ट्रंप की आयात शुल्क नीति से अमेरिका को ही नुकसान, गीता गोपीनाथ का बड़ा बयान
वॉशिंगटन। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री और जानी-मानी भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आयात शुल्क नीति पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप की ओर से लगाए गए ऊंचे टैरिफ से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कोई ठोस फायदा नहीं हुआ, बल्कि इससे आर्थिक दबाव और उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है।
गीता गोपीनाथ ने अपने विश्लेषण में स्पष्ट किया कि ट्रंप का यह निर्णय “राजनीतिक अहंकार और आर्थिक वास्तविकता से दूर सोच” पर आधारित था, जिसने न केवल वैश्विक व्यापार को प्रभावित किया, बल्कि अमेरिका की अपनी विनिर्माण नीति को भी कमजोर किया।
ट्रंप ने लगाए थे भारत और ब्राजील पर भारी शुल्क
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान अमेरिका के निर्माण क्षेत्र को मजबूत करने और व्यापार घाटे को घटाने के नाम पर कई देशों से आयातित वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाए थे।
इनमें भारत और ब्राजील प्रमुख थे। ट्रंप प्रशासन ने भारत से आने वाले औद्योगिक और कृषि उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक शुल्क, जबकि पेटेंटेड दवाओं पर 100 प्रतिशत तक आयात शुल्क लगाने की घोषणा की थी।
उनका दावा था कि इससे अमेरिकी कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में लाभ मिलेगा, घरेलू उत्पादन बढ़ेगा और व्यापार घाटा कम होगा। परंतु छह महीने बाद हुए आकलन में यह स्पष्ट हुआ कि इन टैरिफ नीतियों का उल्टा असर अमेरिकी बाजार पर पड़ा।

गीता गोपीनाथ का विश्लेषण: “लिबरेशन डे टैरिफ से फायदा नहीं हुआ”
आईएमएफ की पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने अपने सोशल मीडिया मंच एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा—
“लिबरेशन डे टैरिफ के छह महीने पूरे हो चुके हैं। अब यह पूछने का समय है— इनसे आखिर हासिल क्या हुआ?”
उन्होंने अपने विश्लेषण में चार प्रमुख बिंदुओं के आधार पर ट्रंप की नीति का मूल्यांकन किया—
- अमेरिकी निर्माण क्षेत्र में कोई वास्तविक वृद्धि नहीं हुई।
- उपभोक्ता वस्तुएं महंगी हो गईं, जिससे आम अमेरिकी परिवारों की जेब पर बोझ बढ़ा।
- विदेशी निवेश में गिरावट देखी गई क्योंकि कंपनियों ने अमेरिका में उत्पादन बढ़ाने की बजाय अन्य देशों में रुख किया।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई, जिससे निर्यात क्षेत्र भी प्रभावित हुआ।
गोपीनाथ ने अंत में कहा कि “ट्रंप की टैरिफ नीति का स्कोरकार्ड नकारात्मक है। इसने लाभ से ज्यादा हानि पहुंचाई है।”

विशेषज्ञों ने भी जताई चिंता
ट्रंप की इस नीति को लेकर न केवल अमेरिकी बल्कि भारतीय विशेषज्ञों ने भी चिंता व्यक्त की है।
जेएनयू के चीन मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने कहा कि ट्रंप का भारत पर टैरिफ लगाना “अहंकार से प्रेरित फैसला” था। उनके अनुसार,
“यदि ट्रंप को व्यापार घाटे की चिंता थी, तो ध्यान चीन पर होना चाहिए था। भारत इस पूरी लड़ाई में बस एक साइड शो बन गया।”
कोंडापल्ली का मानना है कि भारत पर टैरिफ लगाने का निर्णय राजनीतिक संदेश देने के लिए लिया गया था, न कि आर्थिक लाभ के लिए।
भारत पर तत्काल प्रभाव नहीं, लेकिन खतरा बना हुआ
टफ्ट्स विश्वविद्यालय के फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी के ग्लोबल बिजनेस डीन भास्कर चक्रवर्ती ने कहा कि ट्रंप द्वारा दवाओं पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने का भारत पर फिलहाल कोई तत्काल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि अमेरिका में भारतीय जेनेरिक दवाओं की मांग बहुत अधिक है और इन्हें पूरी तरह से रोकना संभव नहीं है।
हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि यदि भविष्य में ट्रंप फिर सत्ता में आते हैं, तो भारतीय जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की टैरिफ नीति ने केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) को भी बाधित किया। इससे कई देशों के उद्योग प्रभावित हुए और मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ा।
विशेषज्ञों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति में आक्रामक टैरिफ लगाने से घरेलू उद्योगों को दीर्घकालिक लाभ नहीं मिलता, बल्कि इससे प्रतिशोधी टैरिफ का चक्र शुरू होता है, जो दोनों पक्षों की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है।
गीता गोपीनाथ ने दी सलाह
गीता गोपीनाथ ने अमेरिकी नीति निर्माताओं को सलाह दी कि उन्हें “आर्थिक राष्ट्रवाद से बाहर निकलकर व्यावहारिक व्यापार नीतियां अपनानी चाहिए।” उन्होंने कहा कि मजबूत अर्थव्यवस्था वह होती है, जो साझेदारी बढ़ाए, न कि सीमाएं खड़ी करे।

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