कोर्ट ने कहा- प्रक्रिया जारी रहेगी, दस्तावेजों की सूची में आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी को भी जोड़ा जाए
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया पर रोक से इनकार किया
📍 नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में चल रही मतदाता सत्यापन प्रक्रिया (वोटर वेरिफिकेशन) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। जस्टिस सुधांशु धुलिया की अध्यक्षता वाली वेकेशन बेंच ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया है कि दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों को शामिल किया जाए, ताकि प्रक्रिया अधिक समावेशी और पारदर्शी बन सके।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
क्या है मामला?
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के तहत मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया चल रही है। इस प्रक्रिया पर राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने आपत्ति जताई थी। उनका कहना है कि निर्वाचन आयोग ऐसे दस्तावेजों की मांग कर रहा है, जो बड़ी संख्या में लोगों के पास नहीं हैं, जिससे असली मतदाताओं के नाम भी सूची से हटाए जा सकते हैं।
कोर्ट की टिप्पणी: “यह काम पहले होना चाहिए था”
सुनवाई के दौरान जस्टिस धुलिया ने निर्वाचन आयोग से पूछा कि यदि नागरिकता की जांच करनी ही थी, तो यह काम काफी पहले शुरू किया जाना चाहिए था, ना कि बिहार चुनावों के ठीक पहले। उन्होंने सुझाव दिया कि आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेजों को भी मान्यता दी जाए।

निर्वाचन आयोग की दलील: “आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं”
ईसीआई के वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट में कहा कि आयोग केवल मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है। उन्होंने कहा:
- “यह कहना सही नहीं कि हम किसी के नाम काटने के लिए ऐसा कर रहे हैं।”
- “आधार कार्ड सिर्फ पहचान पत्र है, यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है।”
- “हम पूरे देश में इस तरह की सत्यापन प्रक्रिया कर रहे हैं, न कि सिर्फ बिहार में।”
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां
वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायणन ने तर्क दिया कि आयोग जो कर रहा है, वह मनमाना और भेदभावपूर्ण है। उनका कहना था कि यदि कोई व्यक्ति पहले से ही मतदाता सूची में दर्ज है, तो आधार को उसका प्रमाण माना जाना चाहिए।
कपिल सिब्बल ने भी एसआईआर प्रक्रिया पर सवाल उठाए और कहा कि:
- “निर्वाचन आयोग नागरिकता का निर्धारण नहीं कर सकता।”
- “बिहार सरकार के सर्वे के मुताबिक बहुत कम लोगों के पास आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेज हैं।”
- “जन्म प्रमाण पत्र, मनरेगा कार्ड, आधार कार्ड जैसी सामान्य चीजों को आयोग की सूची से बाहर रखा गया है।”
“लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे पर प्रहार”: सिंघवी
अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि एक भी योग्य मतदाता को मताधिकार से वंचित करना लोकतंत्र की मूल भावना पर आघात है। उन्होंने कहा:
“आधार को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार किया गया है। यदि किसी का नाम हटाया जाता है, तो यह समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन है।”
कौन-कौन हैं याचिकाकर्ता?
इस मामले में राष्ट्रीय जनता दल (RJD), तृणमूल कांग्रेस (TMC) और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) जैसी संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। याचिका में मांग की गई है कि बिहार में एसआईआर को रद्द किया जाए और मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा की जाए।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सत्यापन प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन निर्वाचन आयोग को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि समावेशी दस्तावेजों को मान्यता दी जाए और निष्पक्षता बनी रहे। अब अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, जिसमें इस मुद्दे पर आगे की दिशा तय हो सकती है।
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