October 26, 2025 12:21 AM

नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व का शुभारंभ, श्रद्धा और अनुशासन में डूबा पूरा बिहार

नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व का शुभारंभ, पटना से भोपाल तक सूर्य उपासना में डूबा भारत

सूर्योपासना का पर्व शुरू, 30 किमी के गंगा तट पर उमड़ा जनसागर — पटना से भोपाल तक छठ की गूंज

पटना। लोक आस्था और सूर्योपासना के अद्भुत संगम महापर्व छठ की शुरुआत पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ हो गई। शनिवार को कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के अवसर पर ‘नहाय-खाय’ के साथ चार दिवसीय इस पावन पर्व का शुभारंभ हुआ। इस दिन श्रद्धालु स्नान कर पवित्र भोजन ग्रहण करते हैं और छठ मैया की पूजा का संकल्प लेते हैं। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल तक भक्ति और स्वच्छता का अनूठा संगम देखने को मिला।

छठ पर्व को लोक आस्था का सबसे अनुशासित और कठिन व्रत माना जाता है। इसमें व्रती महिलाएं और पुरुष 36 घंटे का निर्जला उपवास रखकर सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि संयम, समर्पण और पर्यावरण के प्रति संवेदना का प्रतीक भी है।

चार दिन का पर्व — नहाय खाय से लेकर उगते सूर्य को अर्घ्य तक

छठ पर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, जिसमें श्रद्धालु गंगा या पवित्र नदी में स्नान कर घर में शुद्ध सात्विक भोजन बनाते हैं। इसके बाद

  • पंचमी को ‘खरना’ होता है, जब गुड़-चावल की खीर बनाकर प्रसाद चढ़ाया जाता है।
  • षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
  • और सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर यह कठिन व्रत समाप्त किया जाता है।

30 किलोमीटर के घाटों पर श्रद्धा का सैलाब

राजधानी पटना में इस वर्ष प्रशासन ने दानापुर से लेकर दीदारगंज तक फैले करीब 30 किलोमीटर के गंगा तट पर छठ घाट तैयार किए हैं। कुल 109 घाट, 63 तालाब और 45 पार्क श्रद्धालुओं की आस्था से सराबोर हैं। अनुमान है कि केवल पटना में ही 25 लाख से अधिक श्रद्धालु सूर्य देव को अर्घ्य देने पहुंचे।

प्रमुख घाटों में कलेक्ट्रेट घाट, महेंद्रु घाट, दीघा घाट, जेपी सेतु घाट, मीनार घाट, गाय घाट और पाटलिपुत्र घाट पर भक्तों का विशाल जमावड़ा देखा गया। गंगा तटों पर “छठ मइया के जयकारे” गूंजते रहे और महिलाएं पारंपरिक गीतों के साथ पूजा की तैयारियों में रहीं।

प्रशासन की व्यापक तैयारी

श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जिला प्रशासन ने इस वर्ष कई नई व्यवस्थाएँ की हैं।

  • घाटों पर चेंजिंग रूम, मोबाइल टॉयलेट, पेयजल व्यवस्था, मेडिकल कैंप, नियंत्रण कक्ष और वॉच टावर बनाए गए हैं।
  • भीड़ नियंत्रण के लिए जगह-जगह माइक व्यवस्था और पुलिस बल की तैनाती की गई है।
  • जिलाधिकारी त्याग राजन और एसएसपी कार्तिकेय शर्मा स्वयं घाटों का निरीक्षण कर स्थिति का जायजा ले रहे हैं।
    प्रशासन के अनुसार इस बार घाटों की सफाई, लाइटिंग और सुरक्षा व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।

भोपाल में भी छठ की रौनक, 52 घाटों पर पूजा-अर्चना

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भी छठ का उल्लास पूरे चरम पर रहा। नगर निगम और जिला प्रशासन ने शहर के 52 घाटों पर विशेष व्यवस्थाएँ की हैं।

  • शीतलदास की बगिया, कमला पार्क, खटलापुरा घाट, प्रेमपुरा घाट, हथाईखेड़ा डैम और वर्धमान पार्क जैसे स्थलों पर हजारों श्रद्धालु सुबह-सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देने पहुंचे।
  • नगर निगम ने घाटों की सफाई, रंग-रोगन, विद्युत सजावट और पेयजल व्यवस्था सुनिश्चित की है।
  • श्रद्धालुओं के लिए चलित शौचालय, चेंजिंग रूम और सुरक्षा कर्मियों की टीम भी तैनात की गई है।

सूर्य उपासना का वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व

छठ पर्व केवल धार्मिक विश्वास का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह सूर्य ऊर्जा, पर्यावरण संरक्षण और पारिवारिक एकता का संदेश देता है। सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ है प्रकृति के उस स्रोत का आभार जताना, जिससे जीवन संचालित है। यह पर्व शुद्धता, पर्यावरणीय संतुलन और स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है।

छठ गीतों और लोक परंपराओं से गूंजा वातावरण

घरों और घाटों पर छठ गीतों की स्वर लहरियाँ वातावरण में भक्ति घोल रही हैं —
“केरवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगवा बोलेला…”
महिलाएँ पारंपरिक साड़ियों में, सिर पर पूजा की डलिया रखे, घर से घाटों तक के सफर को किसी धार्मिक यात्रा की तरह तय कर रही हैं। घाटों पर दीपक, केला, गन्ना, ठेकुआ और नारियल से सजाए गए प्रसाद के थाल श्रद्धा का प्रतीक बन गए हैं।

श्रद्धा, अनुशासन और आस्था का संगम

छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता उसका अनुशासन है। इसमें न कोई दिखावा, न किसी प्रकार की मांग — केवल संकल्प और समर्पण। हर वर्ष की तरह इस बार भी बिहार, झारखंड और पूर्वांचल के लाखों परिवार अपनी आस्था को नमन करते हुए यह कठिन व्रत निभा रहे हैं।

सूर्यास्त के समय जब गंगा तटों पर लाखों दीप एक साथ जलते हैं, तो मानो धरती पर एक दिव्य उत्सव उतर आता है — जो न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई का प्रमाण भी है।

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