थानों में सीसीटीवी काम नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान – हिरासत में मौतों पर चिंता
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर के पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी और उनका काम नहीं करने के मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 2020 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद थानों में सीसीटीवी कैमरे सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं।
इस मामले का संज्ञान एक अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर लिया गया। रिपोर्ट में उल्लेख था कि इस साल के सात-आठ महीनों के दौरान पुलिस हिरासत में लगभग 11 लोगों की मौत हो चुकी है।

2020 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं
सर्वोच्च न्यायालय ने 2 दिसंबर, 2020 को सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि उनके सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। आदेश में यह स्पष्ट किया गया था कि:
- सभी आगंतुक द्वार और पुलिस स्टेशनों के सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर कैमरे लगाना अनिवार्य है।
- कैमरों से ली गई रिकॉर्डिंग को कम से कम डेढ़ साल तक संरक्षित रखा जाए।
- यह कदम पुलिस ज्यादती और हिरासत में मौतों पर रोक लगाने के लिए जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश ऐसे समय में दिए थे जब पुलिस हिरासत में अत्यधिक मामलों की रिपोर्टें सामने आई थीं।
कोर्ट की चिंता और कार्रवाई
पीठ ने कहा कि यदि राज्यों ने इस आदेश का पालन नहीं किया तो यह कानून और नागरिकों के अधिकारों की अनदेखी मानी जाएगी। न्यायालय ने संबंधित राज्यों को सख्त चेतावनी दी है कि थानों में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना और नियमित संचालन सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सीसीटीवी कैमरों की मदद से पुलिस हिरासत में किसी भी तरह की मनमानी या दुराचार पर निगरानी रखी जा सकती है। इससे न केवल पुलिस का कार्यकुशलता बढ़ेगी बल्कि नागरिकों का भरोसा भी मजबूत होगा।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सीसीटीवी कैमरे पुलिस थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बेहद जरूरी हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन न करने से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है और यह न्यायिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाता है।

अगले कदम
सुप्रीम कोर्ट अब संबंधित राज्यों से रिपोर्ट तलब कर सकता है और यदि आवश्यक हुआ तो सख्त निर्देश और दंडात्मक कार्रवाई भी कर सकता है।
नागरिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे भी इस दिशा में जागरूक रहें और पुलिस हिरासत में किसी भी प्रकार की मनमानी की सूचना संबंधित अधिकारियों या मानवाधिकार संगठनों को दें।
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