नई दिल्ली। ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसमें जीवन की संभावनाओं को लेकर किए गए नए शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि महाविस्फोट (बिग बैंग) के 10 से 20 करोड़ साल बाद ही पानी का निर्माण होने लगा था। यह निष्कर्ष वैज्ञानिकों के लिए चौंकाने वाला है क्योंकि पहले यह माना जाता था कि पानी के निर्माण में इससे अधिक समय लगा होगा। यह अध्ययन प्रतिष्ठित शोध पत्रिका नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित हुआ है।
सुपरनोवा विस्फोट और पानी का निर्माण
वैज्ञानिकों के अनुसार, सुपरनोवा यानी विशाल तारों के विस्फोट ब्रह्मांड के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये न केवल ग्रहों और अन्य खगोलीय पिंडों के निर्माण में सहायक होते हैं बल्कि जीवन की संभावनाओं के लिए आवश्यक भारी तत्वों का भी निर्माण करते हैं।
पानी को जीवन की उत्पत्ति का एक अहम तत्व माना जाता है। पहले हुए शोधों में यह संकेत मिला था कि पानी धातुओं और गैसों के मिश्रण से बन सकता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि ब्रह्मांड में पानी का निर्माण कब और कैसे हुआ। नए शोध में इस सवाल का जवाब खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने दो अलग-अलग सुपरनोवा विस्फोटों के कंप्यूटर मॉडल तैयार किए।
शोध के दो मॉडल और निष्कर्ष
शोध के लिए वैज्ञानिकों ने दो अलग-अलग प्रकार के सुपरनोवा विस्फोटों का अध्ययन किया। पहला मॉडल एक ऐसे तारे का था, जिसका द्रव्यमान सूर्य से 13 गुना अधिक था, जबकि दूसरा मॉडल 200 गुना बड़े तारे के विस्फोट पर आधारित था। दोनों मॉडलों के विश्लेषण से वैज्ञानिकों ने पाया कि:
- पहले मॉडल में 0.051 सौर द्रव्यमान के बराबर ऑक्सीजन का निर्माण हुआ।
- दूसरे मॉडल में 55 सौर द्रव्यमान के बराबर ऑक्सीजन बनी।
- ये अत्यधिक ऊष्मा और घनत्व की स्थितियों में संभव हुआ।
जब यह ऑक्सीजन ठंडी हुई और सुपरनोवा द्वारा छोड़ी गई हाइड्रोजन के संपर्क में आई, तो घने गैसीय गुच्छों में पानी का निर्माण हुआ। यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि पानी की उत्पत्ति ब्रह्मांड में अपेक्षाकृत जल्दी हो गई थी। संभवतः ये पानी से भरे गैसीय गुच्छे बाद में दूसरी पीढ़ी के तारों और ग्रहों के निर्माण में सहायक बने।
पृथ्वी पर पानी की मौजूदगी के प्रमाण
शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि प्रारंभिक आकाशगंगाओं में पानी बचा रहा, तो यह ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया में भी शामिल हुआ होगा। इसका अर्थ यह है कि जीवन की संभावना ब्रह्मांड के प्रारंभिक इतिहास में ही बन गई थी।
भूवैज्ञानिक साक्ष्यों के अनुसार, पृथ्वी पर पानी की मौजूदगी 3.8 अरब साल पहले ही हो चुकी थी। वैज्ञानिकों को इसुआ ग्रीनस्टोन बेल्ट से पिलो बेसाल्ट (पानी के नीचे ज्वालामुखीय विस्फोट से बनने वाली चट्टान) के नमूने मिले हैं, जो यह पुष्टि करते हैं कि उस समय पृथ्वी पर पहले से ही तरल पानी मौजूद था।

क्या यह खोज जीवन की खोज में सहायक होगी?
यह अध्ययन यह संकेत देता है कि पानी ब्रह्मांड में उतना दुर्लभ नहीं है, जितना पहले सोचा जाता था। अगर पानी ब्रह्मांड के आरंभिक दौर से ही मौजूद था, तो इसका मतलब यह हो सकता है कि जीवन भी कई ग्रहों पर विकसित हो सकता है। यह खोज एक्सोप्लैनेट्स (सौर मंडल के बाहर स्थित ग्रहों) पर जीवन की संभावना को समझने में मदद कर सकती है।
वैज्ञानिकों का अगला कदम इस शोध को और गहराई से जांचना और ब्रह्मांड के विभिन्न हिस्सों में पानी की मौजूदगी के और सबूत जुटाना होगा।
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