भोपाल।
बुधवार, 25 जून को आषाढ़ मास की अमावस्या पड़ रही है। इस दिन आषाढ़ के कृष्ण पक्ष का समापन होगा और अगले दिन यानी 26 जून से शुक्ल पक्ष आरंभ होगा। आषाढ़ मास की इस अमावस्या को हलहारिणी अमावस्या कहा जाता है, जो कृषि, धर्म और पितृ कर्मों के दृष्टिकोण से अत्यंत विशेष मानी जाती है।
यह दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु के पूजन के साथ-साथ पितरों के स्मरण, तर्पण और पुण्यदान के लिए सर्वोत्तम अवसर है। साथ ही किसान और ग्रामीण समुदाय हल और कृषि यंत्रों की विधिपूर्वक पूजा कर कृषि जीवन के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करते हैं।
🌾 क्या है आषाढ़ अमावस्या का महत्व?
- कृषि पूजन की परंपरा:
इस दिन किसान अपने हल, बैल, और अन्य कृषि उपकरणों की विधिवत पूजा करते हैं। इसे धरती माता के प्रति सम्मान के रूप में देखा जाता है। वर्षा ऋतु की शुरुआत के साथ ही खेती की तैयारी होती है, इसलिए यह अमावस्या खेती के आरंभ का प्रतीक भी मानी जाती है। - पितृ तर्पण का विशेष दिन:
अमावस्या तिथि को पितरों के लिए धूप-ध्यान और तर्पण का विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पितृ लोक के द्वार खुलते हैं और पितर पृथ्वी पर आकर अपने वंशजों द्वारा किए गए कर्मों को ग्रहण करते हैं। - लक्ष्मी-विष्णु पूजन से समृद्धि:
समुद्र मंथन के दौरान महालक्ष्मी अमावस्या तिथि को प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन लक्ष्मी जी और विष्णु जी का पूजन विशेष फलदायी होता है।
🪔 कैसे करें लक्ष्मी-विष्णु पूजन?
संध्या काल के बाद घर के मंदिर में लक्ष्मी-विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और निम्न विधि से पूजा करें:
- गणेश पूजन से शुरुआत करें। उन्हें स्नान, वस्त्र, फूल, दूर्वा और लड्डू का भोग अर्पित करें।
- फिर लक्ष्मी और विष्णु का अभिषेक करें —
- पहले जल से,
- फिर केसर मिश्रित दूध से,
- अंत में फिर से शुद्ध जल से।
- लक्ष्मी जी को लाल चुनरी, और विष्णु जी को पीले वस्त्र पहनाएं।
- हार-फूल, इत्र, हल्दी-कुमकुम, अक्षत आदि चढ़ाएं।
- निम्न मंत्रों का जप करें:
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
- “ॐ महालक्ष्म्यै नमः”
- मिठाई का भोग लगाएं, धूप-दीप जलाकर आरती करें।
- अंत में क्षमा याचना करें और प्रसाद वितरण करें।

🌂 अमावस्या के विशेष उपाय और दान
- छाते का दान करें: वर्षा ऋतु में जरूरतमंदों को छाता भेंट करना पुण्यदायी माना गया है।
- वस्त्र, अन्न, और दक्षिणा का दान करें: किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद व्यक्ति को साफ वस्त्र और भोजन दें।
- गौशाला में सेवा: गायों को हरा चारा और धन का दान करें। इससे जीवन में सुख-संपत्ति और पुण्य की वृद्धि होती है।
🔥 पितृ तर्पण और धूप-ध्यान विधि
दोपहर 12 बजे के आसपास, गाय के गोबर से बने कंडों को जलाएं। जब आग ठंडी होकर अंगारे बन जाएं, तब:
- उन पर गुड़ और घी डालें।
- हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करें।
- “ॐ पितृभ्यः स्वाहा” मंत्र का उच्चारण करें।
इस प्रकार की पूजा से पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है और वंशजों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
🔚 समृद्धि, संतुलन और आत्मीयता का पर्व
आषाढ़ अमावस्या केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, बल्कि कृषि, संस्कृति, पूर्वजों और ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने का दिन है। यह हमारे जीवन में प्रकृति से जुड़ाव, परंपरा से नाता और आत्मिक संतुलन का संदेश देती है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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