भारत के पहले लांचपैड थुम्बा के जनक और कलाम के गुरु डॉ. ई.वी. चिटनिस का निधन
नई दिल्ली।
भारत के अंतरिक्ष विज्ञान के अग्रदूतों में से एक, डॉ. एकनाथ वसंत चिटनिस का बुधवार को अहमदाबाद स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। 100 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, वे पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे और हृदयाघात के कारण उनका निधन हुआ। डॉ. चिटनिस भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के उस स्वर्ण युग के साक्षी रहे, जब भारत ने शून्य से शुरुआत कर अंतरिक्ष तकनीक में अपना लोहा विश्वभर में मनवाया।
डॉ. चिटनिस का नाम भारत के पहले रॉकेट लांच स्थल थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने ही वह स्थान चुना था, जहां से भारत के पहले रॉकेट ने उड़ान भरी। यह वही थुम्बा है, जो आज भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रारंभिक कार्यक्रमों का प्रतीक माना जाता है।

भारत को थुम्बा देने वाले वैज्ञानिक
1960 के दशक में जब देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखी जा रही थी, तब डॉ. चिटनिस ने अपने गहन वैज्ञानिक अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर केरल के तटीय इलाके थुम्बा को रॉकेट प्रक्षेपण के लिए चुना। इस स्थान की विशेष भौगोलिक स्थिति—भूमध्य रेखा के निकटता और समुद्र से लगी भूमि—रॉकेट प्रक्षेपण के लिए अत्यंत अनुकूल थी। उस समय संसाधनों की भारी कमी थी, लेकिन डॉ. चिटनिस की वैज्ञानिक दृष्टि और दूरदर्शिता ने इस स्थान को अंतरिक्ष कार्यक्रम का केंद्र बना दिया। आज भी थुम्बा को भारतीय अंतरिक्ष अभियान का जनक स्थल कहा जाता है।
विक्रम साराभाई के साथ सफर
डॉ. विक्रम साराभाई, जिन्हें भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है, उनके साथ डॉ. चिटनिस ने लंबे समय तक कार्य किया। वे डॉ. साराभाई के अंतिम जीवित सहयोगियों में से एक थे। दोनों ने मिलकर भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा तय की। जब देश में न तो उपग्रह थे, न प्रक्षेपण केंद्र, तब इन वैज्ञानिकों ने सपने देखने का साहस किया और उसे साकार किया।
डॉ. चिटनिस की भूमिका भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना में भी रही, जो आगे चलकर इसरो बनी। इसरो आज जिस ऊंचाई पर है—चंद्रयान, मंगलयान और गगनयान जैसी उपलब्धियों के साथ—उसकी नींव में डॉ. चिटनिस जैसे वैज्ञानिकों का समर्पण और परिश्रम शामिल है।
डॉ. अब्दुल कलाम के प्रेरणास्रोत
डॉ. चिटनिस न केवल साराभाई के सहयोगी रहे, बल्कि वे युवा वैज्ञानिकों के मार्गदर्शक भी थे। भारत के पूर्व राष्ट्रपति और ‘मिसाइल मैन’ कहे जाने वाले डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने स्वयं कई बार स्वीकार किया था कि डॉ. चिटनिस उनके शुरुआती दिनों के प्रमुख मार्गदर्शक रहे। कलाम को उन्होंने वैज्ञानिक सोच, अनुशासन और धैर्य का पाठ पढ़ाया। यह उनका ही मार्गदर्शन था जिसने कलाम को आगे चलकर भारत के सबसे प्रेरक वैज्ञानिकों में बदल दिया।
इसरो के एसएसी निदेशक के रूप में योगदान
1981 से 1985 तक डॉ. चिटनिस अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर (SAC) के दूसरे निदेशक रहे। उनके नेतृत्व में इस केंद्र ने कई उपग्रह आधारित परियोजनाएं शुरू कीं, जिनका उपयोग दूरसंचार, मौसम पूर्वानुमान, कृषि, और आपदा प्रबंधन में हुआ। इन परियोजनाओं ने न केवल विज्ञान को, बल्कि देश के विकास के ढांचे को भी नई दिशा दी।
पद्म भूषण से सम्मानित
देश ने उनके अमूल्य योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें पद्म भूषण से नवाजा। यह सम्मान केवल एक वैज्ञानिक के रूप में नहीं, बल्कि उस दूरदर्शी व्यक्तित्व के लिए था जिसने भारत के भविष्य के अंतरिक्ष सफर की नींव रखी। उनके योगदान के बिना भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम शायद इतनी ऊंचाइयों तक न पहुंच पाता।
परिवार और निजी जीवन
डॉ. चिटनिस अपने पीछे पुत्र डॉ. चेतन चिटनिस, बहू अमिका और दो पोतियां—तारिणी व चंदिनी—को छोड़ गए हैं। उनके पुत्र डॉ. चेतन मलेरिया अनुसंधान के क्षेत्र में कार्यरत हैं और उन्होंने भी अपने पिता की तरह विज्ञान के क्षेत्र में नाम कमाया है। परिवार ने बताया कि अंतिम संस्कार अहमदाबाद में किया जाएगा।
100 वर्ष का प्रेरणादायक जीवन
सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि डॉ. चिटनिस ने अपने जीवन का शताब्दी वर्ष पूरा किया था। मंगलवार को ही उन्होंने अपना 100वां जन्मदिन मनाया था। सौ वर्ष का यह जीवन भारतीय विज्ञान के इतिहास में प्रेरणास्रोत रहेगा। उनकी मृत्यु वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक गहरी क्षति है।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की यात्रा थुम्बा से शुरू होकर आज चंद्रमा और मंगल तक पहुंची है, और इस यात्रा की शुरुआती दिशा देने वाले वैज्ञानिकों में डॉ. ई.वी. चिटनिस का नाम सदैव अमर रहेगा। उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।
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