रोजगार के अवसर
मैरीन फॉसिल्स पार्क के रूप में विकसित होने के बाद यह क्षेत्र पर्यटकों और वैज्ञानिकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बनेगा। इसके माध्यम से क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। छत्तीसगढ़ सरकार इस परियोजना को तेजी से लागू करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
यह खोज न केवल छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों को उजागर करती है, बल्कि यह पूरे भारत के लिए गर्व का विषय है।
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