पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने आए वाराणसी, हर साल करेंगे तर्पण
वाराणसी। गंगा तट पर बसे वाराणसी के अस्सी घाट पर बुधवार को एक अलग ही नज़ारा देखने को मिला। एक ऑस्ट्रेलियाई युवक, मैथ्यू, पूरी श्रद्धा और विधि-विधान के साथ अपने पिता के मोक्ष के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म कर रहा था। विदेशी युवक को सनातनी विधियों का पालन करते देख घाट पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। यह नज़ारा किसी को भी हैरान कर सकता था, लेकिन जब मैथ्यू ने अपनी कहानी साझा की, तो सभी उनकी आस्था को देखकर भावविभोर हो गए।
मैथ्यू ने बताया कि उनके पिता हिंदू थे और उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका पिंडदान वाराणसी में किया जाए। पिता के निधन के बाद, उन्होंने सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के बारे में गहराई से अध्ययन किया और इससे गहरा लगाव महसूस किया। उन्होंने कहा, “काशी एक दिव्य भूमि है, यह मोक्ष धाम है। यहां आकर मैं खुद को धन्य महसूस कर रहा हूं।”
पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने का संकल्प
मैथ्यू ने बताया कि उनके पिता हिंदू थे, जबकि उनकी मां ईसाई। उनके पिता ने हमेशा सनातन संस्कृति को अपनाया और अपनी अंतिम इच्छा में कहा था कि उनका अंतिम संस्कार अग्नि द्वारा किया जाए और उनका पिंडदान काशी में हो। दुर्भाग्यवश, जब उनका निधन हुआ, तब ऐसा संभव नहीं हो पाया, क्योंकि उस समय मैथ्यू बहुत छोटे थे। जैसे-जैसे वह बड़े हुए, उन्होंने हिंदू संस्कृति और परंपराओं के बारे में अध्ययन किया और यह निर्णय लिया कि वे पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए काशी आएंगे।
मैथ्यू ने कहा, “मेरे पिता ने हमेशा सनातन धर्म को अपनाने और उसका पालन करने की प्रेरणा दी। जब मैंने इस धर्म को समझा, तो मुझे इससे प्रेम हो गया। मुझे यह जानकर बेहद खुशी होती है कि मैं अपने पिता के मोक्ष के लिए उचित विधि से तर्पण और श्राद्ध कर्म कर सका।”
काशी में पूरी श्रद्धा के साथ किया पिंडदान
अस्सी घाट पर बुधवार की शाम को, तीर्थ पुरोहित पंडित बलराम मिश्र ने मैथ्यू का विधि-विधान से पिंडदान और श्राद्ध कर्म संपन्न कराया। गंगा घाट पर मंत्रोच्चार के बीच उन्होंने अपने पिता का तर्पण किया और मां गंगा को प्रणाम किया। इस दौरान वहां मौजूद लोगों ने भी सनातनी परंपराओं के प्रति उनकी श्रद्धा को नमन किया।
पंडित बलराम मिश्र ने बताया, “मैथ्यू ने पूरी श्रद्धा और लगन के साथ कर्मकांड की प्रक्रिया को पूरा किया। वे हर विधि को समझना चाहते थे और उसमें पूरी रुचि ले रहे थे। उनके साथ आए गाइड ने उन्हें संस्कृत मंत्रों और पूजा के विधान को अंग्रेज़ी में समझाया। लगभग एक घंटे तक चले इस अनुष्ठान के दौरान उन्होंने पूरे विधि-विधान से अपने पिता का श्राद्ध कर्म संपन्न किया।”
सनातन धर्म अपनाने की इच्छा जताई
मैथ्यू ने यह भी कहा कि वे सनातन धर्म से इतने प्रभावित हुए हैं कि वे इसे अपनाने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि भारत में आकर उन्हें आध्यात्मिक शांति का अनुभव हुआ और वे हर साल अपने पिता के तर्पण के लिए काशी आने का संकल्प ले चुके हैं।
उन्होंने कहा, “सनातन धर्म केवल एक धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक शैली है। इसमें जो गहराई और आध्यात्मिकता है, वह मुझे बहुत आकर्षित कर रही है। मेरे देश में भी कई लोग भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से प्रभावित हैं।”
विश्व में बढ़ रहा सनातन धर्म का प्रभाव
पंडित बलराम मिश्र ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है कि विदेशी नागरिक भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर साल हजारों विदेशी श्रद्धालु काशी आते हैं और यहां परंपरागत हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
उन्होंने कहा, “भारत की आध्यात्मिक शक्ति और सनातन धर्म की महानता अब सिर्फ देश तक सीमित नहीं रही, बल्कि पूरी दुनिया इसे स्वीकार कर रही है। पिंडदान और श्राद्ध केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का माध्यम हैं, और यह परंपरा अब विश्वव्यापी हो रही है।”
काशी- मोक्ष और तर्पण की भूमि
वाराणसी को मोक्ष धाम माना जाता है, जहां पितरों का तर्पण और श्राद्ध करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि देश-विदेश से लोग यहां अपने पूर्वजों का तर्पण करने आते हैं।
मैथ्यू के इस कदम ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि सनातन धर्म की महानता और आध्यात्मिकता सीमाओं से परे है। भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रभाव विश्व भर में फैल रहा है, और इसका आकर्षण लगातार बढ़ता जा रहा है।
🔹 प्रमुख बिंदु:
✅ ऑस्ट्रेलियाई युवक मैथ्यू ने काशी में अपने पिता का पिंडदान किया।
✅ उनके पिता हिंदू थे और उनकी अंतिम इच्छा काशी में श्राद्ध कराने की थी।
✅ सनातन धर्म से प्रभावित होकर मैथ्यू ने इसे अपनाने की इच्छा जताई।
✅ तीर्थ पुरोहित के अनुसार, विदेशी श्रद्धालुओं में हिंदू परंपराओं को लेकर रुचि बढ़ रही है।
✅ वाराणसी को मोक्ष धाम माना जाता है, जहां हर साल हजारों लोग पिंडदान करने आते हैं।
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