September 17, 2025 1:23 AM

सजा पूरी होने के बाद भी जेल में बंद रहा कैदी, सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार पर लगाया 25 लाख का जुर्माना

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: सजा पूरी होने के बाद भी जेल में कैदी, मप्र सरकार को 25 लाख मुआवजा देने का आदेश

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यप्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए एक दोषी को उसकी वैध सजा पूरी होने के बावजूद जेल में रखने पर 25 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह न केवल गंभीर लापरवाही है, बल्कि किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है।

2004 से शुरू हुआ मामला

सागर जिले के सोहन सिंह उर्फ बबलू को 2004 में ट्रायल कोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस फैसले को उसने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी। अक्टूबर 2007 में उच्च न्यायालय ने उसकी सजा घटाकर 7 साल कर दी। अदालत के आदेश के मुताबिक, उसे 2021 तक रिहा हो जाना चाहिए था।

4 साल 6 महीने अतिरिक्त जेल में

लेकिन आदेश का पालन नहीं हुआ और सोहन सिंह को सजा पूरी होने के बाद भी जेल से रिहा नहीं किया गया। नतीजतन, वह करीब साढ़े चार साल अतिरिक्त जेल में रहा। अंततः उसे जून 2025 में रिहा किया गया। इस दौरान उसकी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई की और सरकार से जवाब मांगा।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि यह मामला बेहद चौंकाने वाला है कि किसी शख्स ने वैध सजा से कहीं ज्यादा समय जेल में गुजार दिया। अदालत ने कहा कि दोषी चाहे कोई भी अपराधी क्यों न हो, सजा पूरी होने के बाद उसे जेल में रखना गैरकानूनी हिरासत है।

जेलों का सर्वे कराने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को गंभीर मानते हुए मप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि राज्य की सभी जेलों का सर्वे कराया जाए। इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि कहीं और भी ऐसे कैदी तो नहीं जो अपनी सजा पूरी करने या जमानत मिलने के बावजूद जेल में बंद हों।

प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल

कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि सजा गणना (Sentence Calculation Sheet), पैरोल-रिमिशन और अदालत के आदेशों के अनुपालन की व्यवस्था में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई। अदालत ने इसे प्रशासनिक तंत्र की विफलता बताते हुए कहा कि यदि समय रहते दस्तावेजों का सही उपयोग और पालन किया जाता, तो यह स्थिति नहीं आती।

मानवाधिकार का उल्लंघन

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला कैदियों के मानवाधिकार उल्लंघन का ज्वलंत उदाहरण है। किसी व्यक्ति को बिना वैध कारण अतिरिक्त समय तक जेल में रखना संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार पर सीधा हमला है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने के लिए नजीर बनेगा।


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