ट्रंप के टैरिफ से सहमा विश्व, भारत को दी टैरिफ बढ़ाने की धमकी; रूस व्यापार को लेकर कड़ा आरोप
वॉशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित नए टैरिफ कानून के 7 अगस्त से प्रभाव में आने से पहले दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ और जापान ने बड़े आर्थिक समझौते कर टैरिफ की मार से खुद को बचाने की कोशिश शुरू कर दी है। वहीं दूसरी ओर, भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सीधे तौर पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार तनाव और बढ़ने की आशंका बन गई है।
दक्षिण कोरिया, जापान और ईयू का अमेरिका को बड़ा निवेश प्रस्ताव
ट्रंप की टैरिफ नीति के तहत उन देशों पर भारी शुल्क लगाए जाने की संभावना जताई गई थी, जो अमेरिका के साथ व्यापार असंतुलन में हैं या रूस के साथ ऊर्जा व्यापार करते रहे हैं। इसी को देखते हुए:
- दक्षिण कोरिया ने अमेरिका में 350 अरब डॉलर का निवेश और 100 अरब डॉलर की तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) खरीदने पर सहमति दी है।
- यूरोपीय संघ ने 750 अरब डॉलर की अमेरिकी ऊर्जा खरीदने का संकेत दिया है, साथ ही उसकी कंपनियां 600 अरब डॉलर का निवेश करने को तैयार हैं।
- जापान ने 550 अरब डॉलर का निवेश कोष स्थापित करने की घोषणा की है।
इन घोषणाओं को अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन बनाए रखने की रणनीति माना जा रहा है, ताकि वे ट्रंप की संभावित टैरिफ सूची से बाहर रह सकें।

भारत पर दबाव: ट्रंप की टैरिफ चेतावनी और गंभीर आरोप
दूसरी ओर, भारत को लेकर ट्रंप की टोन बेहद आक्रामक रही। उन्होंने हाल ही में सोशल मीडिया पर बयान दिया कि भारत से आने वाले सामानों पर 25 फीसदी तक का टैरिफ लगाया जा सकता है। ट्रंप ने भारत पर यह भी आरोप लगाया कि वह रियायती दर पर रूस से कच्चा तेल खरीदकर उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुनाफे में बेच रहा है।
हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने देर रात एक बयान जारी कर ट्रंप के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। मंत्रालय ने कहा कि रूस से तेल आयात 2022 के बाद शुरू हुआ, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पारंपरिक तेल आपूर्ति चैन यूरोप की ओर मोड़ दी गई थी। भारत ने स्पष्ट किया कि यह नैतिक रूप से सही और व्यावहारिक निर्णय था।

भारत की दो टूक: आलोचना करने वाले खुद कर रहे रूस से व्यापार
भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ की आलोचना करते हुए कहा कि जो देश भारत की आलोचना कर रहे हैं, वही आज भी रूस के साथ सक्रिय रूप से व्यापार कर रहे हैं।
- यूरोपीय आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में यूरोपीय संघ और रूस के बीच 67.5 अरब यूरो (78.1 अरब डॉलर) का व्यापार हुआ।
- 2023 में सेवा व्यापार भी 17.2 अरब यूरो रहा।
- दूसरी ओर, भारत और रूस के बीच 2025 में द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 68.7 अरब डॉलर पहुंच गया, जो 2020 के 10.1 अरब डॉलर से करीब 5.8 गुना ज्यादा है।
इन आंकड़ों के आधार पर भारत ने कहा कि रूस के साथ व्यापार करने में वह अकेला नहीं, बल्कि यूरोप और अमेरिका खुद इस व्यापार का बड़ा हिस्सा हैं।

भारत पर तेल बेचने के निराधार आरोप
ट्रंप द्वारा लगाए गए तेल को खुले बाजार में मुनाफे में बेचने के आरोपों पर भारत ने पलटवार करते हुए कहा कि:
- भारत केवल घरेलू जरूरतों के लिए तेल खरीदता है।
- भारतीय रिफाइनरियां वैश्विक नियमों और अनुबंधों के अनुसार काम करती हैं।
- भारत किसी भी स्थिति में ऊर्जा आपूर्ति की जिम्मेदार वैश्विक साझेदारी निभाने से पीछे नहीं हटेगा।
अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (EIA) की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस से भारत का कच्चा तेल आयात 2021 में 1 लाख बैरल प्रतिदिन था, जो 2023 में बढ़कर 18 लाख बैरल प्रतिदिन हो गया — कुल आयात का लगभग 39 प्रतिशत।
भू-राजनीतिक व्यापार समीकरणों में भारत पर दबाव
अमेरिकी टैरिफ नीति और ट्रंप की व्यापारिक रणनीति के चलते भारत जैसे उभरते बाजारों पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। हालांकि भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह दबाव में नहीं झुकेगा और अपनी ऊर्जा नीति एवं व्यापार हितों को प्राथमिकता देगा।
अब यह देखना होगा कि क्या भारत कूटनीतिक स्तर पर अमेरिका के साथ टकराव टालने में सफल होता है, या फिर यह विवाद दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में नई तल्खी लेकर आएगा।

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