‘2047 तक भारत बनेगा विश्व नेतृत्वकर्ता, भाषा, साहित्य और संस्कृति इस बदलाव के आधार स्तंभ’
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को भारतीय भाषाओं की महत्ता को रेखांकित करते हुए एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में अंग्रेज़ी बोलना गर्व की नहीं, बल्कि शर्म की बात मानी जाएगी। वह पूर्व आईएएस अधिकारी आशुतोष अग्निहोत्री की आत्मकथा ‘मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं’ के विमोचन अवसर पर बोल रहे थे।
शाह ने अपने संबोधन में भारतीय भाषाओं, सांस्कृतिक अस्मिता, और प्रशासनिक सोच में बदलाव जैसे कई अहम मुद्दों पर अपनी बात रखी। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश को आत्मनिर्भर और आत्माभिमानी बनाना है तो हमें अपनी भाषाओं और परंपराओं को ही प्राथमिकता देनी होगी।
🔸 “विदेशी भाषा से नहीं समझ सकते भारत”
अमित शाह ने कहा,
“अपने देश, अपनी संस्कृति, अपने इतिहास और धर्म को समझने के लिए कोई भी विदेशी भाषा पर्याप्त नहीं हो सकती। अधूरी विदेशी भाषा के जरिए संपूर्ण भारत की कल्पना करना असंभव है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि जो लोग अब भी अंग्रेज़ी को श्रेष्ठ मानते हैं, उन्हें जल्द ही खुद पर शर्म आने लगेगी। देश में एक ऐसा सामाजिक वातावरण तैयार हो रहा है, जहां अपनी भाषाओं को लेकर गौरव और सम्मान की भावना प्रबल होगी।

🔸 2047 तक दुनिया में नेतृत्व, भारतीय भाषाओं के ज़रिए
अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित ‘अमृतकाल के पंच प्रण’ अब 130 करोड़ लोगों का साझा संकल्प बन चुके हैं। इन संकल्पों में विकसित भारत का निर्माण, गुलामी की मानसिकता और प्रतीकों से मुक्ति, अपनी विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता तथा नागरिक कर्तव्य का भाव शामिल है।
“2047 तक भारत न सिर्फ आत्मनिर्भर होगा, बल्कि विश्व का नेतृत्व भी करेगा और **भारतीय भाषाएं इस यात्रा में प्रमुख भूमिका निभाएंगी,” शाह ने कहा
🔸 प्रशासनिक प्रशिक्षण प्रणाली में बदलाव जरूरी
गृह मंत्री ने इस दौरान भारतीय नौकरशाही प्रणाली की ट्रेनिंग को भी कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि देश के प्रशासनिक अधिकारियों को सहानुभूति आधारित प्रशिक्षण नहीं दिया जाता, जो एक बड़ी खामी है।
“अंग्रेजों की बनाई ट्रेनिंग व्यवस्था आज भी चल रही है। ऐसे शासक या प्रशासक जो सहानुभूति के बिना शासन करते हैं, वे प्रशासन के असल उद्देश्य को नहीं समझ सकते।”
🔸 साहित्य और संस्कृति: समाज की आत्मा
अमित शाह ने भारतीय साहित्य की भूमिका को विशेष रूप से रेखांकित करते हुए कहा कि जब देश अंधकार में डूबा था, तब भी साहित्य ने ही धर्म, स्वतंत्रता और संस्कृति के दीप जलाए रखे।
उन्होंने कहा—
“सरकारें बदलती रहीं, लेकिन जब किसी ने हमारे धर्म, संस्कृति या साहित्य पर चोट करने की कोशिश की, समाज संगठित होकर खड़ा हो गया। यह दिखाता है कि साहित्य हमारे समाज की आत्मा है।”
🔸 ISF विधायक का पलटवार: क्या सिर्फ हिंदी ही बोलें?
शाह के बयान पर इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के विधायक नौशाद सिद्दीकी ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सवाल उठाया—
“शाह बताएं कि हमें कौन-सी भाषा बोलनी चाहिए? क्या केवल हिंदी? हमारे देश में बंगाली, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु जैसी कई भाषाएं हैं। हर नागरिक को अपनी पसंद की भाषा बोलने और सीखने की आज़ादी है।”
सिद्दीकी ने अंग्रेज़ी को अंतरराष्ट्रीय संपर्क की अनिवार्य भाषा बताते हुए कहा कि इसके ज्ञान को शर्म की चीज़ बताना उचित नहीं।
अमित शाह के इस भाषण ने भाषा, प्रशासन और संस्कृति को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर सरकार भारतीय भाषाओं को सशक्त करने के एजेंडे पर आगे बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल इसे भाषाई विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ बता रहे हैं। आने वाले वर्षों में यह बहस और तेज़ हो सकती है कि देश की पहचान किस भाषा से बनेगी—केवल एक से, या सबकी साझेदारी से?
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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