मुंबई।
कुछ साल पहले आमिर खान की फिल्म ‘तारे ज़मीन पर’ ने भारतीय सिनेमा को बच्चों की मानसिक चुनौतियों के प्रति नई दृष्टि दी थी। अब उसी सोच का विस्तार करती है उनकी नई फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर’, लेकिन इस बार और भी साहसी, और भी गहराई लिए हुए। फिल्म में नायक का किरदार निभा रहे आमिर खान न केवल एक अभिनेता के रूप में, बल्कि एक स्टोरीटेलर के रूप में भी विकसित होते दिखाई देते हैं।
डाउन सिंड्रोम और न्यूरो डाइवर्जेंस जैसे जटिल विषय पर केंद्रित
इस बार कहानी है गुलशन की, एक आत्ममुग्ध बास्केटबॉल कोच, जो नशे में गाड़ी चलाने के बाद कोर्ट के आदेश पर न्यूरो डाइवर्जेंट युवाओं की टीम को कोच करने पर मजबूर होता है। पहले ये उसके लिए एक सजा होती है, फिर धीरे-धीरे एक आईना बन जाती है। फिल्म दिखाती है कि कैसे गुलशन का नजरिया बदलता है, कैसे वह पहले इन बच्चों को समझने से डरता है और फिर उनके जीवन का हिस्सा बन जाता है।

आमिर की परिपक्वता और सीमाओं वाला किरदार
‘तारे ज़मीन पर’ के आदर्शवादी शिक्षक से ‘सितारे ज़मीन पर’ के खामियों से भरे कोच तक आमिर खान का सफर गहराई लिए हुए है। गुलशन में एक आत्ममुग्धता है, एक अजीब-सी दूरी है, जो धीरे-धीरे टूटती है। आमिर इस किरदार को संतुलन के साथ निभाते हैं – न नायक की तरह चमकते हैं, न खलनायक की तरह गिरते हैं। बस एक इंसान की तरह बदलते हैं।
जेनेलिया डिसूजा का आत्मीय स्पर्श
गुलशन की पत्नी के रूप में जेनेलिया डिसूजा फिल्म में कम नजर आती हैं, लेकिन हर दृश्य में चमकती हैं। उनका किरदार फिल्म की भावनात्मक रीढ़ है। उनका प्रेम, सहनशीलता और सहजता गुलशन के भीतर के इंसान को सामने लाती है।

वास्तविक हीरो: दस न्यूरो डाइवर्जेंट कलाकार
लेकिन फिल्म के असली नायक वे दस कलाकार हैं, जो खुद न्यूरो डाइवर्जेंट हैं और जिनकी अभिनय की सच्चाई फिल्म को आत्मा देती है। न ओवरएक्टिंग, न मेलोड्रामा – बस ईमानदार, सरल, और गहरी परफॉर्मेंस। उनकी उपस्थिति हर सीन में फिल्म को असली बनाती है।

निर्देशक की समझ और संतुलन
निर्देशक आर. एस. प्रसन्ना की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि उन्होंने इस संवेदनशील विषय को बिना उपदेश, बिना आंसुओं के व्यापार के, बेहद गरिमा और गर्मजोशी के साथ पेश किया है। लेखक दिव्य शर्मा की स्क्रिप्ट सरल, लेकिन ताकतवर है।
संवाद जो दिल में रह जाते हैं
फिल्म में कई संवाद हैं जो दर्शकों के साथ लंबे समय तक रहते हैं, लेकिन एक पंक्ति – ‘सबका अपना-अपना नॉर्मल होता है’ – जैसे आज के सामाजिक ढांचे पर सवाल उठाती है। यह एक साधारण लेकिन गहरी बात है, जो फिल्म का सार है।
यह ‘तारे ज़मीन पर 2’ नहीं, बल्कि एक नई उड़ान है
कई लोग इसे ‘तारे ज़मीन पर’ का आध्यात्मिक सीक्वल कह रहे हैं, लेकिन ‘सितारे ज़मीन पर’ अपने आप में एक स्वतंत्र फिल्म है, जो उस सोच को और आगे ले जाती है। यह एक ऐसी फिल्म है जो दिल को छूती है, आंखें खोलती है और सोचने पर मजबूर करती है।
अगर आपने पूर्वाग्रहों की दीवारें खड़ी कर रखी हैं, तो यह फिल्म उन्हें गिरा सकती है। यह केवल बच्चों या उनके माता-पिता के लिए नहीं है, बल्कि हर उस इंसान के लिए है जो इंसानियत को थोड़ा और गहराई से समझना चाहता है।
‘सितारे ज़मीन पर’ फिल्म की रेटिंग (Swadesh Jyoti Scorecard):
श्रेणी | रेटिंग (5 में से) |
---|---|
कहानी और विषयवस्तु | ⭐⭐⭐⭐☆ (4.5) |
अभिनय (आमिर + अन्य) | ⭐⭐⭐⭐☆ (4.5) |
निर्देशन | ⭐⭐⭐⭐☆ (4.5) |
भावनात्मक प्रभाव | ⭐⭐⭐⭐⭐ (5.0) |
संगीत और बैकग्राउंड स्कोर | ⭐⭐⭐⭐☆ (4.0) |
पटकथा और संवाद | ⭐⭐⭐⭐☆ (4.0) |
सामाजिक संदेश | ⭐⭐⭐⭐⭐ (5.0) |
समग्र मनोरंजन मूल्य | ⭐⭐⭐⭐☆ (4.5) |
📌 कुल रेटिंग: 4.5/5
👉 यह फिल्म दिल से कही गई बात है, जिसे हर उम्र का दर्शक देख सकता है — संवेदना, सोच और सिनेमा का सुंदर मेल।
स्वदेश ज्योति सिफारिश:
ज़रूर देखें — यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक मानवीय अनुभव है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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