September 17, 2025 3:04 AM

झालावाड़ के सरकारी स्कूल में छत गिरने से 7 मासूमों की मौत, 9 घायल: लापरवाही की खुली पोल, प्रशासन पर सवाल

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स्कूल में पहले से दिख रहे थे खतरे के संकेत, बच्चों की चेतावनी को नजरअंदाज किया गया

झालावाड़ स्कूल हादसा: छत गिरने से 7 बच्चों की मौत, प्रशासनिक लापरवाही उजागर

झालावाड़। राजस्थान के झालावाड़ जिले के मनोहरथाना ब्लॉक स्थित पिपलोदी सरकारी स्कूल में शुक्रवार सुबह दिल दहला देने वाली घटना घटी, जब स्कूल की एक कक्षा की छत ढह गई। हादसे में 7 बच्चों की मौत हो गई, जबकि 9 गंभीर रूप से घायल हैं। घायल बच्चों का मनोहरथाना और झालावाड़ के सरकारी अस्पतालों में इलाज चल रहा है। यह हादसा तब हुआ जब बारिश के कारण बच्चों को प्रार्थना के लिए एक कमरे में बैठाया गया था।

घटना का विवरण: बारिश से बचाने के लिए कमरे में बैठाए थे बच्चे

प्रत्यक्षदर्शियों और ग्रामीणों के अनुसार शुक्रवार सुबह स्कूल में प्रार्थना का समय हुआ, लेकिन बारिश के कारण सभी कक्षाओं के बच्चों को खुले मैदान में न ले जाकर एक कमरे में बैठा दिया गया। तभी अचानक कमरे की छत ढह गई और उसके नीचे करीब 35 बच्चे दब गए। मलबा गिरने के तुरंत बाद अफरा-तफरी मच गई और गांव के लोग दौड़कर मौके पर पहुंचे। स्थानीय लोगों ने बच्चों को मलबे से निकालकर पास के अस्पताल पहुंचाया।

मनोहरथाना अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक 5 बच्चों की मौत मौके पर ही हो गई थी, जबकि 2 अन्य बच्चों ने इलाज के दौरान दम तोड़ा। घायलों में कुछ की हालत अब भी नाजुक बनी हुई है।


स्कूल में पहले से दिख रहे थे खतरे के संकेत, नजरअंदाज की गई चेतावनी

इस हादसे में सबसे गंभीर और शर्मनाक बात यह रही कि छत गिरने से पहले बच्चों ने खतरे के संकेत देख लिए थे। स्कूल की छात्रा वर्षा राज क्रांति ने बताया कि छत से कंकड़ गिरने लगे थे। बच्चों ने बाहर खड़े शिक्षकों को इस बारे में जानकारी भी दी थी, लेकिन किसी ने कोई संज्ञान नहीं लिया। थोड़ी ही देर बाद छत ढह गई और मौत का मंजर सामने आ गया।


प्रशासनिक लापरवाही का भी हुआ खुलासा

झालावाड़ के कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने घटना के बाद बताया कि स्कूल शिक्षा विभाग को पहले ही निर्देश दिए गए थे कि जर्जर भवनों की सूची तैयार की जाए और वहां बच्चों की छुट्टी की जाए। लेकिन पिपलोदी स्कूल ना तो इस सूची में शामिल था और ना ही यहां किसी प्रकार की छुट्टी घोषित की गई थी।

यह बयान खुद प्रशासन की लापरवाही को उजागर करता है कि या तो सर्वे अधूरा था या फिर दोषपूर्ण। यदि भवन में समस्या नहीं थी, तो फिर छत कैसे गिर गई? और यदि खतरे के संकेत पहले से थे, तो उन्हें नजरअंदाज क्यों किया गया?


प्रतिक्रियाएं: राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने जताया दुख

इस हादसे को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने गहरा दुख जताया है। प्रधानमंत्री ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं और दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है।


स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग की जवाबदेही तय हो

यह हादसा सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं है, बल्कि यह लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना रवैये का नतीजा है। बच्चों की जिंदगी से इस तरह का खिलवाड़ न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की असफलता का भी प्रतीक है।

  • क्या शिक्षा विभाग ने भवनों का सही सर्वे नहीं किया था?
  • क्या शिक्षकों ने बच्चों की चेतावनी को जानबूझकर अनसुना किया?
  • क्या यह हादसा समय रहते रोका जा सकता था?

इन सभी सवालों का जवाब प्रशासन को देना होगा और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।


ग्रामीणों में आक्रोश, स्कूल पर ताला लगाने की मांग

घटना के बाद पिपलोदी गांव में मातम पसरा हुआ है। हर घर में शोक की लहर है। परिजन बेसुध हैं और गांव के लोग आक्रोशित होकर स्कूल पर ताला लगाने और दोषियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह की लापरवाही के लिए सिर्फ संवेदना नहीं, बल्कि जवाबदेही जरूरी है।


अब क्या होना चाहिए?

  • सभी जिलों में सरकारी स्कूलों की बिल्डिंग की तत्काल जांच हो।
  • जर्जर भवनों की सूची पारदर्शी तरीके से सार्वजनिक की जाए।
  • ऐसे स्कूलों में पढ़ाई बंद कर वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
  • जिम्मेदार अधिकारियों और शिक्षकों पर कड़ी कार्रवाई हो।
  • स्कूलों में आपातकालीन प्रबंधन और संरचनात्मक सुरक्षा की अनिवार्यता लागू की जाए।


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