बॉलीवुड के मशहूर कोरियोग्राफर से निर्देशक बने रेमो डिसूजा अपनी नई फिल्म ‘बी हैपी’ के साथ एक बार फिर दर्शकों के सामने हैं। हालांकि, उनकी पिछली फिल्मों की तरह इस बार भी कहानी और निर्देशन के स्तर पर कमजोर पकड़ देखने को मिली है। फिल्म में मुख्य भूमिका में अभिषेक बच्चन हैं, जो इन दिनों एक गंभीर अभिनेता बनने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी अभिनय शैली, बॉडी लैंग्वेज और सीमित दायरे में काम करने की प्रवृत्ति उन्हें लगातार पीछे खींच रही है।
अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई यह फिल्म न सिर्फ कंटेंट के लिहाज से कमजोर है, बल्कि इसे देखने के बाद यह साफ हो जाता है कि यह अमेज़न प्राइम की बस अपनी हिंदी लाइब्रेरी बढ़ाने की एक और औसत दर्जे की कोशिश है।
रेमो डिसूजा: निर्देशन में लगातार गिरता स्तर
रेमो डिसूजा को बॉलीवुड में एक कोरियोग्राफर के रूप में शानदार सफलता मिली, लेकिन बतौर निर्देशक उनकी यात्रा बहुत अस्थिर रही है। जब उन्होंने ‘फालतू’ (2011) बनाई, तब भी लोगों ने सोचा कि यह उनके निर्देशन की शुरुआत थी, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि रेमो इससे पहले बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री में मिथुन चक्रवर्ती अभिनीत एक फिल्म भी बना चुके थे।
बॉलीवुड में उनके निर्देशन की सबसे सफल कड़ी थी ‘एबीसीडी’ (Any Body Can Dance) और इसका सीक्वल ‘एबीसीडी 2’, जहां उन्होंने डांस और ड्रामा को खूबसूरती से मिलाया। हालांकि, इसके बाद जब उन्होंने ‘स्ट्रीट डांसर 3D’ बनाई, तो यह एक फीकी और दर्शकों के लिए निराशाजनक फिल्म साबित हुई। यह साफ दर्शाता है कि रेमो एक ही तरह के कंसेप्ट को बार-बार घुमाकर पेश करते रहे हैं, और अब वह नए सिरे से खुद को स्थापित करने में संघर्ष कर रहे हैं।
अभिषेक बच्चन: एक प्रतिभाशाली लेकिन संघर्षरत अभिनेता
अभिषेक बच्चन के करियर की बात करें तो, वह हमेशा एक बेहतरीन अभिनेता बनने की कोशिश में लगे रहे हैं। ‘गुरु’, ‘युवा’, और ‘बंटी और बबली’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी प्रतिभा दिखाई थी, लेकिन उनकी सबसे बड़ी समस्या रही है उनकी अति आत्मविश्वास से भरी बॉडी लैंग्वेज और सीमित अभिनय दायरा।
‘बी हैपी’ में भी यही देखने को मिलता है। वह पूरी फिल्म में एक ही तरह के भाव के साथ चलते हैं और नए वातावरण में ढलने में असहज महसूस करते हैं। यह फिल्म उन्हें एक बार फिर उस जोन में डाल देती है, जहां से वह पिछले कुछ सालों से निकलने की कोशिश कर रहे हैं।
फिल्म की कहानी: नयापन गायब, बासी लगती पटकथा
‘बी हैपी’ की सबसे कमजोर कड़ी इसकी कहानी है। फिल्म की कहानी न सिर्फ घिसी-पिटी लगती है, बल्कि इसमें कोई खास नयापन भी नजर नहीं आता।
- फिल्म का प्लॉट एक सेल्फ-हेल्प और मोटिवेशनल ड्रामा जैसा लगता है, जहां मुख्य किरदार अपने जीवन की परेशानियों को दूर करने और खुद को खुश रहने की कला सिखाने की कोशिश करता है।
- लेकिन फिल्म का लेखन बेहद कमजोर है और कई जगहों पर यह एक प्रेरणादायक कहानी से ज्यादा एक थकाऊ व्याख्यान की तरह लगती है।
- अभिषेक बच्चन के किरदार की ग्रोथ या इमोशनल डेप्थ कहीं भी देखने को नहीं मिलती, जिससे फिल्म में उनकी भूमिका सिर्फ स्क्रीन टाइम भरने जैसा लगती है।
तकनीकी पक्ष: फिल्म का कमजोर स्क्रीनप्ले और औसत सिनेमैटोग्राफी
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और स्क्रीनप्ले पर भी खास ध्यान नहीं दिया गया है। रेमो डिसूजा की पिछली फिल्मों में जहां डांस और विजुअल अपील के जरिए स्क्रीन पर कुछ चमक नजर आती थी, इस बार वह बिल्कुल नदारद है।
- सिनेमैटोग्राफी साधारण है और कुछ सीन्स एक टेलीविजन ड्रामा की तरह लगते हैं।
- बैकग्राउंड स्कोर भी बहुत प्रभावी नहीं है, जिससे फिल्म का इमोशनल इंपैक्ट कमजोर हो जाता है।
- स्क्रीनप्ले बेहद ढीला है और कई जगहों पर यह फिल्म धीमी और उबाऊ लगने लगती है।
क्या यह फिल्म देखने लायक है?
अगर आप अभिषेक बच्चन के फैन हैं, तो आप इसे एक बार देख सकते हैं, लेकिन अगर आप एक मजबूत कहानी और दमदार निर्देशन की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपको निराश कर सकती है।
फिल्म की कमजोरियां:
✅ कहानी में नयापन नहीं
✅ स्क्रीनप्ले और निर्देशन कमजोर
✅ अभिषेक बच्चन का सीमित अभिनय
✅ डायलॉग्स और इमोशनल कनेक्ट की कमी
फिल्म की अच्छी बातें:
✅ अभिषेक बच्चन की मेहनत झलकती है (लेकिन प्रभावी नहीं)
✅ कुछ हल्के-फुल्के और मनोरंजक दृश्य
रेटिंग: ⭐⭐ (2/5)
👉 फाइनल वर्डिक्ट: ‘बी हैपी’ एक कमजोर कहानी और औसत निर्देशन वाली फिल्म है, जिसे देखकर लगता है कि यह बस अमेज़न प्राइम की हिंदी लाइब्रेरी बढ़ाने की एक और कोशिश है। अगर आपके पास और कोई बेहतर फिल्म देखने का ऑप्शन है, तो उसे चुनें।
और भी दिलचस्प खबरें आपके लिए… सिर्फ़ स्वदेश ज्योति पर!