दमोह के दोनी ग्राम में मिली 10वीं-11वीं शताब्दी की दुर्लभ मूर्तियां | भारतीय कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर उजागर
दमोह। मध्यप्रदेश के दमोह जिले के दोनी ग्राम में प्राचीन टीले की खुदाई के दौरान ऐसी दुर्लभ प्रतिमाएं मिली हैं, जिन्होंने प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे भारत के ऐतिहासिक गौरव को फिर से उजागर कर दिया है। इन प्रतिमाओं में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, उमा-महेश्वर, पार्वती, अर्धनारीश्वर, वायुदेव, गज अप्सरा और विभिन्न नायिकाओं की मूर्तियां शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये प्रतिमाएं 10वीं से 11वीं शताब्दी की हैं और संभवतः किसी विशालकाय शिव मंदिर का हिस्सा रही होंगी।
शिव मंदिर से जुड़ी मानी जा रही हैं प्रतिमाएं
पुरातत्वविदों के अनुसार, दोनी ग्राम में यह टीला वर्षों से मिट्टी में दबा हुआ था। हाल ही में जब वहां सफाई और प्रारंभिक सर्वेक्षण का कार्य शुरू हुआ, तो मिट्टी के अंदर से इन दुर्लभ मूर्तियों के दर्शन हुए। प्रारंभिक अध्ययन में यह सामने आया कि ये प्रतिमाएं कालचक्र या चंदेल वंशकालीन स्थापत्य परंपरा से जुड़ी हो सकती हैं।
शिव, विष्णु, ब्रह्मा और अर्धनारीश्वर जैसी मूर्तियों की कलात्मक बारीकियां उस युग की अद्भुत शिल्प कौशल और धार्मिक गहराई को दर्शाती हैं। प्रत्येक प्रतिमा में बारीक नक्काशी, अभिव्यक्ति और भावों की गहराई भारतीय शिल्पकला के उत्कर्ष काल की झलक देती है।
पुरातत्व विभाग ने शुरू किया संरक्षण कार्य
मूर्तियों की खोज के बाद संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय भोपाल की टीम ने तुरंत वहां सफाई और संरक्षण कार्य शुरू कर दिया। यह कार्य संचालक पीसी महोबिया और उपसंचालक (ग्वालियर) सपन साहू के निर्देशन में युद्धस्तर पर चल रहा है।
विभाग की आयुक्त उर्मिला शुक्ला स्वयं इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी कर रही हैं ताकि किसी भी मूर्ति को नुकसान न पहुंचे और उसकी मूल संरचना सुरक्षित रहे।
अधिकारियों ने बताया कि टीले के आसपास और भी कई पुरावशेषों की संभावना है, जिसके लिए आगे विस्तृत खुदाई की योजना बनाई जा रही है।
मूर्तियों में झलकता है मध्यकालीन भारत का गौरव
दोनी ग्राम से मिली मूर्तियों का कलात्मक मूल्य अत्यंत उच्च है। इनमें देवी-देवताओं के साथ नायिकाओं, गंधर्वों और गज अप्सराओं की प्रतिमाएं शामिल हैं, जो धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से अनमोल धरोहर हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि मूर्तियों की बनावट में जिस प्रकार की अलंकरण शैली और अनुपातिक संतुलन दिखाई देता है, वह मध्यकालीन भारत में धार्मिक कला के उत्कर्ष का प्रतीक है।
इन मूर्तियों में अर्धनारीश्वर की प्रतिमा विशेष रूप से ध्यान आकर्षित कर रही है — जिसमें शिव और शक्ति का संयुक्त रूप अत्यंत सजीव ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
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राज्य सरकार ने कहा – धरोहरों का संरक्षण हमारी प्राथमिकता
मध्यप्रदेश सरकार ने इस खोज को प्रदेश के लिए गौरवपूर्ण बताया है।
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेंद्र सिंह लोधी ने कहा —
“हमारे देश की प्राचीन धरोहर हमारी संस्कृति और इतिहास की पहचान हैं। दमोह जिले के दोनी ग्राम में मिली ये मूर्तियां न केवल हमारे अतीत की समृद्ध परंपराओं को दर्शाती हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए सीख और प्रेरणा भी हैं। हमारी प्राथमिकता है कि इन अमूल्य धरोहरों का संरक्षण किया जाए और ये आमजन के दर्शन हेतु उपलब्ध हों।”
मंत्री ने यह भी संकेत दिया कि दोनी ग्राम को भविष्य में “संरक्षित पुरातात्विक स्थल” घोषित करने की दिशा में कार्य किया जाएगा, ताकि यह स्थान पर्यटन और अध्ययन दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण केंद्र बन सके।
प्रदेश की ऐतिहासिक पहचान को नया आयाम
दमोह का यह क्षेत्र पहले से ही ऐतिहासिक रूप से समृद्ध रहा है। समीपवर्ती स्थलों पर पहले भी गुप्त और चंदेल काल की मूर्तियां प्राप्त हो चुकी हैं।
दोनी ग्राम में मिली यह नई खोज प्रदेश की ऐतिहासिक निरंतरता और सांस्कृतिक गहराई को एक नया आयाम देती है।
पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना है कि यह खोज भारतीय कला इतिहास में दमोह को एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित कर सकती है।
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स्थानीय लोगों में उत्साह और गौरव की भावना
इस खोज के बाद दोनी ग्राम और आसपास के इलाकों में लोगों में उत्साह का माहौल है। ग्रामीणों ने बताया कि वे इस स्थान को लंबे समय से पवित्र मानते रहे हैं और यहां पूजा-अर्चना करते रहे हैं। अब जब इन मूर्तियों की ऐतिहासिकता सिद्ध हो गई है, तो यह स्थान आस्था और पर्यटन दोनों का केंद्र बन सकता है।
संरक्षण के बाद खुलेगा दर्शनों के लिए परिसर
पुरातत्व विभाग की योजना है कि इन मूर्तियों को संरक्षित कर एक स्थायी प्रदर्शनी परिसर में रखा जाए, ताकि आमजन इन्हें देख सकें और क्षेत्र के इतिहास से परिचित हो सकें। विभाग इसके लिए स्थानीय प्रशासन और ग्राम पंचायत के सहयोग से भूमि चयन की प्रक्रिया पर भी काम कर रहा है।
संस्कृति और पहचान का प्रतीक
दमोह की यह खोज केवल मूर्तियों की प्राप्ति नहीं है, बल्कि यह हमारे इतिहास, संस्कृति और कला की जीवित पहचान है। यह बताती है कि भारत का हर कोना अपने भीतर एक गौरवशाली अतीत समेटे हुए है, जिसे उजागर करना और संरक्षित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
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