नई दिल्ली। अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण बनने जा रहे एक्सिओम-4 मिशन के प्रक्षेपण को फिलहाल 11 जून 2025 तक टाल दिया गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बताया कि यह निर्णय खराब मौसम की स्थिति को देखते हुए लिया गया है। इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने सोमवार को इसकी पुष्टि की।
इस अभियान के तहत भारत के शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की यात्रा करने वाले पहले भारतीय बनने जा रहे हैं। साथ ही वे अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय होंगे, जिनका यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में नया अध्याय जोड़ने वाला है।
प्रक्षेपण में देरी, लेकिन उम्मीद बरकरार
एक्सिओम स्पेस, नासा और स्पेसएक्स की साझेदारी में तैयार एक्सिओम-4 मिशन को पहले 10 जून को लॉन्च किया जाना था, लेकिन अब इसे 11 जून शाम 5:30 बजे (भारतीय समयानुसार) के लिए पुनर्निर्धारित किया गया है। यह मिशन स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए अमेरिका से लॉन्च किया जाएगा।
शुभांशु शुक्ला: भारत के अंतरिक्ष गौरव
उत्तर प्रदेश के मूल निवासी शुभांशु शुक्ला एक अनुभवी पायलट और अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण प्राप्त विशेषज्ञ हैं। वे इस मिशन के जरिए आईएसएस तक पहुंचने वाले पहले भारतीय बनेंगे, जिससे भारत की वैश्विक अंतरिक्ष भागीदारी को एक नया आयाम मिलेगा।
इससे पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत संघ के इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष की यात्रा की थी, लेकिन आईएसएस तक कोई भारतीय अब तक नहीं पहुंचा है। एक्सिओम-4 के साथ यह गौरव भारत को मिलेगा।
मिशन का महत्व
- एक्सिओम-4 में चार सदस्यीय अंतरिक्ष यात्री दल शामिल है।
- यह मिशन आईएसएस पर वैज्ञानिक प्रयोग, प्रौद्योगिकी परीक्षण, और मानव अंतरिक्ष उड़ान की नई संभावनाओं को तलाशेगा।
- एक्सिओम स्पेस का यह मिशन भविष्य के वाणिज्यिक स्पेस स्टेशन की ओर भी एक कदम माना जा रहा है।

स्पेसएक्स और नासा की भूमिका
इस मिशन में एलन मस्क की स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन कैप्सूल के ज़रिए उड़ान की जिम्मेदारी संभालेगी। वहीं, नासा और एक्सिओम स्पेस इसका पूरा लॉजिस्टिक और ट्रेनिंग समर्थन प्रदान कर रहे हैं। इसरो की ओर से भारतीय वैज्ञानिकों और शुभांशु शुक्ला के लिए समर्थन और प्रशिक्षण का दायित्व निभाया गया है।
वैश्विक मंच पर भारत की नई पहचान
यह मिशन भारत की अंतरिक्ष शक्ति को वैश्विक मंच पर फिर से स्थापित करेगा। एक्सिओम-4 मिशन से न केवल विज्ञान, बल्कि भारत की रणनीतिक और तकनीकी क्षमता को भी अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलेगी।