भाजपा ने सीपी राधाकृष्णन को बनाया उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार, बदली रणनीति
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर बड़ा दांव खेला है। रविवार को हुई भाजपा संसदीय बोर्ड की अहम बैठक में सीपी राधाकृष्णन के नाम पर मुहर लग गई। इसके साथ ही पार्टी ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि इस बार उपराष्ट्रपति पद पर किसी मुखर और टकराव वाली छवि वाले नेता को आगे करने की बजाय एक सौम्य, संतुलित और समावेशी चेहरे को लाने की रणनीति अपनाई गई है।
कौन हैं सीपी राधाकृष्णन
सीपी राधाकृष्णन का नाम दक्षिण भारत की राजनीति में एक सशक्त पहचान रखता है। वे लंबे समय से भाजपा से जुड़े हुए हैं और संगठन में उनका योगदान बेहद अहम माना जाता है। राधाकृष्णन मूलतः तमिलनाडु से आते हैं और वहां भाजपा की स्थिति को मजबूत करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। वे दो बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं और संगठनात्मक स्तर पर भी उनका अनुभव समृद्ध है।
भाजपा की बदली रणनीति
पिछली बार उपराष्ट्रपति पद के लिए भाजपा ने जगदीप धनखड़ जैसे मुखर और स्पष्टवादी नेता को आगे किया था, जिन्होंने अपने कार्यकाल में कई बार सरकार और विपक्ष के बीच हुए विवादों में सख्त और निर्णायक रुख अपनाया। लेकिन इस बार पार्टी ने इसके विपरीत एक ऐसा चेहरा चुना है जो संवाद, संतुलन और समावेशिता के लिए जाना जाता है। माना जा रहा है कि यह बदलाव पार्टी की उस नई रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत आने वाले समय में सहयोगी दलों के साथ बेहतर तालमेल और संसद में सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने की कोशिश की जाएगी।
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दक्षिण भारत पर नजर
भाजपा लंबे समय से दक्षिण भारत में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए प्रयासरत है। ऐसे में सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना सिर्फ एक संवैधानिक पद भरना नहीं है, बल्कि यह भाजपा का दक्षिण भारत को साधने का भी प्रयास माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तमिलनाडु जैसे राज्यों में भाजपा का जनाधार सीमित है और वहां से उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करना एक रणनीतिक संदेश है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि विपक्ष की ओर से अभी आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज है कि भाजपा का यह कदम विपक्ष के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। विपक्ष के सामने दोहरी स्थिति होगी—एक ओर उन्हें भाजपा के उम्मीदवार का मुकाबला करना होगा और दूसरी ओर राधाकृष्णन जैसे अपेक्षाकृत सौम्य चेहरे का विरोध करना उनके लिए सहज नहीं होगा।
संसदीय राजनीति में बदलाव का संकेत
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह निर्णय सिर्फ उपराष्ट्रपति पद तक सीमित नहीं है बल्कि संसदीय राजनीति में भी एक नए दौर की शुरुआत का संकेत है। भाजपा अब संसद में टकराव की बजाय सहयोग और संवाद की छवि को आगे बढ़ाना चाहती है। सीपी राधाकृष्णन की छवि इसी रणनीति से मेल खाती है।
भाजपा का यह फैसला न केवल राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेगा बल्कि देश की संसदीय राजनीति की दिशा भी तय कर सकता है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि विपक्ष किस उम्मीदवार को मैदान में उतारता है और आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव में किस तरह का मुकाबला सामने आता है।
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