’रूस बोला— भारत के साथ हमारी तेल साझेदारी विश्वास की नींव पर; राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर साधा निशाना
ट्रम्प के दावे पर भारत की सधी प्रतिक्रिया: विदेश मंत्रालय ने कहा – ‘जनता के हित में फैसले लेते हैं’, रूस ने भी दिया जवाब
नई दिल्ली, 17 अक्टूबर। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विवादित बयान के बाद भारत और रूस दोनों ने अपने-अपने पक्ष को स्पष्ट किया है। ट्रम्प ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे वादा किया है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा। इस दावे को भारत ने पूरी तरह अस्वीकार नहीं किया, परन्तु संतुलित और कूटनीतिक जवाब देते हुए स्पष्ट किया कि देश की ऊर्जा नीतियां जनता के हित और आर्थिक स्थिरता को ध्यान में रखकर तय होती हैं।
🔹 ट्रम्प का दावा — “मोदी ने कहा भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा”
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को एक मीडिया संवाद में कहा कि उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत हुई, जिसमें मोदी ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि भारत जल्द ही रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा।
“भारत रूस से तेल खरीदता रहा है, जिससे मुझे खुशी नहीं थी। लेकिन मोदी ने वादा किया कि अब ऐसा नहीं होगा। अब हमें चीन से भी यही करवाना होगा।”
ट्रम्प ने आगे कहा कि “मोदी मुझसे प्यार करते हैं”, और अपने बयान को स्पष्ट करते हुए जोड़ा कि “मैं चाहता हूं कि इसे गलत अर्थों में न लिया जाए, मैं किसी का राजनीतिक करियर खराब नहीं करना चाहता।”
उन्होंने यह भी कहा कि “मैंने सालों से भारत को देखा है, जहां हर साल सरकारें बदलती रही हैं, लेकिन मोदी लंबे समय से वहां टिके हुए हैं। वे अपने देश के लिए गंभीर हैं और वैश्विक मंच पर भारत को आगे बढ़ा रहे हैं।”
🔹 ट्रम्प सरकार का नया दबाव — भारत पर कुल 50% टैरिफ
ट्रम्प ने अगस्त 2025 में भारत से रूस के साथ तेल व्यापार जारी रखने के कारण 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया था। इससे पहले भी अमेरिका भारत पर 25 प्रतिशत का शुल्क लगा चुका था। इस तरह अब तक भारत पर कुल 50% आयात शुल्क लागू हो चुका है। विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम भारत पर आर्थिक दबाव बनाकर विदेश नीति को प्रभावित करने का प्रयास है।
🔹 विदेश मंत्रालय का जवाब — “हम जनता के हित में फैसले लेते हैं”
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को इस मुद्दे पर आधिकारिक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा—
“बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी।”
उन्होंने आगे कहा—
“भारत तेल और गैस का बड़ा खरीदार है। अस्थिर वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना हमारी प्राथमिकता है। हमारी आयात नीतियां इसी उद्देश्य के अनुरूप तैयार की जाती हैं। हमारा लक्ष्य स्थिर ऊर्जा मूल्य और सुरक्षित आपूर्ति सुनिश्चित करना है।”
जायसवाल ने कहा कि भारत की ऊर्जा नीति दो मुख्य सिद्धांतों पर आधारित है —
कीमतों की स्थिरता बनाए रखना।
ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण ताकि किसी एक देश पर निर्भरता न रहे।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत कई वर्षों से अमेरिका के साथ ऊर्जा सहयोग बढ़ाने का प्रयास कर रहा है और इस दिशा में काफी प्रगति हुई है।
“अमेरिकी प्रशासन ने भी भारत के साथ ऊर्जा साझेदारी को गहराने में रुचि दिखाई है, और इस पर वार्ता जारी है।”
🔹 रूस की प्रतिक्रिया — “भारत के साथ ऊर्जा सहयोग जारी रहेगा”
भारत में रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने ट्रम्प के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा—
“भारत और रूस के बीच ऊर्जा साझेदारी विश्वास की मज़बूत नींव पर आधारित है। रूस की तेल आपूर्ति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद रही है, और यह सहयोग जारी रहेगा।”
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच तेल व्यापार न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि वैश्विक बाजार की स्थिरता में भी योगदान देता है।
“हम भारत के साथ अपने सहयोग को और गहरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
🔹 विश्लेषण — अमेरिका, रूस और भारत के बीच कूटनीतिक तिकड़ी
विदेश नीति विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रम्प का बयान आगामी अमेरिकी चुनावों के संदर्भ में घरेलू राजनीति से प्रेरित है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए ताकि पश्चिमी प्रतिबंधों का असर अधिक गहरा हो। दूसरी ओर, भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए “संतुलन की नीति” पर चलता रहा है — यानी न तो रूस से दूरी बनाता है, न ही अमेरिका से संबंध बिगाड़ता है।
भारत की यह नीति — “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) — प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में और अधिक दृढ़ हुई है, जिसमें किसी भी महाशक्ति के दबाव में आए बिना अपने हितों को सर्वोपरि रखा गया है।
🔹 मौजूदा स्थिति
भारत अब भी रूस से रियायती दरों पर तेल खरीद रहा है। इससे देश की ऊर्जा आपूर्ति सुरक्षित बनी हुई है। अमेरिकी प्रतिबंधों और दबाव के बावजूद भारत ने कहा है कि वह केवल अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार ही निर्णय लेगा।
भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार—
“हम किसी तीसरे देश के दबाव में नहीं आएंगे। हमारे निर्णय भारत की जनता और अर्थव्यवस्था के हित में होंगे।”
यह मामला केवल दो नेताओं के बीच विवादित बयान भर नहीं, बल्कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक कूटनीति की दिशा से जुड़ा है। भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि उसकी विदेश नीति “किसी के प्रभाव में नहीं, बल्कि अपने हितों के अनुरूप” चलेगी।
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