शिमला। हिमाचल प्रदेश इस समय अपनी सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा का सामना कर रहा है। लगातार हो रही भारी बारिश, भूस्खलन, अचानक बाढ़ और बादल फटने जैसी घटनाओं ने राज्य को झकझोर कर रख दिया है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 20 जून 2025 से अब तक 409 लोगों की मौत हो चुकी है।
इनमें से 229 मौतें सीधे तौर पर बारिश से जुड़ी घटनाओं — भूस्खलन, घर गिरने, डूबने, बिजली गिरने और अचानक बाढ़ जैसी आपदाओं — के कारण हुई हैं। वहीं, सड़क दुर्घटनाओं में 180 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर हादसे भूस्खलन से रास्तों के बंद होने, सड़क पर फिसलन और कम दृश्यता की वजह से हुए।
मुख्यमंत्री ने इस तबाही को “हिमाचल की अब तक की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी” करार दिया और कहा कि राज्य के पुनर्निर्माण में वर्षों लग सकते हैं।
473 घायल, 41 लापता, 35 हजार से अधिक लोग राहत शिविरों में
रिपोर्ट के अनुसार, इस आपदा में 473 लोग घायल हुए हैं और 41 लोग अभी भी लापता हैं।
- एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और सेना की टीमें इन लापता लोगों की तलाश में लगातार अभियान चला रही हैं।
- अब तक 35,000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।
- सरकार ने राज्यभर में 120 राहत शिविर बनाए हैं, जहां पीड़ितों को भोजन, चिकित्सा सुविधा और अस्थायी आवास उपलब्ध कराया जा रहा है।
प्रभावित जिलों के कई गांव अभी भी बिजली और इंटरनेट से कटे हुए हैं, जिससे राहत कार्यों में कठिनाई आ रही है।
जानवरों पर भी संकट, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका
यह तबाही सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं रही।
- 2,100 से ज्यादा पालतू जानवरों की मौत हो गई।
- 26,955 मुर्गियां बह गईं या मर गईं।
- पशुपालन और डेयरी पर निर्भर ग्रामीण परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत पूरी तरह खत्म हो गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में दूध और डेयरी उत्पादों की किल्लत हो सकती है।
4500 करोड़ से ज्यादा का आर्थिक नुकसान
भारी बारिश और भूस्खलन से हिमाचल का बुनियादी ढांचा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ है।
- 5,164 घर पूरी तरह तबाह,
- 2,743 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त,
- 899 दुकानें,
- 2,001 गौशालाएं,
- और 4,297 मजदूरों की झोपड़ियां नष्ट हो गईं।
सार्वजनिक ढांचे को भारी क्षति:
- 8,896 सड़कें क्षतिग्रस्त या बह गईं।
- 6,147 पेयजल योजनाएं ठप, जिससे लाखों लोगों को साफ पानी नहीं मिल पा रहा।
- 87 पुल टूट गए, जिसके कारण कई गांवों का संपर्क पूरी तरह कट गया है।
राज्य सरकार ने अब तक 4,50,444.91 लाख रुपये (4,500 करोड़ रुपये से ज्यादा) का नुकसान आंका है। हालांकि, आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़ा और बढ़ सकता है क्योंकि कई दूरदराज़ इलाकों का आकलन अभी बाकी है।
सबसे ज्यादा मौतें मंडी में, कई गांव हुए खाली
मंडी जिला इस आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।
- मंडी में 37 मौतें,
- कांगड़ा में 34,
- कुल्लू में 31,
- चंबा में 28,
- और शिमला में 23 मौतें दर्ज की गईं।
सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतें:
- मंडी – 24,
- शिमला – 24,
- सोलन – 24,
- चंबा – 22,
- कांगड़ा – 22।
मंडी के कई गांवों में पूरे-के-पूरे परिवार उजड़ गए। कुछ गांवों को अस्थायी रूप से खाली करा दिया गया है क्योंकि वहां भूस्खलन का खतरा अब भी बना हुआ है।
राहत और बचाव अभियान: 200 से ज्यादा टीमें जुटीं
राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर राहत और बचाव कार्य चला रही हैं।
- एनडीआरएफ की 35 टीमें,
- एसडीआरएफ की 50 टीमें,
- सेना और वायुसेना की यूनिट्स प्रभावित क्षेत्रों में तैनात हैं।
हेलीकॉप्टरों और ड्रोन की मदद से फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है।
राज्य आपदा प्रबंधन मंत्री ने बताया कि ड्रोन सर्विलांस से खतरनाक इलाकों की पहचान की जा रही है, ताकि लोगों को समय रहते सुरक्षित निकाला जा सके।
मौसम विभाग का नया अलर्ट: खतरा अभी टला नहीं
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने चेतावनी जारी की है कि आने वाले 48 घंटों तक राज्य में भारी बारिश हो सकती है।
- कुल्लू, किन्नौर, मंडी, चंबा और शिमला जिलों में रेड अलर्ट जारी किया गया है।
- कई इलाकों में बादल फटने और नए भूस्खलन का खतरा बना हुआ है।
एसडीएमए ने लोगों से आग्रह किया है कि वे नदियों, नालों और पहाड़ी ढलानों के पास न जाएं और सरकारी निर्देशों का पालन करें।
मुख्यमंत्री का बयान
मुख्यमंत्री ने आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा करते हुए कहा:
“यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि हिमाचल की आत्मा को झकझोर देने वाली त्रासदी है।
हमारी पहली प्राथमिकता हर प्रभावित परिवार तक राहत पहुंचाना है।
केंद्र सरकार से मदद मिल रही है और हम पुनर्निर्माण के लिए दीर्घकालिक योजना तैयार कर रहे हैं।”
उन्होंने यह भी घोषणा की कि मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों को 50 हजार रुपये और घर खो चुके लोगों को तत्काल राहत राशि दी जाएगी।
भविष्य की बड़ी चुनौती: अनियंत्रित निर्माण पर रोक जरूरी
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पहाड़ियों पर अंधाधुंध निर्माण और पेड़ों की कटाई ने राज्य को आपदा के लिए और असुरक्षित बना दिया है।
- भूस्खलन प्रवण क्षेत्रों की वैज्ञानिक तरीके से पहचान,
- सुरक्षित निर्माण तकनीक,
- और आधुनिक चेतावनी तंत्र को लागू किए बिना ऐसी त्रासदियां भविष्य में और गंभीर रूप ले सकती हैं।