रायपुर। प्रसिद्ध हास्य कवि और व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे का गुरुवार दोपहर हृदयगति रुकने से निधन हो गया। वे लंबे समय से रायपुर के एसीआई अस्पताल में उपचाररत थे। 71 वर्षीय डॉ. दुबे का निधन न केवल छत्तीसगढ़ के लिए, बल्कि देश के साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
उनके निधन की सूचना परिवार के करीबी सूत्रों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) के माध्यम से दी। भाजपा नेता उज्जवल दीपक, अनेक राजनीतिक नेताओं, साहित्यकारों और कवियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके योगदान को अविस्मरणीय बताया।
व्यंग्य के धारदार हस्ताक्षर थे डॉ. दुबे
डॉ. सुरेन्द्र दुबे का नाम सुनते ही एक ऐसा चेहरा सामने आता है जो गंभीर सामाजिक मुद्दों पर भी मुस्कान के साथ कटाक्ष करता था। उन्होंने कविता को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि जागरूकता का औजार बना दिया। मंचों पर उनकी उपस्थिति ही कवि सम्मेलनों की लोकप्रियता को नई ऊंचाई देती थी। वे टीवी चैनलों पर प्रसारित कवि सम्मेलनों के बेहद प्रिय और चर्चित चेहरों में से एक थे।
जन्म और जीवन यात्रा
- जन्म: 8 जनवरी 1953, बेमेतरा, ज़िला दुर्ग (छत्तीसगढ़)
- पेशे से: आयुर्वेदाचार्य
- कर्मभूमि: व्यंग्यकार, कवि, समाजचिंतक
चिकित्सा के क्षेत्र में दक्षता रखने के बावजूद उन्होंने साहित्य को अपने जीवन का केंद्र बनाया। उनके व्यंग्य और हास्य में आम आदमी की पीड़ा, सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार और सत्ता-व्यवस्था की दोहरी मानसिकता को बेबाकी से उजागर करने की ताकत थी।
साहित्यिक योगदान और सम्मान
डॉ. दुबे ने 5 प्रमुख पुस्तकें लिखीं। वे मंचों पर व्यंग्य और हास्य के चतुर सयाने खिलाड़ी की तरह अपनी बात रखते थे। उनका लेखन जनता से सीधे संवाद करता था।
प्रमुख सम्मान:
- पद्मश्री (2010) – भारत सरकार द्वारा देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित
- हास्य रत्न सम्मान (2008) – काका हाथरसी सम्मान

श्रद्धांजलियों का सिलसिला
राजनीतिक और साहित्यिक जगत के कई लोगों ने उनके निधन पर शोक जताया है। भाजपा नेता उज्जवल दीपक ने लिखा:
“डॉ. सुरेन्द्र दुबे का निधन छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक चेतना को गहरा आघात है। वे शब्दों से सीधे लोगों के दिलों में उतर जाते थे। वे सिर्फ हंसाते नहीं थे, बल्कि सोचने पर भी मजबूर कर देते थे।”
देशभर में उनके हजारों प्रशंसकों ने सोशल मीडिया पर #SurendraDubey ट्रेंड करते हुए अपनी श्रद्धांजलियां अर्पित की हैं।
एक युग का अंत
डॉ. दुबे का जाना एक ऐसे युग का अवसान है, जहां हास्य सिर्फ हँसी नहीं बल्कि सामाजिक टिप्पणी और जनसंचार का प्रभावी माध्यम था। उन्होंने दिखाया कि कवि मंच केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जनमत निर्माण का मंच भी हो सकता है।
उनकी कमी को भरना असंभव है, लेकिन उनका लेखन, उनके स्वर और उनके शब्द हमेशा जीवित रहेंगे।
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