पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन, लंबी बीमारी के बाद ली अंतिम सांस
नई दिल्ली। देश के तीन राज्यों—जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय—के पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ राजनेता सत्यपाल मलिक का मंगलवार को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। 11 मई को तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां अंततः उन्होंने मंगलवार को अंतिम सांस ली।
उनके निधन की जानकारी उनके आधिकारिक एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल के माध्यम से सार्वजनिक की गई। इस खबर के सामने आते ही राजनीतिक और सामाजिक हलकों में शोक की लहर दौड़ गई।
एक मुखर और बेबाक आवाज़ का अंत
सत्यपाल मलिक भारतीय राजनीति की उन चंद हस्तियों में से एक थे, जो बेबाक और निर्भीक होकर सत्ता में रहते हुए भी सरकार की आलोचना करने से नहीं हिचकिचाए। उनका राजनीतिक जीवन जितना विविधताओं से भरा रहा, उतना ही विवादों और साहसिक बयानों से भी।
मलिक एक समय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के करीबी माने जाते थे, लेकिन बाद में उनके सरकार के प्रति तीखे रुख ने उन्हें पार्टी से अलग कर दिया। पुलवामा हमले को लेकर उनके बयानों ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि पुलवामा हमले की आंतरिक सुरक्षा खामियों के लिए सरकार जिम्मेदार थी। इसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

जम्मू-कश्मीर के आखिरी राज्यपाल रहे
23 अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर 2019 तक सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। यह कार्यकाल ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसी दौरान केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किया। इसके बाद जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में बदला गया और सत्यपाल मलिक वहाँ के अंतिम पूर्णकालिक राज्यपाल बने।
इस संवेदनशील जिम्मेदारी को निभाने के दौरान मलिक ने कई अवसरों पर केंद्र सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के निर्णयों को समर्थन भी दिया, लेकिन वे जनता की पीड़ा और सवालों को मुखरता से उठाते रहे।
गोवा और मेघालय में भी निभाई अहम भूमिका
जम्मू-कश्मीर के बाद उन्होंने गोवा (नवंबर 2019 – अगस्त 2020) और फिर मेघालय (अगस्त 2020 – अक्टूबर 2022) के राज्यपाल पद का कार्यभार संभाला। इन राज्यों में भी उन्होंने अपने स्वतंत्र विचारों और स्पष्ट वक्तव्यों से राजनीतिक गलियारों में चर्चा बटोरी। वे नौकरशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ अक्सर आवाज़ उठाते रहे।
राजनीतिक यात्रा: जनता दल से भाजपा तक
सत्यपाल मलिक ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1960 के दशक में की थी। वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा और लोकसभा सांसद रहे। वे जनता दल, समाजवादी पार्टी और अंततः भाजपा जैसे दलों से जुड़े रहे। 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ वीपी सिंह की सरकार के दौरान वे एक प्रमुख नेता के रूप में उभरे।
उनकी राजनीति का फोकस आम लोगों की समस्याओं पर रहा, और वे खासकर किसानों, युवाओं और ग्रामीण विकास से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता देते थे।

किसान आंदोलन और सरकार से मतभेद
2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान भी सत्यपाल मलिक ने खुलकर केंद्र सरकार की कृषि नीतियों की आलोचना की थी। उन्होंने कई मंचों से कहा था कि सरकार को किसानों से बातचीत करके हल निकालना चाहिए और आंदोलनकारियों की अनदेखी लोकतंत्र के लिए घातक है।
उन्होंने यह भी कहा था कि अगर वे राज्यपाल की जिम्मेदारी से मुक्त होते, तो वे स्वयं किसानों के साथ धरने पर बैठते। उनके इस बयान ने उन्हें किसान वर्ग में लोकप्रिय बना दिया, लेकिन सत्तारूढ़ दल से उनके मतभेद और गहरे हो गए।
निधन से उपजी शोक की लहर
सत्यपाल मलिक के निधन से भारतीय राजनीति की एक स्वतंत्र और साहसी आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गई। अनेक राजनीतिक दलों और नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है। विपक्षी दलों ने उन्हें सच्चा जननेता और लोकतंत्र का प्रहरी कहा, जबकि सत्ता पक्ष की ओर से भी उन्हें अनुभवी राजनेता और प्रशासक के रूप में श्रद्धांजलि दी गई।
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