इंदौर में ‘संघ-साधक’ पुस्तक का विमोचन, साधना और समर्पण के महत्व पर बोले आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक

फल की चिंता करने वाला साधक साधना का आनंद खो देता है: भैयाजी जोशी

इंदौर, 5 नवंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भैयाजी जोशी ने बुधवार को कहा कि जो साधक अपने कर्म का फल सोचने में उलझ जाता है, वह साधना के आनंद से वंचित हो जाता है। साधक को अपने मार्ग पर निष्ठा, समर्पण और निष्काम भाव से आगे बढ़ना चाहिए।

वे यह बात माधवाश्रम न्यास गौशाला मंडलेश्वर के संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय अरविंद जोशी की जीवन स्मृतियों पर आधारित पुस्तक ‘संघ-साधक’ के विमोचन अवसर पर इंदौर में कह रहे थे। यह कार्यक्रम गणेश मंडल में आयोजित हुआ, जहां आरएसएस, माधवाश्रम न्यास और अर्चना प्रकाशन के प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

“संघ ने सामान्य व्यक्तियों को साधक बनने का अवसर दिया”

भैयाजी जोशी ने कहा कि संघ की 100 वर्षों की साधना यात्रा में अनगिनत सामान्य व्यक्तियों ने सेवा और राष्ट्रकार्य के माध्यम से साधक बनने का अवसर प्राप्त किया है। उन्होंने कहा कि संघ का कार्य केवल संगठन नहीं, बल्कि “साधना का मार्ग” है, जिसमें व्यक्ति समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए समर्पित रहता है।

उन्होंने स्व. अरविंद जोशी के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि वे केवल कार्यकर्ता नहीं, बल्कि एक सच्चे साधक थे जिन्होंने जीवनभर संघ के मूल्यों को आत्मसात किया।

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“साधन के प्रति स्नेह उचित, पर स्मरण रहे साध्य का”

अपने संबोधन में भैयाजी जोशी ने कहा —

“कभी-कभी साधक को अपने साधन से प्रेम हो जाता है। साधन के प्रति स्नेह में कोई आपत्ति नहीं, परंतु स्मरण सदैव साध्य का रहना चाहिए। जो व्यक्ति केवल साधन में उलझ जाता है, वह साधना के उद्देश्य को खो देता है।”

उन्होंने कहा कि फल की चिंता करने वाला व्यक्ति साधना की आंतरिक प्रसन्नता से दूर हो जाता है, जबकि निष्काम भाव से कार्य करने वाला साधक सदैव शांत और प्रसन्न रहता है।

भैयाजी ने आगे कहा कि साधना के पथ पर चलने वाले व्यक्ति के लिए अंतःशुद्धि और बाह्यशुद्धि, पूर्ण समर्पण, तथा अपने कार्य के प्रति निष्ठा आवश्यक है।

“साधना का मार्ग सबको साथ लेकर चलने का मार्ग है”

भैयाजी जोशी ने कहा कि संघ ने सबको साथ लेकर चलने का संस्कार दिया है।
उन्होंने कहा —

“हम अकेले साधक नहीं हैं। साधना तभी पूर्ण होती है जब हम सबको साथ लेकर चलें। किसी को अपना बनाना है, लेकिन अपने जैसा बनाने का दुराग्रह नहीं करना है।”

उनका यह संदेश समाज में समरसता, सहयोग और व्यापकता के संघ के आदर्शों को अभिव्यक्त करता है।

‘संघ-साधक’ पुस्तक: एक प्रेरणादायी जीवन का दस्तावेज़

अर्चना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘संघ-साधक’ पुस्तक में स्वर्गीय अरविंद जोशी के जीवन की घटनाओं और स्मृतियों को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक में उनके संघ जीवन, समाजसेवा, गौसंवर्धन और शिक्षण कार्य से जुड़े अनुभवों को विस्तार से लिखा गया है।

कार्यक्रम में मालवा प्रांत संघचालक एवं श्री माधवाश्रम न्यास के अध्यक्ष डॉ. प्रकाश शास्त्री, अर्चना प्रकाशन के ओमप्रकाश गुप्ता, और अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

कार्यक्रम के अंत में भैयाजी जोशी ने पुस्तक के लेखकों और संपादकों को बधाई दी तथा उपस्थित स्वयंसेवकों से कहा कि वे स्व. अरविंद जोशी जैसे साधकों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने कार्य में साधना और निष्ठा का भाव जोड़ें।

यह पुस्तक अब इंदौर स्थित माधव वस्तु भंडार में उपलब्ध है।