नई दिल्ली। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ और रणनीतिक बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) का पुनर्गठन किया गया है। केंद्र सरकार ने रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख आलोक जोशी को इसका नया अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह नियुक्ति ऐसे समय में की गई है जब देश के सामने क्षेत्रीय तनाव और सीमाई चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं।
बोर्ड का उद्देश्य और भूमिका
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) को रणनीतिक, सैन्य, कूटनीतिक और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामलों में सुझाव देने वाला संकाय आधारित सलाहकार समूह है। इसकी भूमिका देश की सुरक्षा नीतियों को मजबूत करना और संभावित खतरों का विश्लेषण कर उचित सिफारिशें देना होता है।
नए पुनर्गठित बोर्ड में ये सदस्य शामिल
सरकार द्वारा पुनर्गठित इस सात सदस्यीय बोर्ड में सेना, नौसेना, वायुसेना, पुलिस और विदेश सेवा से जुड़े अनुभवी सेवानिवृत्त अधिकारी शामिल किए गए हैं। इन नामों में शामिल हैं:
- एयर मार्शल पीएम सिन्हा – वायुसेना के पूर्व पश्चिमी कमांडर
- लेफ्टिनेंट जनरल ए.के. सिंह – पूर्व दक्षिणी सेना कमांडर
- रियर एडमिरल मोंटी खन्ना – सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी
- राजीव रंजन वर्मा – पूर्व आईपीएस अधिकारी
- मनमोहन सिंह – पूर्व आईपीएस अधिकारी
- बी. वेंकटेश वर्मा – सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी और रूस में भारत के पूर्व राजदूत
कौन हैं आलोक जोशी?
आलोक जोशी भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के 1976 बैच के अधिकारी रहे हैं और उन्होंने 2012 से 2014 तक रॉ प्रमुख के तौर पर कार्य किया। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में उनकी गहरी समझ और अनुभव के चलते उन्हें इस उच्च पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वे इससे पहले NSAB के सदस्य भी रह चुके हैं।
सामयिक महत्व
यह नियुक्ति ऐसे समय में की गई है जब चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा पर तनाव, साइबर सुरक्षा खतरे, आतंकी गतिविधियों में बढ़ोतरी, और वैश्विक कूटनीतिक बदलाव जैसी चुनौतियाँ भारत के सामने हैं। ऐसे में एक मजबूत और अनुभवयुक्त सलाहकार बोर्ड राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के लिहाज से निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
सरकार की रणनीतिक सोच
पुनर्गठन यह दर्शाता है कि भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा पर विचार करने के लिए केवल वर्तमान घटनाओं पर नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीति पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है। NSAB का यह नया स्वरूप आने वाले वर्षों में भारत की सुरक्षा नीति और वैश्विक दृष्टिकोण को दिशा देगा।
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