October 24, 2025 10:34 PM

महापर्व छठ : आस्था, अनुशासन और सूर्योपासना का लोकपर्व शनिवार से नहाय-खाय के साथ होगा आरंभ

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महापर्व छठ का शुभारंभ शनिवार से, नहाय-खाय के साथ शुरू होगा चार दिवसीय अनुष्ठान

पटना, 24 अक्टूबर (हि.स.)। लोक आस्था, अनुशासन और पवित्रता का प्रतीक महापर्व छठ का चार दिवसीय महाअनुष्ठान इस बार शनिवार, 25 अक्टूबर से ‘नहाय-खाय’ के साथ आरंभ होगा। यह पर्व न केवल बिहार बल्कि पूरे उत्तर भारत, नेपाल और अब तो विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों के बीच भी आस्था और श्रद्धा का सबसे बड़ा उत्सव बन चुका है।

नहाय-खाय से आरंभ होगा महापर्व

पहले दिन ‘नहाय-खाय’ के साथ छठ की विधिवत शुरुआत होती है। व्रती महिलाएं (और कई पुरुष भी) इस दिन पवित्र नदी, तालाब या जलाशय में स्नान करती हैं। इसके बाद वे घर में शुद्धता का विशेष ध्यान रखते हुए सात्विक भोजन तैयार करती हैं। इस दिन का भोजन पूरी तरह बिना लहसुन-प्याज के होता है, जिसमें मुख्य रूप से कद्दू, चने की दाल और चावल शामिल रहते हैं। यह भोजन व्रती के शुद्ध आचरण और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।

खरना और निर्जला व्रत की कठिन साधना

छठ का दूसरा दिन ‘खरना’ कहलाता है, जो अत्यंत कठोर अनुशासन और संयम का दिन होता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद खीर, रोटी और फल का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद व्रती अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। यह तपस्या का चरम रूप है, जिसमें न भोजन किया जाता है और न ही जल ग्रहण किया जाता है।

संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य का दिव्य दृश्य

तीसरे दिन यानी 27 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा। इस अवसर पर घाटों पर हजारों की संख्या में व्रती और श्रद्धालु एकत्र होते हैं। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का दृश्य अत्यंत मनोहारी और भावनात्मक होता है। पूरा वातावरण लोकगीतों, छठ के पारंपरिक गीतों और गूंजती आराधना से भर जाता है — “कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…” जैसे गीत आस्था का वातावरण बना देते हैं।

अगले दिन, 28 अक्टूबर को, उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस महापर्व का समापन होता है। यह क्षण भावनाओं से भरा होता है — जब व्रती अपने व्रत की पूर्णता के साथ सूर्य भगवान और छठी मैया को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।

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छठ : वैदिक परंपरा की जीवंत झलक

छठ महापर्व की जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं। ऋग्वेद में सूर्योपासना और उषा पूजन का उल्लेख मिलता है, जो छठ की मूल भावना से जुड़ा हुआ है। यह पर्व आर्य संस्कृति का प्रतीक है, जिसमें सूर्य — ऊर्जा, जीवन और प्रकाश के स्रोत के रूप में पूजे जाते हैं। सूर्योपासना के माध्यम से मनुष्य प्रकृति, जल, वायु और अग्नि तत्वों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है।

बिहार की संस्कृति और लोकआस्था का प्रतीक

छठ बिहार की आत्मा में बसता है। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक पहचान है। मिथिला, मगध और भोजपुर क्षेत्र में यह पर्व असाधारण उत्साह के साथ मनाया जाता है। महिलाएं छठ के दिनों में पारंपरिक बिना सिलाई वाली सूती धोती पहनती हैं — इसे ‘सादी धोती’ कहा जाता है, जो पवित्रता और सादगी का प्रतीक है।

मिथिला क्षेत्र में इस पर्व के दौरान विशेष लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें माँ छठी मैया की स्तुति की जाती है। घाटों की सफाई, दीपों की सजावट और सामूहिक अर्घ्य का दृश्य बिहार की संस्कृति की सुंदर झलक प्रस्तुत करता है।

हर धर्म और हर वर्ग का पर्व

छठ महापर्व अब केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं रहा। बिहार में कई मुस्लिम परिवार भी श्रद्धा और सम्मान के साथ इस पर्व में सहभागी होते हैं। यह धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक एकता का अद्भुत उदाहरण है। समय के साथ छठ ने सीमाओं को लांघते हुए वैश्विक स्वरूप ग्रहण कर लिया है — आज दुबई, लंदन, न्यूयॉर्क और टोक्यो तक प्रवासी भारतीय छठ पर्व का आयोजन करते हैं।

पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवासुर संग्राम में जब देवता असुरों से पराजित हुए, तब देवमाता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए सूर्य की पुत्री छठी मैया की आराधना की। प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न पुत्र का वरदान दिया — जो बाद में त्रिदेव रूप आदित्य भगवान के रूप में उत्पन्न हुए और उन्होंने देवताओं को विजय दिलाई। इसीलिए छठ को शक्ति, संकल्प और विजय का प्रतीक माना जाता है।

कठोर अनुशासन और प्रकृति से जुड़ाव

छठ का हर अनुष्ठान प्रकृति से गहराई से जुड़ा है। पवित्र जलाशयों की सफाई, प्रदूषण से दूर रहना, सात्विक भोजन और शुद्ध आचरण — ये सभी पर्यावरण संरक्षण और आत्मसंयम के संदेश देते हैं। व्रती जब जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो यह मनुष्य और प्रकृति के बीच के गहरे आध्यात्मिक संबंध का प्रतीक बन जाता है।

छठ का यह पर्व न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह सादगी, पर्यावरण-संरक्षण और अनुशासन का पाठ भी सिखाता है।


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