भोपाल में छह दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम सम्पन्न, पर्यावरणीय स्थिरता पर जोर
पर्यावरणीय स्थिरता पर विशेषज्ञों ने साझा किए विचार, विज्ञान, नीतियों और पारंपरिक ज्ञान के समेकन पर जोर
भोपाल, 27 सितम्बर। श्री सत्य साईं महिला महाविद्यालय, भोपाल में वनस्पति विज्ञान एवं सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग, आईक्यूएसी तथा पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (EPCO) के संयुक्त तत्वावधान में “पर्यावरणीय स्थिरता : विज्ञान, नीतियों एवं पारंपरिक ज्ञान का समेकन एक सुदृढ़ भविष्य हेतु” विषय पर छह दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम (एफडीपी) का आयोजन 22 से 27 सितम्बर 2025 तक सफलतापूर्वक किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ और आयोजन
इस महत्त्वपूर्ण आयोजन का शुभारंभ महाविद्यालय की निदेशक डॉ. प्रतिभा सिंह, प्राचार्य डॉ. अर्चना श्रीवास्तव और विधि प्राचार्य डॉ. अंजु बाजपेयी के मार्गदर्शन में हुआ। संचालन एवं संयोजन की जिम्मेदारी डॉ. रेनू मिश्रा (उप-प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष), डॉ. शिखा मंडलोई, डॉ. निशि यादव और सुप्रिया गुप्ता ने निभाई।
विशेषज्ञों के व्याख्यान और दृष्टिकोण
कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर के ख्यात विशेषज्ञों ने पर्यावरणीय स्थिरता, हरित प्रौद्योगिकी, पारंपरिक ज्ञान, जलवायु परिवर्तन और नीतिगत ढाँचों पर विस्तृत विचार रखे।
- लोकेंद्र ठक्कर (मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी, EPCO भोपाल) ने भारत की ग्रीन क्रेडिट योजना और कार्बन अवशोषण में पौधों की भूमिका पर प्रकाश डाला।
- मुस्कान आनंद (ग्लोबल यूथ एडवोकेट एवं शोधकर्ता, जम्मू-कश्मीर) ने भारतीय और वैश्विक दृष्टिकोण साझा किए और युवाओं की भूमिका पर चर्चा की।
- डॉ. साक्षी भारद्वाज (संस्थापक, Jungle Vase, भोपाल) ने पारंपरिक ज्ञान और पर्यावरणीय सततता के संबंध में अपनी अंतर्दृष्टि प्रस्तुत की।
- डॉ. किरण बाला (प्रोफेसर, IIT इंदौर) ने हरित प्रौद्योगिकी और उसके उपयोगी पहलुओं पर विस्तार से व्याख्यान दिया।
- डॉ. अंजु बाजपेयी (प्राचार्य, श्री सत्य साईं लॉ कॉलेज, भोपाल) ने पर्यावरणीय कानून और नीतिगत ढाँचे पर विचार रखे।
- डॉ. नीना अरोड़ा (आईक्यूएसी समन्वयक एवं विभागाध्यक्ष, रसायनशास्त्र) ने जलवायु परिवर्तन और सतत विश्व निर्माण पर अपना दृष्टिकोण साझा किया।
कार्यक्रम का महत्व और निष्कर्ष
समापन सत्र में वक्ताओं और प्रतिभागियों ने इस विषय को वर्तमान शैक्षिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अत्यंत प्रासंगिक बताया। उनका कहना था कि इस प्रकार के कार्यक्रम न केवल शिक्षकों को नवीनतम ज्ञान और अनुसंधान से परिचित कराते हैं, बल्कि उन्हें अपने शिक्षण कार्य में सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को एकीकृत करने के लिए प्रेरित भी करते हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए विज्ञान, नीति और पारंपरिक ज्ञान का समेकन आवश्यक है। पारंपरिक ज्ञान स्थानीय समुदायों को स्थिरता और संरक्षण का व्यावहारिक अनुभव प्रदान करता है, जबकि आधुनिक विज्ञान और तकनीक इन प्रयासों को वैश्विक स्तर तक ले जाने की क्षमता रखती है।

देशभर से हुई सहभागिता
इस छह दिवसीय आयोजन में देशभर से आए शिक्षकों और शोधार्थियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। प्रतिभागियों ने पर्यावरणीय विषयों पर गहन चर्चा की और अनुसंधान कार्य को और अधिक पर्यावरण-संवेदनशील बनाने के सुझाव साझा किए। उनकी सक्रिय सहभागिता ने इस कार्यक्रम को सफल और प्रभावशाली बना दिया।
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