छात्रों को सिखाया- दबाव में कैसे बात करें और कैसे समझें ‘लुटियंस बबल’ की सच्चाई
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साझा किया UPSC इंटरव्यू का किस्सा, बोले- ‘इमरजेंसी के दिन हुआ था मेरा
नई दिल्ली। देश के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने रविवार को सिविल सेवा के नए चयनित अधिकारियों को संबोधित करते हुए अपने UPSC इंटरव्यू से जुड़ा एक बेहद दिलचस्प किस्सा साझा किया। उन्होंने बताया कि उनका इंटरव्यू 21 मार्च 1977 को हुआ था, और यही वो दिन था जब देश में इमरजेंसी का अंत हुआ था। उन्होंने उस ऐतिहासिक दिन के माहौल, इंटरव्यू अनुभव और उस समय के राजनीति-समाज की गहराइयों को छात्रों के साथ साझा किया।
22 साल की उम्र में दिया इंटरव्यू, दिन भी ऐतिहासिक था
जयशंकर ने कहा कि उस दिन की यादें उनके लिए बहुत खास हैं। उन्होंने बताया, “मैं 22 साल का था और दिल्ली के शाहजहां रोड स्थित UPSC कार्यालय में सबसे पहले इंटरव्यू देने वाला उम्मीदवार था। यह वही दिन था जब देश में इमरजेंसी समाप्त हुई थी। मैं सोचता हूं कि यह सिर्फ एक संयोग नहीं था, बल्कि उस दिन देश में एक बड़ा राजनीतिक मोड़ भी आ चुका था, जो मेरे इंटरव्यू का हिस्सा बन गया।”
Speaking at Guru Samman and felicitation programme for new entrants in Civil Services by Samkalp Foundation.
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) July 20, 2025
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इंटरव्यू से मिली दो अहम सीख: दबाव में बात और ‘बबल’ की पहचान
जयशंकर ने कहा कि उस साक्षात्कार से उन्हें दो बहुत महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलीं। पहली, कठिन और संवेदनशील समय में संवाद कैसे किया जाए। और दूसरी, यह समझना कि समाज में कई ऐसे लोग होते हैं जो ‘बबल’ यानी अपने ही बनाए हुए दायरे में रहते हैं और उन्हें देश की असली स्थिति का अंदाज़ा नहीं होता।

राजनीतिक बदलाव का असर इंटरव्यू तक पहुंचा
उन्होंने बताया कि इंटरव्यू के दौरान उनसे देश में हुए आम चुनाव को लेकर सवाल पूछे गए। जयशंकर ने कहा, “मैं उस समय जेएनयू में राजनीति विज्ञान का छात्र था और उस माहौल से पूरी तरह परिचित था। मैंने खुद भी आपातकाल के खिलाफ छात्र आंदोलनों में भाग लिया था। इसलिए मुझे यह अवसर मिला कि मैं इंटरव्यू बोर्ड के सामने पूरी जानकारी और आत्मविश्वास के साथ बात कर सकूं।”
‘लुटियंस बबल’ का पहला अनुभव
जयशंकर ने एक खास अनुभव साझा करते हुए कहा कि इंटरव्यू बोर्ड में बैठे कुछ सदस्य चुनाव परिणामों से हैरान थे। वे यह स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे कि जनता ने इंदिरा गांधी के खिलाफ मतदान किया है। उन्होंने कहा, “हम छात्रों को पहले से ही जनता के मूड का अंदाज़ा था। लेकिन बोर्ड के सदस्यों को यह विश्वास नहीं हो रहा था कि सत्ता से ऐसा बदलाव हो सकता है। उसी क्षण मुझे पहली बार समझ आया कि देश के शीर्ष पर बैठे कई लोग वास्तविक स्थिति से कितने कटे हुए होते हैं।”

‘अमृत काल’ को बताया नई पीढ़ी का अवसर
जयशंकर ने अपने संबोधन में ‘अमृत काल’ का उल्लेख करते हुए युवाओं से कहा कि यह आने वाले 25 साल देश के लिए बेहद अहम हैं और यही समय उनकी परीक्षा और भागीदारी का है। उन्होंने सिविल सेवकों से कहा, “आप सबको अब यह सोचना शुरू कर देना चाहिए कि आने वाले 20 वर्षों में आप देश के लिए क्या कर सकते हैं। आपकी सोच और आपका काम ही भारत के भविष्य की नींव रखेगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि UPSC की परीक्षा केवल ज्ञान की नहीं, बल्कि सोच और चरित्र की परीक्षा है। उन्होंने युवाओं को जिम्मेदारी का एहसास कराते हुए यह प्रेरणा दी कि वे खुद को केवल एक नौकरी नहीं, बल्कि सेवा के रूप में देखें और देश को विकसित भारत बनाने के लक्ष्य में अपनी पूरी ऊर्जा लगाएं।

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