September 17, 2025 1:32 AM

नेपाल में सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ भड़का गुस्सा, काठमांडू में हिंसक प्रदर्शन

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नेपाल में सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन, एक की मौत

काठमांडू। नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ युवाओं का गुस्सा सोमवार को सड़कों पर फूट पड़ा। राजधानी काठमांडू और झापा जिले के दमक में हजारों की संख्या में युवाओं ने सरकार के फैसले के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। धीरे-धीरे यह प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि पुलिस को भीड़ को काबू करने के लिए लाठीचार्ज, आंसू गैस और पानी की बौछारों का सहारा लेना पड़ा। हालात बिगड़ने पर कई जगहों पर फायरिंग भी हुई, जिसमें एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए।


कैसे भड़का आंदोलन?

सोमवार सुबह से ही काठमांडू के मैतीघर इलाके में युवा प्रदर्शनकारियों का जमावड़ा शुरू हो गया। यह विरोध प्रदर्शन “हामी नेपाल” संगठन के बैनर तले आयोजित किया गया था। संगठन ने इसके लिए जिला प्रशासन से अनुमति भी ली थी।
हाल के दिनों में नेपाल के सोशल मीडिया स्पेस पर #NepoKid और #NepoBabies जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे, जिनके जरिए लोग सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे थे। लेकिन जब सरकार ने बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स – फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब, एक्स (पूर्व ट्विटर), रेडिट और लिंक्डइन – पर प्रतिबंध लगा दिया, तो लोगों का गुस्सा और भड़क गया।


सोशल मीडिया बैन की वजह क्या है?

नेपाल सरकार ने कहा कि सोशल मीडिया कंपनियों को 28 अगस्त से सात दिन की समय सीमा दी गई थी, जिसमें उन्हें नेपाल में पंजीकरण कराना था। लेकिन समय सीमा समाप्त होने तक किसी भी बड़ी कंपनी ने पंजीकरण नहीं कराया। इसके बाद सरकार ने इन सभी प्लेटफॉर्म्स पर गुरुवार से प्रतिबंध लागू कर दिया।
सरकार का तर्क है कि इन प्लेटफॉर्म्स पर बड़ी संख्या में फर्जी आईडी और अकाउंट्स सक्रिय थे, जिनका इस्तेमाल नफरत फैलाने, अफवाह फैलाने और साइबर अपराधों में हो रहा था। सरकार का दावा है कि यह कदम समाज में बढ़ती अशांति और असामाजिक गतिविधियों को रोकने के लिए उठाया गया है।


प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और हिंसा में तब्दील हालात

शुरुआत में प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, लेकिन जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई, वैसे-वैसे हालात बेकाबू होते गए। युवाओं ने संसद भवन की ओर मार्च करना शुरू किया और वहां बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की। जब सुरक्षाबलों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, तो प्रदर्शनकारी और उग्र हो गए और पुलिस पर पथराव करने लगे।
स्थिति को संभालने के लिए पुलिस ने पहले हल्का लाठीचार्ज किया और फिर आंसू गैस के गोले छोड़े। कई जगहों पर पानी की बौछार की गई। लेकिन हालात बिगड़ते देख कुछ जगहों पर फायरिंग भी करनी पड़ी। इसी दौरान न्यू बानेश्वर इलाके में एक प्रदर्शनकारी को गोली लगी, जिसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।


घायलों की बढ़ती संख्या और राहत कार्य

न्यू बानेश्वर और दमक दोनों जगहों पर बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी घायल हुए। कई घायलों को एवरेस्ट अस्पताल, सिविल अस्पताल और आसपास के अन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
हामी नेपाल संगठन के कार्यकर्ता रोनेश प्रधान ने बताया कि प्रदर्शनकारियों के लिए मैतीघर में एक प्राथमिक चिकित्सा शिविर लगाया गया है, जहां छह से सात लोगों का इलाज चल रहा है। हालांकि, अब तक घायलों की सटीक संख्या का पता नहीं चल पाया है।


दमक में भी उग्र प्रदर्शन

झापा जिले के दमक में भी हालात गंभीर हो गए। यहां प्रदर्शनकारियों ने दमक चौक से नगरपालिका कार्यालय तक मार्च निकाला। उन्होंने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का पुतला दहन किया और कार्यालय के मुख्य द्वार तोड़ने का प्रयास किया। भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया, लेकिन हालात इतने बिगड़े कि सरकार को सेना को भी तैनात करना पड़ा।


प्रदर्शन का राजनीतिक और सामाजिक असर

विशेषज्ञ मानते हैं कि नेपाल में यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं है। इसके पीछे लंबे समय से बढ़ते भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और युवाओं की नाराजगी छिपी हुई है। सोशल मीडिया युवाओं के लिए अपनी बात रखने का सबसे बड़ा माध्यम है। ऐसे में उस पर अचानक प्रतिबंध लगना उनके गुस्से का कारण बन गया।
“हामी नेपाल” संगठन के अध्यक्ष सुधन गुरुंग ने कहा कि यह विरोध केवल सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं है, बल्कि सरकार की भ्रष्ट नीतियों और मनमानी कार्रवाइयों के खिलाफ भी है। उन्होंने छात्रों और युवाओं से बड़े पैमाने पर आंदोलन में जुड़ने की अपील की है।

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नेपाल में सोशल मीडिया बैन के साथ-साथ भ्रष्टाचार विरोधी गुस्सा अब बड़े आंदोलन का रूप ले चुका है। काठमांडू और दमक में हिंसा और मौत ने इसे और गंभीर बना दिया है। आने वाले दिनों में यह आंदोलन और उग्र हो सकता है, क्योंकि यह केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं, बल्कि युवाओं की अभिव्यक्ति की आज़ादी, रोजगार और व्यवस्था से जुड़ी असंतुष्टि का प्रतीक बन चुका है।


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