— ट्रस्टियों में बढ़ी मतभेद की खाई, सरकार के हस्तक्षेप की चर्चाएँ तेज़
टाटा ट्रस्ट्स में मेहली मिस्त्री की पुनः नियुक्ति की मांग तेज़, ट्रस्टियों में मतभेद और सरकार तक पहुंचा मामला
टाटा ट्रस्ट्स के तीन प्रमुख निकायों में मिस्त्री को फिर से नियुक्त करने का प्रस्ताव
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर। देश के सबसे बड़े परोपकारी संस्थानों में से एक टाटा ट्रस्ट्स के भीतर इस समय एक नया घटनाक्रम उभरकर सामने आया है। संगठन में पूर्व दिग्गज रतन टाटा के करीबी और लंबे समय तक उनके विश्वासपात्र रहे मेहली मिस्त्री की पुनः नियुक्ति को लेकर चर्चा तेज़ हो गई है।
टाटा ट्रस्ट्स के सीईओ की ओर से गुरुवार को जारी एक आंतरिक सर्कुलर में मिस्त्री को तीन प्रमुख ट्रस्टों — सर रतन टाटा ट्रस्ट, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और बाई हीराबाई जमशेदजी टाटा नवसारी चैरिटेबल इंस्टीट्यूशन — में फिर से ट्रस्टी नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा गया है। यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो मेहली मिस्त्री आजीवन ट्रस्टी बन जाएंगे।
सूत्रों के अनुसार, मेहली मिस्त्री का वर्तमान तीन वर्ष का कार्यकाल 28 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है। उन्हें पहली बार वर्ष 2022 में टाटा ट्रस्ट्स में ट्रस्टी के रूप में नियुक्त किया गया था।
आंतरिक मतभेदों के बीच आया यह प्रस्ताव
मिस्त्री की पुनः नियुक्ति का यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब टाटा ट्रस्ट्स में आंतरिक मतभेदों की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। ट्रस्ट के भीतर दो प्रमुख गुट बनने की बातें कही जा रही हैं — एक गुट नोएल टाटा के साथ बताया जाता है, जिन्होंने रतन टाटा के बाद अध्यक्ष का पद संभाला, जबकि दूसरा गुट उन लोगों का है जो रतन टाटा के पुराने और वफादार सहयोगी माने जाते हैं।
इन मतभेदों के चलते कई ट्रस्टियों के बीच नीतिगत फैसलों पर सहमति नहीं बन पा रही है। सूत्र बताते हैं कि मेहली मिस्त्री और तीन अन्य ट्रस्टियों — प्रमित झावेरी, जहांगीर एचसी जहांगीर और डेरियस खंबाटा — ने श्रीनिवासन की ट्रस्टी और उपाध्यक्ष के रूप में पुनर्नियुक्ति का समर्थन किया था, लेकिन इसके साथ एक शर्त भी रखी थी। उन्होंने कहा था कि भविष्य में किसी भी ट्रस्टी की नियुक्ति या नवीनीकरण सर्वसम्मति से ही किया जाएगा, अन्यथा उनकी मंजूरी को रद्द कर दिया जाएगा।
संस्थान के अंदर बढ़ती गुटबाजी और मतभेदों की खाई
टाटा ट्रस्ट्स, जो टाटा समूह की परोपकारी भावना की नींव है, पिछले कुछ समय से आंतरिक मतभेदों और शक्ति संतुलन के विवादों का सामना कर रहा है। एक गुट संगठन के वर्तमान चेयरमैन नोएल टाटा के नेतृत्व में आगे बढ़ना चाहता है, जबकि दूसरा गुट रतन टाटा की विरासत और पुराने संचालन ढांचे को बनाए रखने के पक्ष में है।
यह गुटबाजी केवल विचारधारात्मक नहीं, बल्कि संगठन के प्रशासनिक नियंत्रण और निर्णय प्रक्रिया से जुड़ी बताई जा रही है। कई बैठकों में निर्णय लेने में देरी और प्रस्तावों पर विभाजन ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।

सरकार तक पहुंचा मामला, शीर्ष स्तर पर हुई मुलाकातें
सूत्रों के अनुसार, यह मामला अब केंद्र सरकार के समक्ष भी उठाया गया है। बताया जाता है कि इस महीने की शुरुआत में टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की थी।
माना जा रहा है कि यह बैठक संगठन के अंदर उत्पन्न तनावपूर्ण माहौल और प्रबंधन से जुड़े कुछ लंबित मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए हुई थी। सरकार की ओर से इस पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय स्तर पर टाटा समूह से संबंधित परोपकारी संस्थानों की संरचना और पारदर्शिता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
टाटा ट्रस्ट्स की विरासत और वर्तमान संकट
टाटा ट्रस्ट्स भारत की सबसे पुरानी और प्रभावशाली चैरिटेबल संस्थाओं में से एक है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास और विज्ञान अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में काम करती है। यह टाटा समूह की कुल हिस्सेदारी का एक बड़ा हिस्सा नियंत्रित करता है और इसी से समूह की सामाजिक परियोजनाओं को दिशा मिलती है।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से संगठन में नेतृत्व परिवर्तन और आंतरिक नीतिगत मतभेदों के कारण लगातार असंतोष की स्थिति बनी हुई है। रतन टाटा के समय ट्रस्ट्स को जो स्थायित्व और पारदर्शिता प्राप्त थी, अब वह धीरे-धीरे कम होती दिखाई दे रही है।
मेहली मिस्त्री की भूमिका और भविष्य की संभावनाएं
मेहली मिस्त्री टाटा समूह के पुराने भरोसेमंद सहयोगियों में से हैं। उन्हें टाटा ट्रस्ट्स में पुनः शामिल करने का प्रस्ताव इस बात का संकेत है कि संगठन नेतृत्व में स्थिरता लाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि उनकी नियुक्ति का विरोध भी कुछ ट्रस्टियों के बीच है।
अगर मेहली मिस्त्री को पुनः ट्रस्टी नियुक्त किया जाता है, तो यह संगठन में पुराने नेतृत्व की पुनः वापसी और नीतिगत संतुलन का संकेत माना जाएगा। वहीं, अगर यह प्रस्ताव रुक जाता है, तो यह आंतरिक खींचतान को और गहराई दे सकता है।
टाटा ट्रस्ट्स की भावी दिशा पर टिकी निगाहें
टाटा ट्रस्ट्स केवल टाटा समूह का सामाजिक चेहरा नहीं, बल्कि इसकी विश्वसनीयता का प्रतीक भी है। ऐसे में संगठन में चल रही गुटबाजी और मतभेद न केवल संस्थान की साख को प्रभावित कर सकते हैं, बल्कि इससे समूह के व्यावसायिक निर्णयों पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है।
देश के औद्योगिक और सामाजिक जगत की निगाहें अब टाटा ट्रस्ट्स के आने वाले फैसलों पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या संगठन नेतृत्व में संतुलन स्थापित कर पाता है या मतभेद और गहराते हैं।
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