13 वर्ष की उम्र में ही ब्रह्माकुमारी आंदोलन से जुड़कर समर्पित किया संपूर्ण जीवन
सिरोही/आबूरोड। ब्रह्माकुमारी संस्था की प्रमुख आध्यात्मिक नेता राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी अब हमारे बीच नहीं रहीं। 101 वर्ष की उम्र में उन्होंने गुजरात के अहमदाबाद स्थित जाइडिस अस्पताल में सोमवार देर रात 1:20 बजे अंतिम सांस ली। उनका पार्थिव शरीर आबूरोड स्थित ब्रह्माकुमारीज के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन लाया जा रहा है, जहां उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए उनके अनुयायियों और श्रद्धालुओं को अंतिम दर्शन की अनुमति दी जाएगी। 10 अप्रैल को सुबह 10 बजे उनका अंतिम संस्कार होगा।
दादी रतनमोहिनी का जीवन समाज, नारी शक्ति और अध्यात्म को समर्पित रहा। उन्होंने महज 13 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़कर अपने पूरे जीवन को विश्व शांति, नैतिक जागृति और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए समर्पित कर दिया।
प्रभु-भक्ति में डूबी हुई एक विलक्षण साधिका
25 मार्च 1925 को सिंध (अब पाकिस्तान) के हैदराबाद में जन्मीं लक्ष्मी, बाद में विश्व उन्हें दादी रतनमोहिनी के नाम से जानने लगा। बचपन से ही ईश्वरभक्ति में रुझान था। जब उनके हमउम्र बच्चे खेलकूद में समय बिताते थे, लक्ष्मी ईश्वर की आराधना में लीन रहती थीं। 1937 में ब्रह्माकुमारी संस्था की स्थापना के साथ ही वे ब्रह्मा बाबा से जुड़ीं और जीवन की दिशा ही बदल गई।
ब्रह्मा बाबा की छाया बनी रहीं 32 वर्षों तक
दादीजी ने 1937 से लेकर ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने तक यानी 1969 तक उन्हें अपने गुरु के रूप में साया बनकर सेवा दी। ब्रह्मा बाबा कहते और दादी करतीं — यही उनकी पहचान बन गई थी।
शक्तिशाली नेतृत्व और अभूतपूर्व सेवाएँ
दादी रतनमोहिनी ने 1996 में बहनों की ट्रेनिंग और नियुक्तियों की जिम्मेदारी संभाली। उनके नेतृत्व में अब तक 6000 से अधिक सेवाकेंद्र स्थापित हुए हैं। 1956 से 1969 तक उन्होंने मुंबई में सेवा दी और वर्ष 1954 में जापान में आयोजित विश्व शांति सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
1985 के बाद 13 मेगा पदयात्राएं
दादीजी ने 1985 के बाद 13 बड़ी पदयात्राएं कीं। विशेष रूप से 2006 में आयोजित युवा पदयात्रा, जिसने 30,000 किलोमीटर की दूरी तय की और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुई। इसके अलावा देश के 67 शहरों में अखिल भारतीय नैतिक जागृति अभियान भी उनके नेतृत्व में सफलतापूर्वक चला।
डॉक्टरेट और अंतरराष्ट्रीय सम्मान
20 फरवरी 2014 को गुलबर्गा विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की, जो खास तौर पर युवाओं और महिलाओं के नैतिक व आध्यात्मिक सशक्तिकरण में उनके योगदान के लिए थी। उन्हें देश-विदेश में अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा गया।
दादी की दिनचर्या बनी प्रेरणा
101 वर्ष की आयु में भी दादी रतनमोहिनी की दिनचर्या अत्यंत अनुशासित थी। वे हर दिन ब्रह्ममुहूर्त में सुबह 3:30 बजे उठ जाती थीं। उनका जीवन संयम, साधना और सेवा की मिसाल रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दादी रतनमोहिनी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि “उन्हें प्रकाश, ज्ञान और करुणा की किरण के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।”
फैक्ट फाइल
- जन्म: 25 मार्च 1925, सिंध हैदराबाद
- ब्रह्माकुमारीज से जुड़ाव: 1937 (13 वर्ष की आयु में)
- मूल नाम: लक्ष्मी
- प्रमुख सेवाएँ: 1956–1969 मुंबई में सेवा, 1954 जापान में विश्व शांति सम्मेलन
- डॉक्टरेट: 2014, गुलबर्गा विश्वविद्यालय
- पदयात्राएं: 13 मेगा यात्राएं, 30,000 किमी, लिम्का रिकॉर्ड
- सेवाकेंद्र: 6000+ केंद्र दादी के नेतृत्व में
- प्रशिक्षित बहनें: 50,000 से अधिक
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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