July 4, 2025 12:57 PM

भोपाल में 90 डिग्री घुमाव वाला ओवरब्रिज बना बहस का मुद्दा, मंत्री राकेश सिंह ने मांगी तकनीकी रिपोर्ट

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भोपाल।
राजधानी भोपाल के ऐशबाग इलाके में बनकर तैयार हुआ नया रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) इन दिनों सुर्खियों में है। लेकिन यह सुर्खियाँ विकास की तारीफों के लिए नहीं, बल्कि इसके डिज़ाइन को लेकर उठ रहे तीखे सवालों की वजह से हैं। पुल में एक असामान्य 90 डिग्री का तीखा मोड़ है, जिसे स्थानीय लोग ‘दुर्घटनाओं का न्यौता’ बता रहे हैं। सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक हलकों तक इस डिजाइन को लेकर बहस तेज हो गई है।

क्या है पूरा मामला?

करीब 18 करोड़ रुपये की लागत से बना यह ओवरब्रिज 648 मीटर लंबा और 8.5 मीटर चौड़ा है। इसका निर्माण मार्च 2023 में शुरू हुआ था और इसे ऐशबाग क्षेत्र में रेलवे फाटक पर ट्रैफिक जाम से निजात दिलाने के उद्देश्य से बनाया गया है। सरकार का दावा था कि इससे हर दिन तीन लाख से अधिक लोगों को फायदा होगा, लेकिन उद्घाटन से पहले ही इसके 90 डिग्री के मोड़ ने इस परियोजना को विवादों में डाल दिया है।

स्थानीयों की आशंका: “एक्सीडेंटल ज़ोन बन सकता है”

स्थानीय निवासियों और वाहन चालकों ने इस तीखे मोड़ पर गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि इस प्रकार के कोने से वाहनों को मोड़ने में मुश्किल होगी, खासकर भारी वाहनों या तेज रफ्तार बाइक-कार के लिए यह जानलेवा साबित हो सकता है। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इसे “डिज़ाइन की भारी चूक” करार दिया है।

अधिकारियों का बचाव: “मेट्रो स्टेशन और ज़मीन की कमी वजह बनी”

निर्माण से जुड़े अफसरों ने इस डिज़ाइन का बचाव करते हुए कहा है कि मेट्रो रेल स्टेशन की पास मौजूदगी और ज़मीन की सीमित उपलब्धता के कारण पुल को इस तरह डिज़ाइन करना मजबूरी थी। उनका कहना है कि यदि सीधा पुल बनाया जाता, तो मेट्रो स्टेशन की संरचना और यातायात दोनों प्रभावित होते।

PWD मंत्री ने लिया संज्ञान, मांगी रिपोर्ट

मामला तूल पकड़ने के बाद लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने संज्ञान लेते हुए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) की एक टीम को मौके का निरीक्षण करने भेजा है। मंत्री सिंह ने कहा, “NHAI की टीम द्वारा गुरुवार को एक तकनीकी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि डिज़ाइन में कोई जोखिम पाया गया, तो आवश्यक सुधार किए जाएंगे।

विकास और सुरक्षा के बीच सवाल

यह मामला एक बार फिर बुनियादी ढांचे की योजनाओं में सुरक्षा बनाम सुविधा की बहस को सामने लाता है। सवाल उठता है कि क्या जल्दबाज़ी में या सीमाओं में किए गए निर्माण लंबे समय में आमजन के लिए खतरा बन सकते हैं? और क्या डिज़ाइन को लेकर सार्वजनिक राय को परियोजना के प्रारंभिक चरणों में शामिल किया जाना चाहिए?


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