October 15, 2025 11:44 PM

कोल्ड्रिफ कफ सिरप कांड में नया खुलासा: डॉ. प्रवीण सोनी ने कोर्ट में कबूला—दवा लिखने पर मिलता था कमीशन

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एसआईटी ने श्रेसन फार्मा के केमिकल एनालिस्ट समेत तीन और आरोपियों को किया गिरफ्तार

कोल्ड्रिफ सिरप कांड में बड़ा खुलासा: डॉक्टर को मिलता था कमीशन, कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की

भोपाल।
मध्यप्रदेश के चर्चित कोल्ड्रिफ कफ सिरप कांड में अब सनसनीखेज खुलासे सामने आए हैं। परासिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ चिकित्सक डॉ. प्रवीण सोनी ने अदालत में स्वीकार किया है कि उन्होंने कोल्ड्रिफ कफ सिरप लिखने के बदले श्रेसन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड से 10 प्रतिशत कमीशन लिया था। यह वही दवा है, जिसने प्रदेश में 25 मासूम बच्चों की जान ले ली थी।

डॉक्टर ने कोर्ट में किया कबूलनामाः

जांच के दौरान डॉ. सोनी ने अपने मेमोरेंडम बयान में खुलासा किया कि कोल्ड्रिफ कफ सिरप की हर बोतल की कीमत 89 रुपए एमआरपी दर्ज थी और इस पर उन्हें कंपनी से कमीशन मिलता था।
यह भी सामने आया कि उनकी पत्नी और भतीजे की मेडिकल दुकान पर भी यही दवाइयां बेची जाती थीं।
अदालत में स्वीकारोक्ति के बाद अब जांच दल डॉक्टर की भूमिका को केंद्र में रखकर आगे की कार्रवाई कर रहा है।

श्रेसन फार्मा के 3 और कर्मचारी गिरफ्तार

इस बीच, मध्यप्रदेश सरकार की विशेष जांच दल (एसआईटी) ने तमिलनाडु में छापेमारी कर श्रेसन फार्मा की केमिकल एनालिस्ट को गिरफ्तार किया है।
सूत्रों के अनुसार, गिरफ्तार महिला के पास से कई महत्वपूर्ण दस्तावेज और दवा निर्माण से संबंधित रिपोर्टें मिली हैं।
एसआईटी टीम आरोपियों को लेकर जल्द छिंदवाड़ा लौटेगी।
वहीं, छिंदवाड़ा में एक फार्मासिस्ट और एक केमिस्ट को भी पुलिस ने रिमांड पर लिया है।
अब तक इस मामले में डॉक्टर सोनी, श्रेसन फार्मा के मालिक और निदेशक गोविंदन रंगनाथन, तथा अन्य दो अधिकारियों समेत कुल पांच गिरफ्तारी हो चुकी हैं।

वकील का तर्क—“मिलावट की जिम्मेदारी निर्माता की”

डॉ. सोनी के वकील ने परासिया अदालत में दलील दी कि उनके मुवक्किल निर्दोष हैं और उन्हें तकनीकी आधार पर फंसाया गया है।
वकील का कहना था कि दवा में मिलावट का जिम्मा निर्माता कंपनी का होता है, न कि चिकित्सक का।
उन्होंने कहा कि दवाई की जांच और गुणवत्ता नियंत्रण की जिम्मेदारी ड्रग कंट्रोलर विभाग की है।
डॉ. सोनी ने यह दवा केवल इलाज के दौरान दी थी, और उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि कंपनी ने उस खेप में अमानक रासायनिक तत्व मिलाए हैं।
वकील ने कहा कि बिना किसी ठोस सबूत के डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना अनुचित है।

कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की

हालांकि, सरकारी वकील के तर्क सुनने के बाद अदालत ने डॉ. सोनी की जमानत याचिका खारिज कर दी।
अदालत ने कहा कि घटना की जानकारी होने के बाद भी डॉक्टर ने संबंधित सिरप का उपयोग जारी रखा।
इसके अलावा, स्वास्थ्य महानिदेशालय की 18 दिसंबर 2023 की गाइडलाइन के अनुसार, चार वर्ष से कम आयु के बच्चों को एफडीसी (Fixed Dose Combination) सिरप देना सख्त वर्जित था।
इसके बावजूद डॉक्टर ने इस दवा का उपयोग जारी रखा, जिसे अदालत ने गंभीर लापरवाही और आपराधिक असावधानी माना।

अदालत ने टिप्पणी की कि यह अपराध गंभीर प्रकृति का है, जांच अभी अधूरी है, और आरोपी के पास साक्ष्यों को प्रभावित करने की संभावना है। इसलिए, इस चरण पर उसे जमानत देना न्यायोचित नहीं होगा।

एसआईटी की जांच निर्णायक दौर में

एसआईटी सूत्रों के अनुसार, अब जांच श्रेसन फार्मा की उत्पादन प्रक्रिया, कच्चे माल की गुणवत्ता, और वितरण तंत्र पर केंद्रित की जा रही है।
जांच अधिकारी यह भी पता लगा रहे हैं कि कंपनी ने किन-किन जिलों में इस सिरप की खेप भेजी और कितने चिकित्सकों ने इसे लिखने में भूमिका निभाई।
फार्मा कंपनी के गोदामों और प्रयोगशालाओं से जब्त किए गए दस्तावेजों की फॉरेंसिक जांच भी चल रही है।

मृत बच्चों के परिवारों में आक्रोश

कोल्ड्रिफ सिरप से 25 बच्चों की मौत ने प्रदेशभर में गहरा आक्रोश फैला दिया था।
मृत बच्चों के परिजनों ने बार-बार मांग की है कि न केवल निर्माता बल्कि ऐसे डॉक्टरों पर भी कठोर कार्रवाई हो, जिन्होंने आर्थिक लाभ के लिए बच्चों की जान से खिलवाड़ किया।
जन संगठनों और चिकित्सक संघों ने भी इस घटना को चिकित्सा नैतिकता पर गहरी चोट बताया है।

राज्य सरकार ने आश्वासन दिया है कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह चिकित्सक हो या औषधि निर्माता।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी निर्देश जारी किए हैं कि सभी जिला अस्पतालों में दवाओं की गुणवत्ता जांच अनिवार्य की जाए और संदिग्ध फार्मा कंपनियों के लाइसेंस तत्काल निलंबित किए जाएं।

प्रदेश में दवा नियंत्रण पर सवाल

यह मामला अब केवल एक दवा या डॉक्टर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह प्रदेश में औषधि नियंत्रण व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर रहा है।
कई विशेषज्ञों ने कहा है कि यदि ड्रग इंस्पेक्शन और सैंपलिंग समय पर होती, तो 25 मासूमों की जानें बचाई जा सकती थीं।
राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने अब सभी सरकारी अस्पतालों को आदेश दिया है कि बच्चों के लिए उपयोग में आने वाली सभी दवाओं की गुणवत्ता रिपोर्ट पुनः जांची जाए।

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