July 4, 2025 9:57 AM

6 जुलाई से शुरू होगा चातुर्मास: शुभ कार्यों पर रहेगा विराम, संयम, सेवा और साधना का समयव्रत, भक्ति और संयम का पर्व—जानिए चातुर्मास का महत्व और पालन के उपाय

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धार्मिक डेस्क।
हिंदू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। यह वह काल होता है जब जीवन को संयम, सेवा और साधना की ओर मोड़ा जाता है। साल 2025 में चातुर्मास की शुरुआत 6 जुलाई (देवशयनी एकादशी) से होगी और इसका समापन 1 नवंबर (देवउठनी एकादशी) को होगा। इन चार महीनों को व्रत, ध्यान, तप और भक्ति के लिए विशेष समय माना जाता है। यही कारण है कि इस अवधि में शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।


🔷 क्या है चातुर्मास और क्यों है इसका इतना महत्व?

चातुर्मास का अर्थ है – चार महीने। यह अवधि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मानी जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस समय भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और ब्रह्मांडीय शक्तियों में शिथिलता आ जाती है। इसलिए किसी भी नई शुरुआत को शुभ नहीं माना जाता।

पुराणों और धर्मशास्त्रों में चातुर्मास को आत्म-शुद्धि, तप, ध्यान और ब्रह्मचर्य के पालन का समय बताया गया है। यह समय शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करने, अपने दोषों पर नियंत्रण और धार्मिक नियमों के पालन के लिए आदर्श है।


🟠 चातुर्मास में क्यों वर्जित हैं मांगलिक कार्य?

चूंकि चातुर्मास के दौरान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं, इसलिए उनके आशीर्वाद के बिना किए गए शुभ कार्यों को फलदायक नहीं माना जाता। इस समय को ध्यान और तप का मौसम कहा जाता है। इसीलिए विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण, नई संपत्ति खरीदना या नई शुरुआत करना— इन सभी कार्यों को टालने की परंपरा है।


🟢 चातुर्मास के पालन के उपाय और सावधानियां

  1. शुद्ध और सात्विक भोजन लें:
    इस अवधि में मांस, मछली, लहसुन, प्याज जैसे तामसिक आहार से परहेज करें। विशेष रूप से हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मेथी, सरसों नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन दिनों उनमें कीटाणु अधिक होते हैं।
  2. व्रत और नियमित पूजा करें:
    देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक एकादशी, प्रदोष, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे विशेष तिथियों पर व्रत रखें। विष्णु सहस्त्रनाम, भगवद गीता, और श्रीमद्भागवत का पाठ करें।
  3. क्रोध और अपवित्र वाणी से बचें:
    चातुर्मास में शांत, संयमित और सहनशील व्यवहार अपनाना चाहिए। झूठ, चुगली, अपशब्द या कठोरता से बचना जरूरी है।
  4. सेवा और दान करें:
    जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और अन्य आवश्यक चीजों का दान करें। इससे पुण्य बढ़ता है और नकारात्मकता दूर होती है।
  5. ध्यान और ब्रह्मचर्य का पालन करें:
    इन चार महीनों को आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयोग करें। ध्यान, योग और मौन साधना से मानसिक शांति मिलती है।
  6. रात्रि जागरण और नशीले पदार्थों से बचें:
    रात देर तक जागना, टीवी-मोबाइल पर समय नष्ट करना या शराब-सिगरेट जैसे विकारों से दूर रहें।

🔴 देवउठनी एकादशी को फिर से होंगे शुभ कार्य

1 नवंबर को जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागेंगे, तब से शुभ कार्य पुनः आरंभ होंगे। देवउठनी एकादशी से लेकर पूरे कार्तिक मास में विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण आदि मांगलिक आयोजन फिर से किए जा सकते हैं।


चातुर्मास सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक शुद्धि की प्रक्रिया है। यह वह काल है जब हम स्वयं की ओर लौटते हैं—भीतर की यात्रा पर निकलते हैं। यदि इन चार महीनों में संयम, साधना और सेवा को सही रूप में अपनाया जाए तो यह जीवन में अंतःकरण की शांति और धर्मिक समृद्धि का द्वार खोल सकते हैं।


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