नई दिल्ली। भारत ने एक महत्वपूर्ण रक्षा तकनीकी उपलब्धि प्राप्त की है, जिसने चीन की सेना के एयरबेस को भारत के निशाने पर ला दिया है। भारत ने अब हाइपरसोनिक मिसाइलों के क्षेत्र में एक नई छलांग लगाई है, जिसके परिणामस्वरूप चीन के तिब्बती पठार और उससे आगे स्थित एयरबेस को निशाना बनाने में सक्षम होगा। भारत द्वारा विकसित की गई यह लंबी दूरी वाली हाइपरसोनिक मिसाइल 1500 किमी से अधिक की सीमा तक अपने लक्ष्य को सटीक रूप से नष्ट करने में सक्षम है।
हाइपरसोनिक मिसाइल की विशेषताएं
भारत की यह हाइपरसोनिक मिसाइल ध्वनि की गति से आठ गुना अधिक यानी लगभग 3 किमी प्रति सेकंड की गति से यात्रा करती है, जिससे यह मिसाइल एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है। यह दुनिया की सबसे लंबी दूरी की पारंपरिक हाइपरसोनिक मिसाइल है, जिसे अभी तक किसी और देश ने नहीं विकसित किया है। भारत की यह मिसाइल न केवल पारंपरिक हथियारों को ले जाने में सक्षम है, बल्कि परमाणु हथियारों को भी लेकर उड़ सकती है।
भारत की रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के अनुसार, यह हाइपरसोनिक मिसाइल लगभग 1500 किमी की दूरी तक प्रभावी है, जिससे भारतीय सेना को चीनी सेना के एयरबेस और अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बनाने की क्षमता प्राप्त हुई है। इस मिसाइल की सटीकता, रेंज और गति उसे एक विशेष रणनीतिक ताकत प्रदान करती है, जिससे भारतीय सशस्त्र बलों को एक महत्वपूर्ण बढ़त प्राप्त होगी।
चीनी शहरों और एयरबेस को खतरा
भारत की हाइपरसोनिक मिसाइल की रेंज में चीन के कई महत्वपूर्ण शहर और सैन्य ठिकाने शामिल हैं। इसमें चांगजी, उरुमकी, गोलमुंड, उक्सकताल, झांगये और गुइलिन जैसे शहर आते हैं, जो चीनी पश्चिमी और दक्षिणी थिएटर कमांड के महत्वपूर्ण एयरबेस हैं। इस मिसाइल के लैंड अटैक संस्करण में, भारत इन ठिकानों को 1500 किमी तक की दूरी से निशाना बना सकता है।
इस तकनीकी उन्नति ने भारत को न केवल अपनी रक्षा क्षमता को मजबूत करने का मौका दिया है, बल्कि वह अब चीन के सैन्य ठिकानों को सीधे निशाना बनाने की स्थिति में है, जो भारत के लिए एक बड़ी रणनीतिक उपलब्धि है।
डीआरडीओ का हाइपरसोनिक तकनीकी परीक्षण
डीआरडीओ ने 16 नवंबर 2023 को इस हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया था, जो भारतीय रक्षा प्रणाली के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। इस परीक्षण के दौरान, मिसाइल ने अपनी अधिकतम गति 3 किमी प्रति सेकंड तक पहुंचाई और 1500 किमी से अधिक की दूरी तय की। इस सफलता से भारतीय रक्षा विज्ञान में एक नई दिशा का सूत्रपात हुआ है, और यह तकनीक भारतीय सशस्त्र बलों को अत्यधिक सटीक और प्रभावी हमलों का सामर्थ्य प्रदान करेगी।
स्वदेशी तकनीक से मिली सफलता
इस हाइपरसोनिक मिसाइल के विकास में डीआरडीओ की प्रमुख भूमिका रही है। विशेष रूप से, सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट (एसएफडीआर) प्रणाली का प्रयोग किया गया है, जो एक स्वदेशी तकनीक है। डीआरडीओ ने इस प्रणाली का परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) में किया, जो पूरी तरह से सफल रहा। इस परीक्षण में कई रेंज इंस्ट्रूमेंट्स जैसे टेलीमेट्री, रडार और इलेक्ट्रो ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम ने मिसाइल की सटीकता और सफलता की पुष्टि की।
एसएफडीआर को हैदराबाद की रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला और पुणे की उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला के सहयोग से विकसित किया गया है। यह प्रणाली भारत को लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के निर्माण में सक्षम बनाएगी, जो भारतीय वायुसेना की ताकत को बढ़ाएगी।
भारत की रक्षा क्षमता में वृद्धि
यह मिसाइल तकनीक भारत की रक्षा क्षमता को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। हाइपरसोनिक मिसाइलों के क्षेत्र में भारत का यह विकास न केवल अपनी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में भारत को एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करेगा। अब भारत न केवल सटीक, लंबी दूरी वाली हाइपरसोनिक मिसाइलों के मामले में अग्रणी बन चुका है, बल्कि यह भविष्य में रक्षा प्रौद्योगिकी के नए आयाम स्थापित करेगा।
इस सफलता के साथ, भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है और उसकी सैन्य क्षमता दिन-ब-दिन और भी अधिक सशक्त हो रही है।