भोपाल-इंदौर मेट्रोपॉलिटन सिटी विधेयक पारित: सरकार का विकास एजेंडा और विपक्ष की चिंताएं
भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा में आज एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया, जब इंदौर और भोपाल को मेट्रोपॉलिटन सिटी घोषित करने के लिए प्रस्तुत मेट्रोपॉलिटन सिटी विधेयक पर चर्चा के बाद उसे पारित कर दिया गया। सरकार का दावा है कि यह विधेयक प्रदेश के औद्योगिक और सामाजिक विकास को गति देगा, जबकि विपक्ष ने इसे किसानों की जमीन और स्थानीय अधिकारों पर खतरा बताया है।
सरकार की मंशा: रोजगार और आधुनिकता की ओर कदम
विधानसभा में चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने स्पष्ट किया कि सरकार की प्राथमिकता रोजगारपरक उद्योगों की स्थापना और महिलाओं की कार्य भागीदारी बढ़ाने की है। उन्होंने कहा:
- महिला कर्मचारियों को ₹6000 और पुरुष कर्मचारियों को ₹5000 तक का इंसेंटिव मिलेगा।
- जहां उद्योग लगेंगे, वहीं हॉस्टल बनाए जाएंगे, जिससे महिलाएं रात की पाली में भी सुरक्षित रूप से काम कर सकें।
- श्रम कानूनों में बदलाव की तैयारी की जा रही है ताकि उद्योगों के लिए अनुकूल वातावरण बन सके।
- इंजीनियरिंग कॉलेजों के कैंपस में आईटी पार्क, उज्जैन में साइंस सिटी और इसरो की तर्ज पर रिसर्च सेंटर की स्थापना की दिशा में कार्य हो रहा है।

विपक्ष की चिंता: किसानों की जमीन, स्थानीय अधिकार और पारदर्शिता
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार की मंशा पर कई सवाल उठाए:
- उन्होंने कहा कि देश के मेट्रोपॉलिटन क्षेत्रों के विकास में वर्षों लगे हैं, और मध्यप्रदेश की ग्रामीण पहचान को नजरअंदाज किया जा रहा है।
- सिंघार ने पीथमपुर क्षेत्र की दुर्दशा का जिक्र करते हुए कहा कि वहां न तो पीने का पानी है, न ही बुनियादी सुविधाएं।
- उनकी चिंता थी कि भूमि बैंक बनाकर किसानों की जमीनें कौड़ियों के भाव अधिग्रहीत कर उद्योगपतियों को मनचाही कीमत पर बेची जाएंगी।
- उन्होंने कहा, “जनता आज सड़कों पर पानी की मांग कर रही है, लेकिन सरकार 2047 के सपने दिखा रही है।”
भूमि अधिग्रहण और पारदर्शिता पर उठा सवाल
चर्चा में यह भी उठाया गया कि:
- भोपाल और इंदौर के आसपास 2 से 3 करोड़ रुपए प्रति एकड़ तक की जमीन के भाव हैं, लेकिन विधेयक में यह स्पष्ट नहीं है कि किसानों को बाजार मूल्य मिलेगा या नहीं।
- स्थानीय निकायों की भूमिका और अधिकारों पर कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
- सिर्फ 30 दिन की आपत्ति दर्ज करने की समयसीमा को भी असंगत बताया गया।
सरकार की सफाई और योजना: सबका साथ, सबका विकास
विधानसभा में शहरी विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विधेयक का बचाव करते हुए कहा:
- देश की सभी मेट्रोपॉलिटन सिटी का अध्ययन करने के बाद यह विधेयक तैयार किया गया है।
- मुख्यमंत्री मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी के अध्यक्ष होंगे, जिसमें सांसद, विधायक, महापौर, पार्षद और जनपद पंचायत अध्यक्षों को शामिल किया जाएगा।
- उन्होंने कहा कि “इंदौर नगर निगम आज देश के लिए उदाहरण बन चुका है, जो स्वयं पर निर्भर है।”
- 25 वर्षों का मास्टर प्लान तैयार किया गया है जिससे दीर्घकालिक विकास को सुनिश्चित किया जाएगा।

लैंड पूलिंग योजना और किसानों को लाभ
विजयवर्गीय ने विपक्ष की चिंताओं का जवाब देते हुए कहा:
- सरकार लैंड पूलिंग के माध्यम से अधिग्रहण की गई जमीन का 50% भाग विकास के बाद किसानों को लौटा रही है, जिसकी कीमत बाजार मूल्य से अधिक होती है।
- इंदौर-पीथमपुर कॉरिडोर में जमीन की कीमतें 10 गुना तक बढ़ चुकी हैं।
- उन्होंने स्पष्ट किया कि “हमारी नीयत साफ है, किसी गरीब या किसान को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा।”
टैक्स और नगरीय निकायों की भूमिका
विजयवर्गीय ने नगरीय निकायों की उदासीनता पर चिंता जताते हुए कहा:
- “जनप्रतिनिधियों को साहस दिखाना होगा, टैक्स वसूलने की जिम्मेदारी निभानी होगी।”
- उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे बनारस में इंदौर मॉडल के जरिए सफाई व्यवस्था लागू की जा रही है।
निष्कर्ष: विकास बनाम आशंका
इंदौर और भोपाल को मेट्रोपॉलिटन सिटी घोषित करने वाला यह विधेयक एक महत्वाकांक्षी विकास योजना का हिस्सा है। सरकार जहां इसे औद्योगिकीकरण, रोजगार और शहरी विकास का माध्यम मान रही है, वहीं विपक्ष इसे किसानों और ग्रामीण जनता के हितों पर संकट के रूप में देख रहा है।
फिलहाल, यह देखना होगा कि इस विधेयक के नियंत्रण, पारदर्शिता और निष्पक्षता के प्रावधान जमीन पर किस तरह लागू होते हैं, और क्या वास्तव में इसका लाभ सभी वर्गों तक पहुंच पाता है या नहीं।

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