July 19, 2025 5:21 PM

‘निकिता रॉय’ रिव्यू: हॉरर के बहाने सामाजिक सच्चाइयों पर चोट करती एक संवेदनशील फिल्म

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‘निकिता रॉय’ रिव्यू: सोनाक्षी सिन्हा की दमदार एक्टिंग और अंधविश्वास पर करारा प्रहार

कुश सिन्हा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘निकिता रॉय’ आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यह फिल्म हॉरर के पारंपरिक दायरे से बाहर निकलकर डर को एक सामाजिक संदेश के साथ पेश करती है। सोनाक्षी सिन्हा, परेश रावल, अर्जुन रामपाल और सुहैल नैयर जैसे दमदार कलाकारों की मौजूदगी इस फिल्म को एक गंभीर टोन देती है।


🎬 कहानी: सिर्फ डर नहीं, सोचने पर मजबूर करती है

‘निकिता रॉय’ की कहानी की शुरुआत अर्जुन रामपाल के किरदार से होती है, जो किसी अनजाने डर और गहरे मनोवैज्ञानिक उलझाव से जूझ रहा है। लेकिन असली फोकस है सोनाक्षी सिन्हा के किरदार ‘निकिता’ पर, जो समाज में फैले अंधविश्वास के खिलाफ खड़ी होती है। फिल्म दिखाती है कि कैसे फर्जी बाबाओं का चक्रव्यूह लोगों की मानसिकता और जीवन को जकड़ लेता है।
निकिता एक जुझारू युवती है, जो इन झूठे धर्मगुरुओं से सवाल पूछती है, लेकिन धीरे-धीरे खुद उस मायाजाल का हिस्सा बनती जाती है। यह फिल्म हॉरर और थ्रिल के बीच रहते हुए सामाजिक मुद्दों को मजबूती से उठाती है।


🎥 निर्देशन और तकनीकी पक्ष: शांत माहौल में छुपा है असली डर

यह कुश सिन्हा की डेब्यू फिल्म है, लेकिन उनकी डायरेक्शन में परिपक्वता साफ नजर आती है। उन्होंने हॉरर के सस्ते ट्रिक्स (जैसे अचानक डराने वाले दृश्य या तेज म्यूजिक) से परहेज़ किया है।
डर को उन्होंने माहौल, कैमरा मूवमेंट और कहानी के जरिये गढ़ा है। सिनेमैटोग्राफर बोगदाना ऑर्लेनोवा ने रोशनी, साये और फ्रेमिंग से फिल्म के हर दृश्य को भावपूर्ण बना दिया है।
हालांकि, एडिटिंग को थोड़ा और कसाव की जरूरत थी, खासकर पहले हाफ में फिल्म थोड़ी धीमी लगती है।


🎼 म्यूजिक और साउंड डिजाइन: सन्नाटे में गूंजता डर

फिल्म में गानों की मौजूदगी न्यूनतम है, जो इसकी खासियत भी है। बैकग्राउंड स्कोर कहानी को बिना ओवरपावर किए उसकी रीढ़ बनकर खड़ा रहता है।
क्लाइमेक्स सीन में म्यूजिक और साउंड डिजाइन इतने प्रभावी हैं कि साइलेंस भी डर पैदा करता है। यह उस हॉरर स्कूल की याद दिलाता है जो शोर नहीं, मनोवैज्ञानिक प्रभाव से डराता है।


👥 अभिनय: सोनाक्षी और परेश रावल छा गए

  • सोनाक्षी सिन्हा का यह किरदार उनके करियर की सबसे मैच्योर परफॉर्मेंस में गिना जा सकता है। उनका दर्द, संघर्ष और डर – सब कुछ स्क्रीन पर सहज रूप से आता है।
  • परेश रावल ‘बाबा अमरदेव’ के किरदार में डरावने से कहीं ज्यादा असहज करते हैं। मुस्कान में छुपा पाखंड और चुप्पी में बैठी क्रूरता उन्हें फिल्म का असली विलेन बना देती है।
  • सुहैल नैयर और सोनाक्षी के बीच का रिश्ता फिल्म को भावनात्मक संतुलन देता है।
  • अर्जुन रामपाल की भूमिका सीमित है लेकिन असरदार। उनकी मौजूदगी कहानी को गहराई देती है, हालांकि थोड़ी और स्क्रीन टाइम उन्हें मिलती तो ज्यादा असर होता।

फाइनल वर्डिक्ट: देखे या नहीं?

‘निकिता रॉय’ सिर्फ डराने के लिए नहीं बनाई गई है। यह एक सोशल थ्रिलर है, जो धर्म, अंधविश्वास और समाज के छुपे डर को एक्सप्लोर करती है। फिल्म की धीमी गति और कुछ जगहों पर तकनीकी कमियां ज़रूर हैं, लेकिन कंटेंट और परफॉर्मेंस उसे संभाल लेते हैं।

रेटिंग: ⭐⭐⭐🌟 (3.5/5)
अगर आप सिर्फ शोर और भूतिया चेहरों वाले हॉरर से परे जाकर एक गहराई वाली थ्रिलर देखना चाहते हैं, तो ‘निकिता रॉय’ जरूर देखें।



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