बदरीनाथ धाम में दीपावली 20 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी, अमावस्या तिथि पर होगा महालक्ष्मी पूजन
महालक्ष्मी पूजन अमावस्या को होगा, भगवान बदरीविशाल की शयन आरती से पूर्व प्रारंभ होगी विशेष पूजा
ज्योतिर्मठ, 16 अक्टूबर। उत्तराखंड के श्री बद्रीनाथ धाम में इस वर्ष दीपावली पर्व 20 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। पंचांग गणना, अमावस्या तिथि की स्थिति और परंपरागत विधानों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है। यह निर्णय बुधवार को धाम के मुख्य पुजारी श्री रावल अमरनाथ नम्बूदरी की मौजूदगी में आयोजित विद्वत जनों की बैठक में लिया गया।
बैठक के बाद धर्माधिकारी आचार्य राधाकृष्ण थपलियाल ने जानकारी देते हुए बताया कि महालक्ष्मी पूजन का विशेष धार्मिक महत्व है और यह परंपरागत रूप से अमावस्या तिथि पर ही किया जाता है। इस बार पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर को पर्याप्त रूप से प्राप्त हो रही है, इसलिए दीपावली व महालक्ष्मी पूजन उसी दिन संपन्न होंगे।

🔹 बदरीनाथ धाम में महालक्ष्मी पूजन की विशेष परंपरा
बदरीनाथ धाम में दीपावली का पर्व केवल रोशनी और उत्सव का प्रतीक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति और देवी लक्ष्मी की कृपा के स्वागत का पर्व भी है। धाम में यह पूजन भगवान श्री बदरीविशाल नारायण की शयन आरती से ठीक पूर्व प्रारंभ होता है।
मंदिर परंपरा के अनुसार, इस दिन मां महालक्ष्मी की पूजा कर भगवान नारायण से उनके शयन काल में समृद्धि, शांति और कल्याण की प्रार्थना की जाती है। इस पूजन में रावल परंपरा के अनुसार विशेष वैदिक मंत्रोच्चार, दीपदान और पुष्पांजलि की विधि संपन्न की जाती है।
🔹 विद्वत बैठक में लिए गए निर्णय
धाम परिसर में हुई इस महत्वपूर्ण बैठक में मुख्य पुजारी रावल अमरनाथ नम्बूदरी के साथ धर्माधिकारी आचार्य राधाकृष्ण थपलियाल, नव नियुक्त धर्माधिकारी आचार्य स्वयंबर सेमवाल, पूर्व धर्माधिकारी आचार्य भुवन चन्द्र उनियाल, वेदपाठी रविन्द्र भट्ट, डिमरी पंचायत की ओर से पंडित शिव प्रसाद डिमरी और भास्कर डिमरी उपस्थित रहे।
इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र के विशेषज्ञ पंडित भास्कर जोशी, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग के आचार्य डॉ. शैलेन्द्र नारायण कोटियाल और उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. देवी प्रसाद त्रिपाठी से भी पंचांग गणना और तिथियों को लेकर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया।

🔹 अमावस्या तिथि पर पूजा का वैज्ञानिक और धार्मिक आधार
धर्माधिकारी थपलियाल ने बताया कि अमावस्या तिथि को ही लक्ष्मी पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय माना गया है। इस तिथि में चंद्रमा के अदृश्य होने से सृष्टि की ऊर्जा देवी लक्ष्मी के प्रभाव से संतुलित होती है। इसलिए बदरीनाथ धाम सहित समूचे देश में इस दिन धन, सौभाग्य और समृद्धि की देवी की उपासना की जाती है।
धाम में यह पूजन रात्रि के प्रहरों में वैदिक रीति से संपन्न किया जाएगा। इस अवसर पर मंदिर में विशेष दीप प्रज्वलन, पुष्प सज्जा, वैदिक स्तोत्र और आरती का आयोजन किया जाएगा। श्रद्धालु दूर-दूर से इस अवसर पर धाम पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं।
🔹 दीपावली से पहले मंदिर बंद होने की प्रक्रिया
बदरीनाथ धाम में दीपावली पर्व का संबंध शीतकालीन अवसान काल से भी है। दीपावली के कुछ दिन बाद ही भगवान बदरीविशाल के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं और पूजा-अर्चना जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर में जारी रहती है।
इसलिए दीपावली का पर्व यहां न केवल उत्सव का प्रतीक है, बल्कि शीतकालीन विश्राम से पहले भगवान की अंतिम विशेष आराधना का भी अवसर होता है।
🔹 श्रद्धालुओं में उत्साह
धाम में दीपावली की तिथि तय होते ही स्थानीय व्यापारियों, यात्रियों और तीर्थयात्रियों में उत्साह का माहौल है। स्थानीय प्रशासन और बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने मंदिर क्षेत्र में तैयारियां तेज कर दी हैं। दीपावली की रात बदरीनाथ धाम हजारों दीपों से आलोकित होगा।
बदरीनाथ धाम में महालक्ष्मी पूजन न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह पर्व देवी लक्ष्मी की कृपा से जीवन में उजास लाने का प्रतीकात्मक संदेश देता है — “अंधकार से प्रकाश की ओर, दुर्बलता से सामर्थ्य की ओर।”
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