नागपुर में भोसले राजघराने पर आधारित चार पुस्तकों का लोकार्पण, शिवाजी महाराज के आदर्शों को बताया प्रेरणास्रोत
भारत का इतिहास पराजय का नहीं, संघर्ष का है: डॉ. मोहन भागवत
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत का इतिहास पराजय का नहीं, बल्कि संघर्ष और आत्मबल का इतिहास है। उन्होंने कहा कि भारत पर प्राचीन काल से निरंतर आक्रमण होते रहे, लेकिन कोई भी विदेशी आक्रांता इस देश में चैन की नींद नहीं सो सका, क्योंकि भारत के वीरों ने हर बार साहस और संगठन के बल पर उन्हें करारा उत्तर दिया।
डॉ. भागवत शुक्रवार को नागपुर के सीनियर भोसला पैलेस में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे, जहाँ उन्होंने भोसले राजघराने पर आधारित चार पुस्तकों का लोकार्पण किया।
“भारत कभी शौर्यहीन नहीं रहा”
कार्यक्रम में बोलते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि भारत में कभी भी शौर्य और पराक्रम की कमी नहीं रही।
उन्होंने कहा, “विदेशी आक्रमणों के समय भी भारत ने अपना आत्मबल बनाए रखा। छत्रपति शिवाजी महाराज ऐसे समय में उभरे जब विदेशी सत्ता के सामने लोग निराश हो चुके थे, लेकिन उन्होंने ईश्वर, धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए स्वराज की स्थापना का संकल्प लिया और उसे सिद्ध भी किया।”
भागवत ने कहा कि शिवाजी महाराज ने मित्रों और सहयोगियों को जोड़कर एक जनआंदोलन खड़ा किया, जिसने भारतीय समाज में आत्मविश्वास जगाया। उनका संघर्ष केवल व्यक्तिगत या क्षेत्रीय नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय पुनरुत्थान की चेतना से प्रेरित था।

“संघर्ष की भावना से ही इतिहास बना गौरवशाली”
डॉ. भागवत ने कहा कि भारत का इतिहास तब तक विजयगाथाओं से भरा रहा जब तक लोगों में “एकता की भावना” और “संघर्ष के प्रति प्रेरणा” जीवित रही।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरित होकर देशभर में कई शासकों ने विदेशी शासन के विरुद्ध संघर्ष किया।
राजस्थान में दुर्गा प्रसाद राठौड़ ने राजपूतों को संगठित कर मुगलों के विरुद्ध संघर्ष किया, जिसके बाद मुगलों की राजपुताना में फिर कभी वापसी नहीं हो सकी।
इसी प्रकार कूचबिहार के राजा चक्रधर सिंह भी शिवाजी से प्रभावित थे। उन्होंने एक राजा को पत्र लिखकर कहा था — “अब हम भी शिवाजी महाराज की भांति विदेशी आक्रमणकारियों को बंगाल की खाड़ी में डुबोकर नष्ट कर सकते हैं।”
“कान्होजी आंग्रे और भोसले राजघराने ने दिखाया त्याग का उदाहरण”
डॉ. भागवत ने कहा कि राष्ट्रहित के लिए स्वार्थ का त्याग और निस्वार्थ सेवा ही सच्चे राष्ट्रभक्त की पहचान है।
उन्होंने कान्होजी आंग्रे का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने अपने वतन का त्याग किया और अपने चार पुत्रों के साथ शिवाजी महाराज के साथ खड़े रहे।
उनकी प्रेरणा यही थी कि “राज्य की स्थापना ईश्वर की इच्छा है।”
उन्होंने कहा कि यही भावना नागपुर के भोसले राजघराने में भी देखी जाती है।
अप्पासाहेब भोसले ने काबुल और कंधार तक संधियां स्थापित कर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। यह भोसले परिवार की देशभक्ति और संघर्षशील परंपरा का प्रमाण है।
“इतिहास को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाना जरूरी”
डॉ. भागवत ने इस अवसर पर कहा कि भोसले राजघराने का यह गौरवशाली इतिहास केवल अभिलेखों में सीमित न रहे, बल्कि जनमानस तक पहुंचे और अगली पीढ़ियों तक हस्तांतरित हो, यह हम सबकी जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि जो समाज अपने इतिहास को भूल जाता है, वह अपनी पहचान खो देता है।
भागवत ने कहा कि इतिहास केवल घटनाओं का क्रम नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, प्रेरणा और आत्मबल की परंपरा है।
उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे इस गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेकर राष्ट्र निर्माण के कार्य में सक्रिय हों।
कार्यक्रम में रहे अनेक गणमान्य अतिथि
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जितेंद्रनाथ महाराज ने कहा कि भोसले वंश का इतिहास भारतीय स्वाभिमान का प्रतीक है।
पुस्तकों के लेखकों ने अपने उद्बोधन में कहा कि भोसले परिवार का इतिहास केवल मराठा साम्राज्य का हिस्सा नहीं, बल्कि भारत के आत्मसम्मान की कहानी है।
कार्यक्रम के अंत में पसायदान का सामूहिक गायन हुआ, जिसने पूरा वातावरण राष्ट्रभक्ति और अध्यात्म की भावना से ओतप्रोत कर दिया।
इतिहास से जुड़ी चार पुस्तकों का लोकार्पण
कार्यक्रम में भोसले राजघराने की गाथा पर आधारित चार पुस्तकों का लोकार्पण किया गया —
- “भोसले वंश की गौरवगाथा”
- “शिवाजी और मराठा साम्राज्य का पुनर्जागरण”
- “कान्होजी आंग्रे: सागर का शेर”
- “अप्पासाहेब भोसले: संघर्ष और स्वाभिमान की कथा”
इन पुस्तकों को इतिहासकारों और शोधकर्ताओं ने वर्षों के अध्ययन के बाद तैयार किया है।
✨ स्वदेश ज्योति के द्वारा | और भी दिलचस्प खबरें आपके लिए… सिर्फ़ स्वदेश ज्योति पर!
- चांदी के दाम इतिहास में पहली बार 1.75 लाख प्रति किलो के पार, सोने से 37% अधिक रिटर्न — जानिए कारण, निवेश सलाह और सुरक्षित विकल्प
- ‘महाभारत’ के कर्ण पंकज धीर नहीं रहे, 68 वर्ष की आयु में हुआ निधन
- ऐसी योजना बनाएं कि दुर्घटनाएं कम और सफर सुगम हो: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव
- गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री रवि नाइक का 79 वर्ष की आयु में निधन
- दिल्ली में चार दिन तक सशर्त ‘ग्रीन पटाखों’ की अनुमति