मानवाधिकारों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का वैश्विक सम्मान, 2026-28 तक रहेगा कार्यकाल
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत सातवीं बार निर्विरोध चुना गया, तीन साल का कार्यकाल 2026-28 तक
संयुक्त राष्ट्र।
भारत ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर अपनी प्रतिष्ठा का परचम लहराया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारत को 2026 से 2028 तक के लिए मानवाधिकार परिषद (Human Rights Council) का सदस्य निर्विरोध रूप से चुना है। यह सातवीं बार है जब भारत को इस प्रतिष्ठित निकाय में स्थान मिला है। इस चुनाव के साथ ही भारत ने एक बार फिर यह साबित किया है कि विश्व समुदाय उसे एक जिम्मेदार, लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों का सम्मान करने वाले देश के रूप में मान्यता देता है।
भारत का सातवां कार्यकाल — वैश्विक भरोसे की मुहर
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत का यह सातवां कार्यकाल होगा। इससे पहले भारत 2006, 2009, 2011, 2014, 2017 और 2021 में भी परिषद का सदस्य चुना जा चुका है। इस बार भी भारत को निर्विरोध चुने जाने का अर्थ है कि दुनिया के देशों ने भारत की भूमिका और उसके योगदान को सर्वसम्मति से स्वीकार किया है।
भारत की यह सफलता ऐसे समय में आई है जब वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के सवाल को लेकर अनेक चुनौतियाँ सामने हैं — चाहे वह युद्धग्रस्त क्षेत्र हों, प्रवासियों की स्थिति हो या सामाजिक असमानता का प्रश्न। ऐसे में भारत की भूमिका विश्व मंच पर और अधिक महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
पी. हरीश ने जताया आभार, कहा – “मानवता के प्रति समर्पण का परिणाम”
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने इस अवसर पर सभी सदस्य देशों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भारत का निर्विरोध चुनाव इस बात का प्रतीक है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत की मानवाधिकारों, लोकतंत्र और मौलिक स्वतंत्रताओं के प्रति निष्ठा को सम्मानित करता है।
हरीश ने सोशल मीडिया पर लिखा – “भारत मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों को और मजबूत करेगा। हम सभी देशों के समर्थन के लिए आभारी हैं और अपने कार्यकाल के दौरान इन उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए तत्पर हैं।”

मानवाधिकार परिषद — वैश्विक न्याय का प्रमुख मंच
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, यूएन की एक प्रमुख संस्था है, जिसकी स्थापना वर्ष 2006 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य दुनियाभर में मानवाधिकारों की रक्षा और उन्हें प्रोत्साहित करना है। परिषद में कुल 47 सदस्य देश होते हैं, जो क्षेत्रीय आधार पर चुने जाते हैं।
परिषद न केवल विभिन्न देशों में मानवाधिकारों की स्थिति की समीक्षा करती है बल्कि यह एक ऐसा मंच भी प्रदान करती है, जहां सदस्य देश इनसे संबंधित मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं और एक-दूसरे के अनुभव साझा कर सकते हैं।
भारत वर्ष 2006 में पहली बार इस परिषद का सदस्य बना था और तब से वह लगातार अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है। भारत ने हमेशा इस मंच पर विकास, समानता और न्याय के मूल्यों को आगे बढ़ाने की दिशा में रचनात्मक योगदान दिया है।
भारत की भूमिका और योगदान
भारत ने मानवाधिकार परिषद में अपने पिछले कार्यकालों के दौरान कई महत्वपूर्ण विषयों पर सार्थक पहल की है।
- भारत ने हमेशा यह रुख अपनाया है कि मानवाधिकारों का सम्मान और उनका संरक्षण, किसी भी देश की संप्रभुता, विकास और सामाजिक न्याय से जुड़ा हुआ विषय है।
- भारत ने ‘राइट टू डेवलपमेंट’ यानी विकास के अधिकार को भी मानवाधिकारों के एक मूल तत्व के रूप में प्रस्तुत किया।
- भारत की यह भी राय रही है कि मानवाधिकारों की रक्षा का कार्य केवल आलोचना या आरोपों से नहीं, बल्कि सहयोग और संवाद से संभव है।
विश्व में बढ़ता भारत का प्रभाव
भारत का सातवीं बार निर्विरोध चुना जाना इस बात का प्रमाण है कि वह वैश्विक नीति निर्धारण में अब एक महत्वपूर्ण आवाज बन चुका है।
पिछले वर्षों में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न मंचों पर शांति, विकास, जलवायु न्याय, और मानव कल्याण के मुद्दों पर नेतृत्व की भूमिका निभाई है।
आज जब कई देशों में मानवाधिकारों को लेकर मतभेद और राजनीतिक दबाव बढ़ रहे हैं, भारत का संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण अन्य देशों के लिए एक उदाहरण बनता जा रहा है।
भविष्य की दिशा
भारत ने अपने नए कार्यकाल के दौरान मानवाधिकार परिषद में विश्व शांति, सतत विकास, लैंगिक समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया है।
इसके साथ ही भारत इस मंच पर “वैश्विक दक्षिण” यानी विकासशील देशों की आवाज को और अधिक सशक्त बनाने का प्रयास करेगा।
भारत के इस चुनाव से यह स्पष्ट संदेश गया है कि लोकतंत्र, विविधता और समानता के मूल्यों पर आधारित भारतीय दृष्टिकोण को विश्व समुदाय सम्मान और विश्वास के साथ देखता है।
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