ब्रिक्स समिट 2025: विदेश मंत्री जयशंकर करेंगे प्रतिनिधित्व, अमेरिका के दबाव और भारत की रणनीति
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा द्वारा बुलाई गई 8 सितंबर की ब्रिक्स वर्चुअल समिट में इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल नहीं होंगे। उनकी जगह भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर करेंगे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि भारत की ओर से विदेश मंत्री सम्मेलन में भाग लेकर बहुपक्षीय सहयोग और अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के मुद्दे पर चर्चा करेंगे।
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अमेरिका की शर्तें और भारत पर दबाव
हाल ही में अमेरिका के उद्योग मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने साफ कहा कि भारत पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ तभी हटेंगे जब भारत तीन शर्तों को स्वीकार करेगा—
- रूस से तेल खरीदना बंद करना।
- ब्रिक्स से बाहर होना।
- अमेरिका का समर्थन करना।
लुटनिक ने यह भी कहा कि भारत को यह तय करना होगा कि वह रूस और चीन के साथ खड़ा रहना चाहता है या अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार अमेरिका के साथ। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि भारत ने ब्रिक्स में बने रहने का निर्णय लिया तो उसे 50% तक के टैरिफ का सामना करना पड़ेगा।
भारत की रणनीति और पीएम मोदी की गैरमौजूदगी
विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी का ब्रिक्स वर्चुअल समिट से दूरी बनाना एक रणनीतिक संकेत है। भारत फिलहाल अमेरिका और ब्रिक्स देशों, दोनों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहता है। आने वाले समय में भारत को 2026 में ब्रिक्स की अध्यक्षता करनी है। ऐसे में मोदी का न शामिल होना यह दिखाता है कि भारत अमेरिका को नाराज किए बिना, अपने लिए जगह बनाना चाहता है।
भारत पहले ही कई मौकों पर स्पष्ट कर चुका है कि ब्रिक्स को वह अमेरिका-विरोधी मंच नहीं मानता। भारत का कहना है कि ब्रिक्स विकासशील देशों की आवाज उठाने का प्लेटफॉर्म है। यही कारण है कि भारत डी-डॉलराइजेशन जैसे किसी भी प्रयास का समर्थन नहीं करता और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को अहम मानता है।
रूस से तेल खरीद पर विवाद
यूक्रेन संकट के बाद भारत ने रूस से सस्ता कच्चा तेल बड़ी मात्रा में खरीदा। पहले भारत की कुल तेल खरीद में रूस की हिस्सेदारी लगभग 2% थी, जो अब 40% तक पहुँच गई है। अमेरिका का कहना है कि इससे रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है और यह उसके खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों को कमजोर करता है। यही वजह है कि अमेरिका बार-बार भारत से रूसी तेल खरीद बंद करने की मांग कर रहा है।
अमेरिका की टैरिफ रणनीति
अमेरिका ने भारत पर पहले ही 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। लुटनिक ने संकेत दिया कि यदि भारत ने अमेरिका की शर्तें नहीं मानीं तो यह दर 50% तक पहुँच सकती है। उनका दावा है कि भारत अमेरिकी बाजार पर निर्भर है और अंततः उसे अमेरिका के साथ समझौता करना ही होगा। उन्होंने यहां तक कह दिया कि “भारत एक-दो महीने में माफी मांगकर राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ बातचीत करेगा और नया सौदा करेगा।”
भारत का संतुलन साधने का प्रयास
भारत की विदेश नीति हमेशा से स्वतंत्र रही है। भारत रूस से ऊर्जा और रक्षा संबंध मजबूत रखना चाहता है, जबकि पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के साथ भी अपनी साझेदारी को गहराई देना चाहता है। यही कारण है कि भारत न तो अमेरिका की हर शर्त मान रहा है और न ही ब्रिक्स से पीछे हट रहा है।
2026 में भारत की ब्रिक्स अध्यक्षता
भारत 2026 में ब्रिक्स की अध्यक्षता करेगा और 18वां शिखर सम्मेलन आयोजित करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने 2025 में रियो डी जनेरियो में हुए ब्रिक्स समिट में भारत की प्राथमिकताएँ रखी थीं। इनमें प्रमुख बिंदु थे—
- मानवता पहले (Humanity First): लोगों के हितों को प्राथमिकता देने वाला मंच बनाना।
- लचीलापन और नवाचार (Resilience & Innovation): नई तकनीकों और सहयोग के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों से निपटना।
- सतत विकास (Sustainability): जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और वैश्विक स्वास्थ्य पर ध्यान।
- ग्लोबल साउथ की आवाज: विकासशील देशों के हितों को मजबूत करना और वैश्विक संस्थाओं में सुधार की मांग।
- आतंकवाद विरोध और आर्थिक मजबूती: साझा सुरक्षा और आर्थिक सहयोग बढ़ाना।
ब्रिक्स समिट से पहले भारत जिस तरह से कूटनीतिक कदम उठा रहा है, वह इस बात का संकेत है कि भारत दोनों ध्रुवों के बीच अपनी स्थिति संतुलित रखने का प्रयास कर रहा है। अमेरिका के दबाव और ब्रिक्स की जिम्मेदारी के बीच भारत के लिए आने वाले समय में विदेश नीति की चुनौती और भी जटिल होगी।
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