ICICI बैंक घोटाला: चंदा कोचर को रिश्वत मामले में दोषी करार, ट्रिब्यूनल ने माना पद का दुरुपयोग
नई दिल्ली।
आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) चंदा कोचर को 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने और वीडियोकॉन समूह को अनुचित तरीके से लोन मंजूर करने के मामले में दिल्ली स्थित एक अपीलीय ट्रिब्यूनल ने दोषी करार दिया है। इस फैसले से न केवल देश की बैंकिंग व्यवस्था पर उठे सवालों को मजबूती मिली है, बल्कि एक बार फिर कॉर्पोरेट-राजनीतिक गठजोड़ की गंभीरता को उजागर किया है।
ट्रिब्यूनल का बड़ा फैसला, माना गया पद का दुरुपयोग
ट्रिब्यूनल ने माना कि चंदा कोचर ने बैंक में अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए नियमों और पारदर्शिता के मानकों की अनदेखी की।
उन पर आरोप है कि उन्होंने वीडियोकॉन समूह को 300 करोड़ रुपये का लोन मंजूर करने के बदले में रिश्वत ली, जो सीधे उनके पति दीपक कोचर की कंपनी को पहुंचाई गई।
यह राशि वीडियोकॉन समूह की एक इकाई SEPL से दीपक कोचर की कंपनी नूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड (NRPL) को ट्रांसफर की गई थी।
कागजों पर भ्रम, असल नियंत्रण कोचर परिवार के पास
ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि कागजी तौर पर NRPL का स्वामित्व वीडियोकॉन समूह के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत के नाम पर दर्शाया गया था, जबकि इसका वास्तविक नियंत्रण दीपक कोचर के पास था। दीपक कोचर कंपनी के प्रबंध निदेशक भी थे।
लोन मंजूरी के बाद मिली रिश्वत, बना धोखाधड़ी का आधार
ICICI बैंक ने 2012 में वीडियोकॉन समूह को कुल 3250 करोड़ रुपये का लोन दिया था, जिसमें से एक हिस्सा चंदा कोचर द्वारा स्वीकृत करने वाली क्रेडिट कमेटी से पास किया गया था।
जांच में पाया गया कि लोन पास होते ही रिश्वत स्वरूप एक बड़ी रकम कोचर के पति की कंपनी में भेज दी गई। बाद में यह लोन एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) में बदल गया, जिससे बैंक को भारी नुकसान हुआ।

ED और CBI की जांच के दायरे में दंपती
इस मामले की जांच 2016 में शुरू हुई थी, जब एक निवेशक अरविंद गुप्ता ने आरबीआई और प्रधानमंत्री कार्यालय को इस घोटाले की जानकारी दी थी। हालांकि, शुरू में इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।
2019 में जब मामला सामने आया, तो ईडी, सीबीआई, SFIO और आयकर विभाग जैसी विभिन्न जांच एजेंसियों ने सक्रियता दिखाई और मामले की छानबीन शुरू की।
24 जनवरी 2019 को FIR दर्ज की गई, जिसमें चंदा कोचर, दीपक कोचर, वेणुगोपाल धूत और चार कंपनियों के नाम शामिल किए गए।
संपत्ति जब्ती को सही ठहराया गया
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले में चंदा और दीपक कोचर की 78 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की थी।
हालांकि, 2020 में एक प्राधिकरण ने जब्ती को अवैध बताया था, लेकिन अब ट्रिब्यूनल ने ED के पक्ष को मानते हुए संपत्ति की जब्ती को पूरी तरह वैध ठहराया है।
गिरफ्तारी और कोर्ट का दखल
2020 में ED ने दीपक कोचर को गिरफ्तार किया था। बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
2022 में CBI ने चंदा और दीपक को गिरफ्तार किया, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2023 में उनकी गिरफ्तारी को गलत बताते हुए उन्हें रिहा कर दिया।

अब आगे की जांच और तेज़ होने की संभावना
अब जबकि ट्रिब्यूनल ने चंदा कोचर को दोषी करार दिया है, इस फैसले के बाद उनके खिलाफ आर्थिक अपराधों की जांच और कड़ी हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भारत के बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की दिशा में एक मजबूत कदम हो सकता है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा | और भी दिलचस्प खबरें आपके लिए… सिर्फ़ स्वदेश ज्योति पर!