बोट्सवाना से 8-10 चीते दिसंबर तक भारत लाने का प्रस्ताव — बन्नी घास व नौरादेही में बसाने की तैयारी
नई दिल्ली/गांधीनगर, 24 सितंबर (हि.स.)। केंद्र सरकार ने चीतों के पुनर्स्थापन परियोजना को मजबूत करने के लिए एक नया कदम उठाने का निर्णय लिया है। उच्च स्तरीय अधिकारियों और संबंधित सरकारी सूत्रों के अनुसार इस साल के अंत तक बोत्सवाना या नामीबिया से 8 से 10 चीतों का पहला जत्था भारत लाने की योजना अंतिम चरण में है, जबकि केन्या से चीतों की खेप अगले वर्ष आ सकती है। यह कदम देश में चीतों की स्थाई आबादी बढ़ाने और आनुवांशिक विविधता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्व रखता है।
क्यों बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है यह
चेतना परियोजना के अधिकारियों का मानना है कि विदेशी आबादी से समय-समय पर चीतों का आयात जैविक विविधता और आनुवांशिक हस्तांतरण के लिए आवश्यक है। भारत में चीतों के शावकों के जीवित रहने की दर अब वैश्विक औसत से ऊपर आ चुकी है, जिससे यह संकेत मिलता है कि अपनाई गई वन्यजीव प्रबंधन और रिहैबिलिटेशन तकनीकें कारगर साबित हो रही हैं। परियोजना के तहत आने वाली नई खेप से न केवल संख्या बढ़ेगी बल्कि लिंग और आनुवंशिक संतुलन भी बेहतर होगा, जो प्रजनन सफलता के लिए आवश्यक तत्व है।

कहाँ छोड़े जाने की संभावना है और तैयारियाँ कैसी हैं
सरकारी सूत्रों ने बताया कि गुजरात के बन्नी घास मैदान और मध्यप्रदेश के नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य को नए चीतों के बसाने के लिए चुना गया है। कूनो नेशनल पार्क और गांधीसागर अभयारण्य में अब तक मिली सफलता के अनुभव के आधार पर इन स्थानों को उपयुक्त ठहराया गया है और वहाँ के स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को ध्यान में रखते हुए शिकारभोजन और सुरक्षा ढाँचे पर काम चल रहा है। वहीं, बन्नी घास के मैदानों में छोड़े जाने वाले चीतों के लिए वहां के पारिस्थितिक और सामाजिक कारकों का पूर्वाभ्यास किया जा रहा है ताकि स्थानान्तरण के बाद उनके अनुकूलन की संभावनाएँ अधिक हों।
अब तक की प्रगति और वर्तमान संख्या
परियोजना की शुरुआत के बाद से भारत में कुल चीतों की संख्या बढ़कर करीब 27 पहुँच चुकी है और देश में अब तक 26 शावकों के जन्म की पुष्टि हुई है, जिनमें से कई स्वस्थ रूप से जीवित हैं। अधिकारियों ने यह भी कहा है कि शावकों की जीवन रेखा (सर्वाइवल रेट) लगभग 61 प्रतिशत से ऊपर दर्ज की जा रही है, जो वैश्विक मानक के तुलनात्मक आंकड़ों से बेहतर है। यह सफलता परियोजना की निगरानी, पशु चिकित्सा और मैदान पर सक्रिय संरक्षण प्रयासों का प्रत्यक्ष फल है।
पहले के आयात और अनुभव का महत्व
भारत ने 2022 में नामीबिया से पहले समूह और 2023 में दक्षिण अफ्रीका से अतिरिक्त चीतों का स्वागत कर इसे वैश्विक स्तर पर एक अनूठा संरक्षण प्रयास बनाया था। तब से प्राप्त अनुभव—जिनमें पुनर्वास, स्वास्थ्य परीक्षण, उपयुक्त निवास स्थान का चयन और वन्यजीव प्रबंधन शामिल हैं—नए आयात के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो रहे हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि हर नये समूह के साथ परियोजना की प्रबंधन नीतियों में सुधार और अनुभव समृद्ध हो रहे हैं।

चुनौतियाँ और सावधानियाँ जो बरती जा रही हैं
हालाँकि सफलता उत्साहजनक है, परन्तु दूसरी ओर चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। स्थानांतरण के दौरान बीमारी का जोखिम, नई आबादी का स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के साथ तालमेल, मानव-वन्य जीव संघर्ष की आशंका और उपयुक्त शिकारभोजन की उपलब्धता जैसी समस्याओं पर निरन्तर निगरानी और रणनीतिक प्रबंधन की आवश्यकता है। इसी कारण सरकार और वन्यजीव विशेषज्ञ दोनों मिलकर संजाल बनाए हुए हैं ताकि नए चीतों का आयात और उनके लिए उपयुक्त वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।
अगला चरण क्या होगा
अधिकारियों के अनुसार, दिसंबर तक पहला जत्था आने के बाद चीतों को प्रारम्भिक स्वास्थ्य परीक्षण, क्वारंटीन और फिर क्रमिक रूप से वन स्थानों में छोड़ा जाएगा। साथ ही स्थानीय समुदायों को भी शामिल करके मानव-वन्यजीव सहअस्तित्व को सुनिश्चित करने के उपाय लागू किए जाएंगे। सरकार योजना के तहत हर साल 10 से 12 चीतों के क्रमिक आयात पर काम कर रही है, ताकि दीर्घकालिक पुनर्स्थापन सुनिश्चित हो।
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