मराठा आरक्षण आंदोलन पर बॉम्बे हाईकोर्ट सख्त, प्रदर्शनकारियों को सड़कें खाली करने का आदेश

मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मुंबई में चल रहे आंदोलन ने अब न्यायपालिका का भी ध्यान खींचा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए बेहद सख्त रुख अपनाया और आंदोलन को शांतिपूर्ण मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि आंदोलनकारियों ने वे सभी शर्तें तोड़ी हैं, जिनके आधार पर उन्हें धरना देने की अनुमति दी गई थी।

कोर्ट की नाराजगी: शहर ठप, नियमों का उल्लंघन

न्यायमूर्ति रविंद्र घुगे और गौतम पाटिल की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि आंदोलन के कारण पूरा मुंबई शहर ठप हो चुका है। अदालत ने विशेष तौर पर यह भी रेखांकित किया कि प्रदर्शनकारियों को सिर्फ आज़ाद मैदान में धरना देने की इजाजत थी, लेकिन वे वहां तक सीमित नहीं रहे। आंदोलनकारियों ने छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, चर्चगेट स्टेशन, मरीन ड्राइव और यहां तक कि हाईकोर्ट के बाहर तक भीड़ इकट्ठी कर दी।

कोर्ट ने इसे शर्तों का सीधा उल्लंघन बताया और कहा कि प्रदर्शनकारियों ने अदालत को दिए गए अपने हलफनामे का पालन नहीं किया। न्यायाधीशों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि सड़कों पर गाड़ियां रोकी गईं, जजों और वकीलों के आवागमन में बाधा डाली गई, लोग सड़क पर नहाते-खाते दिखाई दिए और गंदगी फैलाई गई।

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सरकार को कड़े निर्देश

अदालत ने स्पष्ट आदेश दिया कि मंगलवार दोपहर 12 बजे तक मुंबई की सभी सड़कें खाली कर दी जाएं। साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि हालात सामान्य करने की जिम्मेदारी उसकी है। कोर्ट ने कहा कि केवल पांच हजार लोगों को आज़ाद मैदान में धरना जारी रखने की अनुमति होगी, बाकी सभी को तुरंत वहां से हटना होगा।

कोर्ट ने सरकार से यह सवाल भी पूछा कि अगर आने वाले दिनों में लाखों लोग मुंबई की ओर कूच करते हैं तो प्रशासन उनके लिए क्या व्यवस्था करेगा। इस पर सरकार ने दलील दी कि गणेशोत्सव की तैयारियों के कारण हालात संभालना कठिन हो रहा है। पुलिस बल का कड़ा इस्तेमाल संभव है लेकिन उससे हालात बिगड़ सकते हैं।

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जरांगे का आश्वासन बेअसर

मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे ने पहले पुलिस और प्रशासन को आश्वासन दिया था कि उनका विरोध शांतिपूर्ण रहेगा। लेकिन कोर्ट ने इस आश्वासन को केवल औपचारिकता करार दिया। अदालत ने कहा कि जरांगे और उनके समर्थकों ने हर शर्त का उल्लंघन किया है और अब सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे।

एडवोकेट जनरल बिरेन्द्र साराफ ने अदालत को बताया कि धरने की अनुमति केवल 29 अगस्त तक ही दी गई थी, इसके बाद भी आंदोलनकारी शहर के विभिन्न हिस्सों में डटे रहे।

नागरिकों के अधिकार और जिम्मेदारी

अदालत ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि हर नागरिक को विरोध करने और अपनी बात रखने का अधिकार है। लेकिन यह अधिकार केवल तभी मान्य है जब वह शांतिपूर्ण और तय नियमों के दायरे में हो। यदि आंदोलन से आम नागरिकों का जीवन प्रभावित होता है और शहर की व्यवस्था चरमराने लगती है, तो सरकार और अदालत दोनों का दायित्व है कि वे हस्तक्षेप करें।

अगली सुनवाई आज

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को तय की है। अदालत ने संकेत दिया है कि यदि हालात नहीं सुधरे, तो वह सरकार को सख्त कदम उठाने का निर्देश देने से पीछे नहीं हटेगी।