चंडीगढ़ एयर बेस से 26 सितंबर को मिग-21 लड़ाकू विमान की अंतिम विदाई उड़ान
चंडीगढ़, 24 सितंबर (हि.स.)। भारतीय वायुसेना का ऐतिहासिक और गौरवशाली लड़ाकू विमान मिग-21 अब अपने पहले घर चंडीगढ़ से विदाई लेने जा रहा है। 26 सितंबर को 12 विंग एयरबेस से यह विमान अपनी अंतिम उड़ान भरेगा। यह क्षण भारतीय वायुसेना के लिए भावुक करने वाला होगा, क्योंकि मिग-21 ने लगभग छह दशकों तक देश की वायुसीमा की रक्षा में अहम भूमिका निभाई है।

मिग-21 की ऐतिहासिक यात्रा
मिकोयान ग्युरेविच (मिग-21) रूस निर्मित सुपरसोनिक जेट है, जिसे भारत ने 1963 में अपनी वायुसेना में शामिल किया था। इसे चंडीगढ़ एयर बेस पर पहली बार तैनात किया गया था, और यहीं से इसकी पहली स्क्वॉड्रन बनी। इसलिए चंडीगढ़ को मिग-21 का “पहला घर” कहा जाता है। 60 वर्षों से भी अधिक समय तक इस विमान ने भारतीय आसमान की निगरानी की और कई युद्धों तथा सैन्य अभियानों में अपनी ताकत का परिचय दिया।
अंतिम उड़ान की तैयारी
26 सितंबर को होने वाले विदाई समारोह की तैयारियां जोरों पर हैं। बुधवार को एयर बेस पर फुल ड्रेस रिहर्सल आयोजित हुई, जिसमें मिग-21 का भव्य स्वागत किया गया। इस मौके पर वायुसेना की सूर्यकिरण एरोबैटिक टीम ने आसमान में अपनी अद्भुत कलाबाजियां दिखाकर कार्यक्रम को खास बना दिया। इसके साथ ही पैंथर और जैगुवार लड़ाकू विमानों ने भी हैरतअंगेज प्रदर्शन कर उपस्थित लोगों का मन मोह लिया।

समारोह में शामिल होंगे दिग्गज
विदाई समारोह में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मुख्य अतिथि होंगे। उनके साथ वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, थल सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी और कई वरिष्ठ रक्षा अधिकारी शामिल होंगे। खास बात यह होगी कि इस अवसर पर वायुसेना की महिला फाइटर पायलट स्क्वाड्रन लीडर प्रिया शर्मा भी मौजूद रहेंगी, जो भारतीय वायुसेना में महिलाओं की बढ़ती भूमिका और योगदान का प्रतीक होंगी।
आखिरी उड़ान का अनुभव होगा दर्ज
मिग-21 के साथ अंतिम उड़ान भरने वाले पायलट इस ऐतिहासिक पल को अपनी स्मृतियों में हमेशा के लिए संजोएंगे। वायुसेना ने तय किया है कि इन पायलटों से उनके अनुभवों को एक रिपोर्ट के रूप में संकलित किया जाएगा, जिसे भविष्य के लिए संरक्षित रखा जाएगा। यह रिपोर्ट भारतीय वायुसेना की विरासत और मिग-21 की गौरवगाथा का हिस्सा बनेगी।
सूर्यकिरण टीम की खास भूमिका
विदाई से पहले हुई रिहर्सल में सूर्यकिरण एरोबैटिक टीम का प्रदर्शन सबसे आकर्षक रहा। यह टीम भारतीय वायुसेना की पहचान और प्रतिष्ठा का प्रतीक मानी जाती है। अपनी सटीकता, कौशल और तालमेल के लिए प्रसिद्ध सूर्यकिरण टीम ने आसमान में ऐसे दृश्य रचे जो समारोह को और भी ऐतिहासिक बना गए।
एक युग का अंत
मिग-21 को लंबे समय तक भारतीय वायुसेना की रीढ़ कहा जाता रहा है। 1971 के युद्ध में इसकी भूमिका निर्णायक रही थी। लेकिन समय के साथ तकनीक बदलती गई और नए लड़ाकू विमानों जैसे सुखोई-30, राफेल और तेजस ने इसकी जगह लेनी शुरू कर दी। अब 26 सितंबर को जब मिग-21 आखिरी बार चंडीगढ़ के आसमान में उड़ान भरेगा, तो यह सिर्फ एक विमान की विदाई नहीं बल्कि भारतीय सैन्य इतिहास के एक सुनहरे अध्याय का समापन होगा।

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