October 19, 2025 2:08 AM

तेजस मार्क-1ए की पहली उड़ान आज नासिक में — स्वदेशी दक्षता का वैश्विक प्रदर्शन

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करेंगे मौजूदगी, एचएएल की तीसरी उत्पादन लाइन का उद्घाटन भी होगा

तेजस मार्क-1ए की पहली उड़ान आज नासिक में — रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में स्वदेशी उड़ान का ऐतिहासिक कदम

लंबे इंतजार के बाद आज वह क्षण आ चुका है जिसका रक्षा और वायुसेना जगत बेसब्री से इंतजार कर रहा था। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के द्वारा विकसित तेजस मार्क-1ए लड़ाकू विमान आज नासिक में अपनी पहली उड़ान भरेगा। यह न केवल भारत के स्वदेशी विमानन उद्योग की तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन है, बल्कि देश की रणनीतिक आत्मनिर्भरता और रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर भी है। इस मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कार्यक्रम में उपस्थित रहकर एचएएल की तीसरी उत्पादन लाइन का औपचारिक उद्घाटन भी करेंगे, जिससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि के साथ वायुसेना को विमानों की आपूर्ति में तेज़ी आने की उम्मीद है।

तेजस मार्क-1ए का यह संस्करण मूल तेजस से तकनीकी रूप से उन्नत है और इसे चौथी पीढ़ी के मल्टी-रोल लड़ाकू विमान के रूप में विकसित किया गया है। एचएएल का कहना है कि इस वर्जन में करीब साढ़े पाँछ अस्सी प्रतिशत तक के कलपुर्जे देश में ही निर्मित हैं, जिससे मरम्मत, अपग्रेड और भविष्य के विकास कार्य स्वदेशी स्तर पर जल्दी और कुशलता से किए जा सकेंगे। परियोजना के दौरान भारतीय एयरोस्पेस उद्योग को व्यापक अवसर मिले हैं और यह ‘मेक इन इंडिया’ व ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों को मजबूती देने वाला कदम माना जा रहा है।

तेजस मार्क-1ए में सन्निहित आधुनिक क्षमताएं इसे एक विश्वसनीय और बहुआयामी प्लेटफ़ॉर्म बनाती हैं। इस विमान में उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स, रडार प्रणाली, बियॉन्ड विजुअल रेंज मिसाइल की क्षमता, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली और हवा में ईंधन भरने जैसी सुविधाएँ शामिल हैं, जिससे यह दिन-रात तथा हर प्रकार के मौसम में उच्च सटीकता के साथ ऑपरेशन कर सकेगा। विमान लगभग साढ़े पांच टन से अधिक सैनिक भार वहन करने में सक्षम है, जो कि आधुनिक युद्ध परिस्थितियों में अलग तरह की लचीलापन देता है। इन क्षमताओं के कारण तेजस मार्क-1ए से वायुसेना की लड़ाकू तत्परता और बहुमुखी संचालन क्षमता में सहज वृद्धि आने की सम्भावना है।

हालाँकि यह कार्यक्रम समय पर पूरा नहीं हो पाया—मुख्यतः अमेरिकी इंजन की आपूर्ति में देरी के कारण तेजस के कार्यक्रम में डेढ़ से दो साल की देरी दर्ज हुई—फिर भी अब जब पहली उड़ान हो रही है, तो उम्मीदें फिर से प्रबल हो गई हैं। वायुसेना प्रमुख ने पहले इस आपूर्ति में देरी पर अपनी चिंता जाहिर की थी, पर अब उत्पादन लाइन की संख्या बढ़ने और घरेलू आपूर्ति श्रृंखला को सुदृढ़ करने के प्रयासों से कार्यक्रम में गति लौटने की दिशा में सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। एचएएल का लक्ष्य अगले चार वर्षों में वायुसेना को 83 तेजस मार्क-1ए विमान उपलब्ध कराने का रखा गया है, जो मात्रात्मक रूप से वायुसेना की क्षमता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा।

देश के सुरक्षा परिदृश्य के बदलते स्वरूप और बढ़ती चुनौतियों के मद्देनज़र तेजस मार्क-1ए का समय पर वायुसेना में शामिल होना महत्वपूर्ण है। हालिया वर्षों में कुछ पुराने विमानों के सेवानिवृत्त होने के बाद वायुसेना की स्क्वाड्रन संख्या घटकर 29 रह गई है। ऐसे में तेजस मार्क-1ए की तैनाती से सैन्य संरचना को आवश्यक मजबूती मिल सकती है और ऑपरेशनल रिकवरी में भी मदद मिलेगी। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि स्वदेशी विमानन उत्पाद के बढ़ते उत्पादन से न केवल क्षमता में वृद्धि होगी बल्कि लॉजिस्टिक्स, स्पेयर पार्ट्स और रखरखाव के संदर्भ में भी दीर्घकालिक लाभ मिलेंगे।

तेजस मार्क-1ए परियोजना ने राष्ट्रीय औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र को भी बल दिया है। इसमें शामिल अधिकतर कलपुर्जे देश में ही बनते हैं, जिससे आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता कम हुई है और अपग्रेड व अनुकूलन कार्य तेज और सस्ते रूप में किए जा सकेंगे। इससे भविष्य में हुए किसी भी तकनीकी संशोधन को स्थानीय स्तर पर क्रियान्वित करने में आसानी रहेगी और विदेशी निर्भरता घटेगी। इसके साथ ही यह परियोजना हजारों अप्रत्यक्ष रोजगार भी उत्पन्न कर रही है और अनेक छोटे व मध्यम उद्यमों को उच्च तकनीकी माँग के साथ जोड़ रही है।

आज नासिक में होने वाली पहली उड़ान का दर्शक न केवल भारतीय वायुसेना और रक्षा उद्योग के विशेषज्ञ होंगे, बल्कि यह पूरा देश इस उपलब्धि को गौरव के साथ देख रहा है। यदि उड़ान सफल रही, तो आगे की परीक्षाओं और प्रमाणन प्रक्रियाओं के बाद तेजस मार्क-1ए की तैनाती की आधिकारिक तारीख घोषित की जाएगी और धीरे-धीरे यह स्क्वाड्रनों में शामिल होते हुए वायुशक्ति के मानचित्र को बदलने का काम करेगा।

तेजस मार्क-1ए की पहली उड़ान केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है; यह संकेत है कि भारत अब उच्च तकनीक रक्षा उत्पादन के भीतर आत्मनिर्भरता की राह पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। इस सफलता से राष्ट्रीय सुरक्षा की नींव मजबूत होगी और भविष्य में और भी स्वदेशी रक्षा परियोजनाओं को गति मिलने की उम्मीद बढ़ेगी।

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