- मानव-जनित पीएम 2.5 प्रदूषण से बढ़ी मौतें, जंगल की आग और जीवाश्म ईंधन बने मुख्य कारण; 2024 में हर व्यक्ति ने झेली 7 दिन अतिरिक्त लू
नई दिल्ली। भारत में वायु प्रदूषण एक बार फिर भयावह रूप में सामने आया है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में मानव-जनित पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण देश में 17 लाख से अधिक लोगों की असामयिक मौतें हुईं। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रदूषण अब सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह संख्या वर्ष 2010 की तुलना में 38 प्रतिशत अधिक है।
हर साल प्रदूषण ले रहा लाखों जानें
‘लैंसेट हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज काउंटडाउन रिपोर्ट’ में कहा गया है कि भारत में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है और इसका सीधा असर लोगों के जीवन और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। मानव गतिविधियों से उत्पन्न पीएम 2.5 प्रदूषण यानी धूलकण और सूक्ष्म प्रदूषक 2022 में 17,18,000 मौतों के लिए जिम्मेदार थे।
इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2020 से 2024 के बीच भारत में हर साल औसतन 10,200 मौतें जंगल की आग से निकलने वाले पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण हुईं, जो 2003-2012 के औसत से 28 प्रतिशत अधिक है।
जीवाश्म ईंधन सबसे बड़ा हत्यारा
रिपोर्ट के मुताबिक, कोयला, डीजल और तरल गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों से होने वाला प्रदूषण भी मौतों का एक बड़ा कारण है। 7,52,000 मौतें (लगभग 44 प्रतिशत) जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्पन्न प्रदूषण से जुड़ी हैं। वहीं, सड़क परिवहन में पेट्रोल के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन के कारण 2.69 लाख लोगों की जान गई।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में बढ़ता औद्योगीकरण, बढ़ती वाहन संख्या और ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता वायु प्रदूषण के मुख्य कारण बने हुए हैं।
बढ़ती गर्मी भी बन रही जानलेवा
रिपोर्ट ने सिर्फ प्रदूषण ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से बढ़ती गर्मी के प्रभावों को भी गंभीर बताया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्ष 2024 में हर व्यक्ति ने औसतन सात दिन अधिक लू वाले दिनों का सामना किया, जिससे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा।
1990 के दशक से अब तक गर्मी से संबंधित वैश्विक मौतों में 23 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह आंकड़ा बढ़कर 5,46,000 मौतें प्रति वर्ष तक पहुंच गया है। गर्मी से उत्पन्न बीमारियों और हार्ट फेलियर जैसे मामलों में लगातार इजाफा देखा जा रहा है।
स्वास्थ्य पर जलवायु संकट का गंभीर असर
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य संबंधी खतरों पर नजर रखने वाले 20 में से 12 संकेतक अब अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच चुके हैं। इसका अर्थ यह है कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का असर मानव शरीर, मानसिक स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और सामाजिक संरचना पर पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है।
लैंसेट के अध्ययनकर्ता बताते हैं कि, “प्रदूषण और गर्मी के दोहरे खतरे ने भारत समेत विकासशील देशों के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा की चुनौती को और गहरा कर दिया है। यदि अभी निर्णायक कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में यह संकट और भयावह रूप ले सकता है।”

अरबों डॉलर का वैश्विक नुकसान
रिपोर्ट में कहा गया है कि अत्यधिक गर्मी और प्रदूषण के कारण वैश्विक श्रम क्षमता में बड़ी गिरावट आई है। वर्ष 2024 में 194 अरब अमेरिकी डॉलर की आय का नुकसान दर्ज किया गया।
गर्मी के कारण लोगों को काम करने में कठिनाई हुई, जिससे विश्वभर में 247 अरब संभावित श्रम घंटों का नुकसान हुआ — यानी औसतन प्रति व्यक्ति 420 घंटे की उत्पादकता का नुकसान, जो 1990-1999 की तुलना में 124 प्रतिशत अधिक है।
भारत के लिए चेतावनी
रिपोर्ट ने भारत को विशेष रूप से आगाह करते हुए कहा है कि यदि ऊर्जा नीति और शहरी नियोजन में कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में वायु प्रदूषण और गर्मी से होने वाली मौतों में दोगुनी वृद्धि संभव है। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि भारत को तत्काल स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ना चाहिए, वाहन प्रदूषण नियंत्रण तंत्र को मजबूत करना चाहिए और शहरी हरियाली बढ़ाने जैसे कदम उठाने चाहिए।
पर्यावरणविदों की चिंता
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि लैंसेट की यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों का संकलन नहीं, बल्कि मानव जीवन पर मंडराते खतरे की चेतावनी है। उन्होंने कहा कि अब केवल नीति नहीं, बल्कि नीति के क्रियान्वयन पर जोर देने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा मिल सके।






