बांके बिहारी मंदिर के तोशाखाने का खजाना खुला: सोने-चांदी की छड़ें, नग और सिक्के मिले, तहखाने तक की जांच पूरी
दूसरे दिन भी जारी रहा खजाने का खुलना, टीम ने ग्राइंडर से काटा मुख्य दरवाज़ा, नीचे मिला खाली तहखाना — संदूकों में मिले प्राचीन धातु के बर्तन और बहुमूल्य वस्तुएं
वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के तोशाखाने में रविवार को दूसरे दिन भी खजाना खोलने की प्रक्रिया जारी रही। यह ऐतिहासिक क्षण उस समय और भी खास बन गया जब मंदिर प्रशासन और जांच कमेटी ने वर्षों से बंद पड़े इस खजाने के द्वार को ग्राइंडर मशीन की मदद से खोला। जैसे ही दरवाजा खुला, सभी की निगाहें उस रहस्यमयी कमरे पर टिक गईं, जिसके भीतर वर्षों से अज्ञात वस्तुएं बंद थीं।
🔸 लकड़ी के संदूकों में छिपा खजाना
खजाने के मुख्य दरवाजे के अंदर बने कमरे में लकड़ी के दो संदूक मिले — एक बड़ा और दूसरा छोटा। जब इन संदूकों को खोला गया तो अंदर से कीमती धातुओं के बर्तन, नग, रत्न और पुराने सिक्के मिले। बारीकी से देखने पर पता चला कि इन बर्तनों में कुछ सोने-चांदी की कलाकृतियां हैं, जिन पर हल्की धूल और कालापन जमा था, परंतु उनकी चमक अब भी बरकरार थी।
संदूकों की जांच के दौरान मंदिर कर्मचारियों और समिति के सदस्यों ने वस्तुओं को सावधानीपूर्वक निकाला और साफ करने के बाद अधिकारियों को सौंपा। इस प्रक्रिया में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।

🔸 मिला एक लंबा लकड़ी का बक्सा — उसमें थीं चमचमाती छड़ें
खजाने के कमरे में एक लंबा लकड़ी का बक्सा भी मिला। जब इसे खोला गया, तो उसमें से एक सोने की छड़ी और तीन चांदी की छड़ें मिलीं। चांदी की छड़ों पर गुलाल के निशान साफ दिखाई दे रहे थे, जिससे समिति ने अनुमान लगाया कि यह वही छड़ें हैं जिनसे ठाकुर जी यानी बांके बिहारी जी होली खेलते थे।

समिति के सदस्य दिनेश गोस्वामी ने बताया,
“छड़ों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ठाकुर जी इनसे रंग-गुलाल खेलते थे। संभवतः धुरेली के दिन सोने की छड़ी का उपयोग किया गया होगा, जबकि चांदी की छड़ों से रंगोत्सव मनाया गया होगा।”
यह खोज मंदिर के धार्मिक इतिहास और परंपराओं को और अधिक गहराई से समझने का एक नया अध्याय खोलती है।

🔸 तहखाने तक की गई जांच — निकला एकदम साफ
मुख्य कमरे की तलाशी के बाद टीम ने सीढ़ियों से नीचे उतरकर तहखाने की जांच की। यह तहखाना वर्षों से बंद था और इसके अंदर क्या है, इसे लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन जब कमेटी के सदस्य एक-एक करके नीचे उतरे, तो पाया कि तहखाना एकदम साफ-सुथरा और खाली है। वहां कोई वस्तु या संदूक नहीं मिला।
टीम ने पूरे क्षेत्र का निरीक्षण कर यह सुनिश्चित किया कि किसी भी जगह कोई छिपा हुआ खंड या अतिरिक्त द्वार नहीं है।
🔸 सुरक्षा के बाद फिर से सील किया गया तोशाखाना
खजाने की खोज और दस्तावेज़ीकरण का कार्य पूरा होने के बाद, सभी वस्तुओं को यथास्थान रखा गया। इसके बाद मुख्य दरवाजे को लोहे की रॉड से वेल्डिंग कराके बंद किया गया।
दरवाजे की कुंडियों को लोहे की चेन और ताले से बंद कर दिया गया तथा बाहर से सफेद कपड़े से तोशाखाने को सील कर दिया गया।
पूरी प्रक्रिया मंदिर प्रबंधन समिति, जिला प्रशासन और सुरक्षा अधिकारियों की मौजूदगी में संपन्न हुई।
🔸 रहस्य और आस्था का संगम
बांके बिहारी मंदिर का तोशाखाना सदियों से श्रद्धा और रहस्य का केंद्र रहा है। कहा जाता है कि इस कक्ष में ठाकुर जी के उपयोग में आने वाली बहुमूल्य वस्तुएं, परंपरागत बर्तन और धार्मिक सामग्री रखी जाती रही हैं। इस खजाने का खुलना न केवल मंदिर की ऐतिहासिक संपत्ति को उजागर करता है, बल्कि इसकी पवित्रता और सांस्कृतिक विरासत को भी सामने लाता है।
स्थानीय श्रद्धालु और संत समुदाय इस पूरे घटनाक्रम को आस्था से जोड़कर देख रहे हैं। उनका मानना है कि ठाकुर जी की कृपा से यह सब संभव हुआ, और यह मंदिर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में याद किया जाएगा।
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